देश में कोरोना वायरस (coronavirus) को आए एक साल से अधिक समय बीत चुका है। अगर बीच जे 2-3 महीने को छोड़ दे तो स्थिति बद से बदतर हुई ही नजर आती है। साल 2021 में तो कोरोना से लोगों का और भी बुरा हाल है। शासन से लेकर प्रशासन तक, आम आदमी से लेकर खास तक सभी कोरोना से पस्त हो चले हैं। लॉकडाउन (lockdown) के दौरान भारत देश में दो वर्गों के लोग देखने को मिले। पहला वर्ग जो वर्क फ्रॉम होम (work from home) के लिए इंटरनेट, कंप्यूटर, लैपटॉप का बंदोबस्त करते हुए चाय और नमकीन के साथ घर से काम करता हुआ दिखा और दूसरा वर्ग ऐसा था, जो अपने परिवार के साथ कड़ी धूप में, लूक के थपेड़ों को सहते हुए सिर पर अपनी गृहस्थी का बोझा लिए हजारों किमी के ऐसे लंबे सफर पर पैदल ही निकल पड़ा, जिसके सामने 2 वक्त की रोटी भी नसीब नहीं थी। और समय का चक्र घूमा, फिर वही समय लौट आया है।
एक बार फिर से चढ़ती गर्मी का लगभग वही समय है, और कोरोना का भी वही समय है जब हर दिन हजारों की संख्या में लोग कोरोना की चपेट में आ रहे हैं। अंतर है तो बस इतना कि, पिछले साल अब तक लॉकडाउन लग चुका था, जबकि इस बार हर दिन लोग लॉकडाउन लगने की आशंका से दो चार हो रहे हैं।
हालांकि महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra government) ने अभी तक लॉकडाउन की घोषणा नहीं की है। शायद पूर्ण लॉकडाउन लगाया भी न जाए लेकिन पिछले साल की स्थिति को देखते हुए जो भुगत चुके हैं वे इस बार कोई चांस नहीं लेना चाहते।
पिछले साल ही लाखों प्रवासी श्रमिक (migrants workers) फिर से काम करने के लिए मुंबई (mumbai) लौट आये थे, इन प्रवासी श्रमिकों के सामने धीरे धीरे फिर से वही स्थिति पैदा होती हुई दिख रही है।
कई मजदूर लॉकडाउन की आशंका से गांव चले गए हैं तो कई मजदूर ऐसे भी हैं जो इसलिए गांव नहीं जा पा रहे हैं क्योंकि उन्हें गांव जाने के लिए ट्रेंन का टिकट नहीं मिला रहा है।
इन श्रमिक मजदूरों के चलते टिकट दलालों की चांदी हो रही है। एक टिकट के पीछे 3 से 4 हजार रुपये तक वे दलाली ले रहे हैं। प्रवासी मजदूरों के लिए इतनी रकम देना बड़ी बात है।
कई मजदूर तो ऐसे हैं जिन्होंने अपने घर की औरतों और बच्चों को घर वापस भेज दिया और खुद अकेले रह रहे हैं। उनका कहना है कि, लॉकडाउन लगने पर वे अकेले किसी तरह गांव चले ही जएंगे लेकिन परिवार के साथ मुश्किल होता है।
फरवरी महीने में यानी जब से आम लोगों के लिए लोकल ट्रेंन शुरू हुई तभी से राज्य में कोरोना (Covid19) के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। वर्तमान में, महाराष्ट्र में हर दिन 30,000 से अधिक कोरोना रोगी सामने आ रहे हैं। अगर यही स्थिति बनी रही तो महाराष्ट्र में तालाबंदी अपरिहार्य हो जाएगी। परिणामस्वरूप, कई छोटी कंपनियों के श्रमिक गाँव लौटने लगे हैं।
अंधेरी में कड़िया का काम करने वाले याकूब के कहना है कि, पिछले दिनों उसने अपने छोटे भाई को ट्रेन से घर भेज दिया। खुद नहीं गया ताकि चार पैसे और कमा ले।
तो वहीं नालासोपारा में टेलरिंग का काम करने वाले आसिफ ने बताया कि रात में कर्फ्यू के बाद
दिन में कभी भी लग सकता है। इसलिए हम कुछ वापस गांव लौटने के लिए सोचविचार करने लगे हैं। हम लोग अभी 4-5 महीने पहले ही मुम्बई लौटे हैं…आशा करते हैं कि इस बार सरकार लौटने का कुछ इंतज़ाम कर देगी। अगर हमको दो दिन पहले बता दिया जाए तो हम कोई रास्ता निकाल लेंगे।”
हालांकि जानकारों का कहना है कि पूर्ण लॉकडाउन के आसार नहीं हैं लेकिन माना जा रहा है कि महाराष्ट्र सरकार लोगों के आने-जाने और अन्य गतिविधियों पर कुछ अंकुश लगाने के लिए दिशानिर्देश, स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसीजर (एसओपी) जारी कर सकती है।
जबकि कुछ और जानकारों का कहना है कि, नियम कड़े होंगे लेकिन आर्थिक गतिविधियां सामान्य रूप से जारी रहेगी। रेस्टोरेंट्स, मॉल्स, सार्वजनिक स्थलों, पब्स और प्राइवेट दफ्तरों पर सख्त अंकुश लग सकते हैं ताकि भीड़भाड़ न हो। दफ्तरों से कहा जाएगा कि 50 प्रतिशत उपस्थिति से काम चलाएं।
लॉकडाउन लगने से ऑफिस, कार्यालय, दूकान, कंपनी, कल कारखाने सभी बंद हो जाते हैं। लोगों के सामने आजीविका की समस्या आन खड़ी होती है। पिछली बार के नतीजे को देखते हुए लोग समाचारों, न्यूज़ चैनलों पर नजर गड़ाए हैं, ताकि कुछ भी आपात स्थिति में लोग गांव की तरफ पलायन कर सकें।