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'योगी' की चाहत 'माया' क्यों है?

यह कोई छोटा मोटा उद्योग नहीं है। बहुत बड़ा उद्योग है। हर साल बॉलीवुड में सैकड़ों फिल्में बनती हैं, रीजनल भाषा में जो बनती है वो अलग। इन फिल्मों को बनाने में बेहिसाब पैसे खर्च किए जाते हैं, जिनसे राज्य सरकार को आय प्राप्त होती है।

'योगी' की चाहत 'माया' क्यों है?
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इस समय फ़िल्म सिटी (film city) उद्योग को लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (yogi adityanath) और महाराष्ट (maharashtra) के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (uddhav thackeray) आमने सामने आ गए हैं। कुछ महीने पहले योगी ने यूपी में फ़िल्म सिटी खोलने की घोषणा की थी। इसके लिए यूपी के नोएडा (जेवर) में 1000 एकड़ की भूमि को चिन्हित किया गया है, जहां फ़िल्म सिटी का निर्माण किया जाएगा। 2 दिसंबर को योगी मुंबई (Mumbai) पहुंचे थे, जहां उनसे कई फिल्मी हस्तियों ने मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद योगी ने पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि, हम फ़िल्म निर्माताओं और एक्टरों को यूपी में भी फ़िल्म बनाने का न्योता दे रहे हैं। जहां उन्हें तमाम सुख सुविधाओं सहित छूट भी दी जाएगी।

उद्धव ठाकरे के इस आरोप पर कि, हम जबरन किसी को फ़िल्म सिटी यहां से नहीं ले जाने देंगे, योगी ने कहा, हम कुछ ले जाने के लिए नहीं आए हैं। बात प्रतियोगिता की है कि, कौन अधिक सुविधा देता है।

इसके पहले जब योगी मुंबई पहुंचे थे तो, शिवसेना (shiv sena) सहित मनसे (mns) और महाविकास आघाड़ी (maa) के कई नेता एक सुर में योगी का विरोध करने लगे। 

उद्धव ठाकरे ने कहा कि, महाराष्ट्र से फ़िल्म इंडस्ट्री (film industry) हम किसी को जबरन नहीं ले जाने देंगे। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि, किसी के बाप में हिम्मत नहीं है कि, कोई मुंबई से फ़िल्म सिटी को बाहर ले जाए।

मनसे ने तो बाकायदा पोस्टर चिपका कर योगी को ठग करार देते हुए कहा, अपने राज्य की नाकामी को छिपाते हुए महाराष्ट्र का रोजगार अपने यहां ले जाने आया है। ठग....

यह तो हुई राजनीतिक बात, अब आइए यह समझते हैं कि, आखिर क्यों योगी 'माया'नगरी के पीछे पड़े हैं और क्यों उद्धव फ़िल्म सिटी के स्थान्तरित होने के डर से खार खाए बैठे हैं।

जैसा कि आप जानते हैं मुंबई फ़िल्म सिटी को बालीवुड (bollywood) के नाम से जाना जाता है। इस बॉलीवुड पर मुंबई का एकाधिकार है। शूटिंग देश में हो या विदेश में, फ़िल्म से जुड़े अन्य सभी पोस्ट प्रोडक्शन से लेकर रिलीज तक के काम मुंबई में ही होते हैं। हिंदी और मराठी फिल्मों के काम तो होते ही हैं साथ ही भोजपुरी, गुजराती, पंजाबी, बंगाली के साथ अन्य भाषाओं में बनने वाली फिल्म के काम भी यहां होते हैं।

यह कोई छोटा मोटा उद्योग नहीं है। बहुत बड़ा उद्योग है। हर साल बॉलीवुड में सैकड़ों फिल्में बनती हैं, रीजनल भाषा में जो बनती है वो अलग। इन फिल्मों को बनाने में बेहिसाब पैसे खर्च किए जाते हैं, जिनसे राज्य सरकार को आय प्राप्त होती है। मनोरंजन टैक्स अलग से मिलता है। सामानों के साथ जो जगहें रेंट पर ली जाती हैं उससे भी कहीं न कहीं राज्य सरकार को इनकम होती है।

साथ ही इस फ़िल्म उद्योग में हजारों लोग काम करते हैं, जिनका परिवार इसी पर निर्भर है। यानी रोजगार का एक बहुत बड़ा साधन भी है बॉलीवुड।

इसके अलावा हर राजनीतिक पार्टियों का एक संगठन भी है बॉलीवुड में। जो फिल्मों के जरिए अपनी राजनीति आये दिन चमकाने में लगा रहते हैं। जैसे मनसे चित्रपट शाखा सहित शिवसेना की चित्रपट शाखा ने कई मुद्दे पर फिल्मों के निर्माण या रिलीज पर रोक लगाई है।

कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि, अगर मुंबई एक इंटरनेशनल सिटी (mumbai international city) है तो उसके पीछे कहीं न कहीं बॉलीवुड का बहुत बड़ा रोल है। 

सोचिए अगर फ़िल्म सिटी यूपी में बनती है तो, कितना बड़ा फायदा होगा यूपी का। इसलिए योगी माया यानी मायानगरी को अपने यहां लाना चाहते हैं।

लेकिन अगर बात करें यूपी की तो, पिछले कुछ सालों में ऐसी अनेक फिल्में या सीरीज बनी हैं जो यूपी बेस्ड हैं। इनकी शूटिंग यूपी में ही हुई है। लेकिन यूपी के बारे में जो बोला जाता है, वह सबसे बड़ा मुद्दा है सुरक्षा। सुरक्षा को लेकर यूपी पुलिस का रवैया कैसा है, यह किसी से छिपा नहीं है। देर रात तक फिल्मों की शूटिंग होती है, उसमें महिला क्रू मेंबर भी होती हैं, काम के बाद उन्हें अपने घर जाना, सुरक्षा के लिहाज से यूपी में माहौल कैसा है?, यह सभी जानते हैं।

दूसरी बात है मौसम। यूपी के भीषण गर्मी और तेज ठंडी के मौसम में शूटिंग करना बेहद ही मुश्किल है। जबकि मुंबई में यूपी के इतना गर्मी नहीं पड़ती, ठंडी की बात ही नहीं है।

साथ ही अन्य मूलभूत सुविधाएं भी हैं, जैसे बिजली, आवागमन के साधन आदि। जबकि ये सभी सुविधाएं मुंबई में आसानी से उपलब्ध हैं।

मुंबई में अगर किसी चीज की कमी है तो वह है जगह। फ़िल्म सिटी में जिस तरह से काम बढ़ता जा रहा है, अब उसके लिए यह जगह काफी छोटी पड़ती जा रही है। अब भव्य और बड़े जगह की आवश्यकता महसूस की जा रही है। साथ ही फिल्मों में अब राजनीति भी दखल देने लगी है। जिससे फ़िल्म वाले उकता गए हैं। यह बात यूपी के लिए प्लस पॉइंट साबित हो सकती है, क्योंकि उसके पास जगह की कोई कमी नहीं है।

हालांकि नोएडा में एक फ़िल्म सिटी है, लेकिन आज तक उसका कुछ नहीं हुआ। बस केवल नाम की फ़िल्म सिटी है।

साथ ही भारत में फिल्मों की सबसे बड़ी संस्था इम्पा (indian motion pictures association) ने उद्धव और महाराष्ट्र के साथ रहने की घोषणा करके योगी की राह और भी मुश्किल कर दी है।

लेकिन योगी को निराश नहीं होना चाहिए। क्योंकि हैदराबाद (hyderabad)में भारत का सबसे बड़ा स्टूडियो 'रामोजी राव' (ramoji rav) है, जहां हर साल सैकड़ों दक्षिण भारतीय फिल्में बनती हैं। यही पर बाहुबली 1 और 2 (bahubali) जैसी फिल्मों की शूटिंग और काम भी हुआ था।

योगी की योजना मुश्किल जरूर है लेकिन असम्भव नहीं। लेकिन उसके लिए पहले खुद राज्य सरकार को आगे आना होगा, खुद से कुछ करना होगा, तभी कुछ होगा वर्ना, सभी योजनाएं धरातल पर ही ध्वस्त हो जाएंगी।

क्योंकि इतिहास है, पहले फ़िल्म इंडस्ट्री लाहौर में थी, बंटवारे के बाद कलकत्ता शिफ्ट हो गई। लेकिन यूनियनबाजी के कारण अब  वह मुंबई में फल फूल रही है। इसलिए फ़िल्म इंडस्ट्री को जो बढ़ावा देगा, उसे फ़िल्म इंडस्ट्री भी बढ़ाएगी, नहीं तो बदलते हुए इस संसार में कुछ भी परमानेंट नहीं है।

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