Khandani Shafakhana Movie Review: 'खानदानी शफाखाना' एक बोरिंग सफ़रनामा!

सेक्स शब्द हमारे समाज में हमेशा टैबू रहा है। हम मलेरिया, डेंगू और कैंसर जैसी तमाम बीमारियों के बारे में बात करने और इलाज करवाने में देरी नहीं करते, पर सेक्स से संबंधित बीमारी हो तो हम इसे अपनी शान से जोड़कर देखते हैं। इसी झूठी शान को मिटाने के लिए डायरेक्टर शिल्पी दासगुप्ता 'खानदानी शफाखाना' लेकर आई हैं। उनके पास खुद को साबित करने के लिए एक अच्छा मुद्दा था, पर कमजोर स्क्रिप्ट और कन्फ्यूज़्ड डायरेक्शन के चलते फिल्म बोझिल हो गई है।

बेबी बेदी (सोनाक्षी सिन्हा) पंजाब की एक संकुचित विचारधारा वाली फैमिली से ताल्लुख रखती है। वह एक फार्मा कंपनी में काम करती है।पर वह अपने काम से खुश नहीं है। बेबी का भाई (वरुण शर्मा) कोई काम नहीं करता। पिता रहे नहीं। अब घर चलाने की पूरी जिम्मेदारी बेबी के कंधों पर है। ऊपर से उनके ऊपर लोन भी है। इसी बीच परेशान बेबी के पास खबर आती है कि उनके मामाजी की मौत हो गई है, जिनका एक खानदानी शफाखाना यानी सेक्स क्लीनिक है, जिसकी कीमत करोड़ों में है और वह बेबी बेदी को तब मिलेगा जब बेबी इसे 6 महीने तक चलाएगी और ग्राहकों तक दवाइयां भेजेगी। मां के मना करने के बाद भी बेबी इसे चलाने लग जाती है। इस दौरान बेबी देखती है समाज में सेक्स को लेकर जागरूकता की कितनी कमी है।

शिल्पी दासगुप्ता की डायरेक्टर के तौर पर यह उनकी पहली फिल्म है। उनके पास एक अच्छा मुद्दा था, इस फिल्म को और बेहतरीन तरीके से पेश किया जा सकता था। वे फिल्म और इसके मुद्दे को लेकर उलझी हुई नजर आई। सेकंड हाफ में कोर्टरूम ड्रामा आपको थोड़ा एंटरटेन जरूर करेगा।

एक बार फिर अनु कपूर ने साबित किया है कि वे एक बेहतरीन एक्टर हैं। वे फिल्म में वकील के किरदार में दिखे हैं, जिसके लिए उन्होंने जान फूंक दी है। वरुण शर्मा बीच बीच में हंसाते हैं, पर चूचा के जोन से बाहर निकलते तो ज्यादा बेहतर होता। बादशाह की यह डेब्यू फिल्म है, अपने किरदार में फिट बैठे हैं। बात करें फिल्म की लीड एक्टर सोनाक्षी सिन्हा की तो उनकी एक्टिंग में काफी इम्प्रूवमेंट नजर आया। कई दफा उनके चेहरे के एक्सप्रेशन ही बयां कर देते थे कि वे क्या कहना चाहती हैं।

अगर आप सोनाक्षी सिन्हा और बादशाह के बड़े वाले फैन हैं तो एक बार फिल्म देख सकते हैं। वरना थोड़ा सब्र रखो और अगले महीने अमेजॉन प्राइम पर देख लेना।

अगली खबर
अन्य न्यूज़