दादा साहेब फाल्के अवार्ड देने पर क्यों हो रहा है विवाद

भारतीय फिल्मों (indian films) के दाक्षिणात्य कलाकारों की सूची में अभिनेता रजनीकांत (actor rajinikanth) का नाम अबसे अवव्ल है और उनने प्रति जो आदर भाव है, वह आदर भाव आज भी बना हुआ है। वरिष्ठ अभिनेता  रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के सम्मान(dadasaheb falke award) देने के लिए सरकार ने तमिलनाडु (tamilnadu) विधानसभा चुनाव का मुहूर्त खोजा। मंगलवार छह अप्रैल को तमिलनाडु में मतदान होने वाले हैं तथा तमिल मतदाता अपने रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार देने को भी चुनाव का एक हिस्सा बताया जा रहा है। रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार देने की घोषणा का समय तय किया गया है, जिस पर सवाल उठाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि केंद्र की मोदी सरकार (modi government) तमिलनाडु के मतदाताओं को लुभाने के लिए रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार देने की घोषणा की है। रजनीकांत ने पिछले पांच दशक में दक्षिण भारतीय फिल्म में अपना दबदबा बनाकर रखा है, उनको तमिलनाडु की जनता की जनता का भरपूर प्यार प्राप्त है।

रजनीकांत लोगों का मनोरंजन तो कर ही रहे हैं, साथ ही वे तमिलनाडु की जनता के लिए देवता की तरह हैं। वर्तमान में जो बातें मोदी सरकार पर अन्य विपक्षी दलों की ओर से की जा रही हैं, उसी तरह की बातें जब कांग्रेस (Congress) की ओर से सचिन तेंदुलकर (sachin tendulkar) को भारत रत्न (bharat ratn) दिया गया, उस वक्त भी सचिन तेंदुलकर के साथ-साथ कांग्रेस पर यह आरोप लगाया था कि कांग्रेस ने वोटों की राजनीति के कारण मास्टर ब्लॉस्टर को भारतरत्न दिया गया था। पुरस्कार को लेकर जिस तरह की रणनीति कभी कांग्रेस ने बनायी थी, वैसी ही रणनीति आज भाजपा (bjp) की ओर से बनायी गई है।

रजनीकांत खुद का राजकीय दल बनाकर चुनावी मैदान में उतरने वाले थे, उन्होंने इसके लिए तैयारी भी की थी। दक्षिण भारतीय फिल्मों के महानायक कहे जाने वाले रजनीकांत का साथ कुछ-कुछ इस तरह रहा जैसे सदी के नायक अमिताभ बच्चन (amitabh bachchan) का रहा है। अमिताभ बच्चन ने उत्तर प्रदेश की फुलपूर संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था, वहां से उन्होंने कद्दावर नेता हेमवतीनंदन बहुगुणा को पराजित किया था। अमिताभ बच्चन ने चुनाव को लड़ा और भारी मतों से विजयश्री भी प्राप्त की, लेकिन चुनाव जीतने के बाद भी अमिताभ बच्चन सक्रीय राजनीति में नहीं आए, लेकिन रजनीकांत ने चुनाव लड़ने से पहले ही राजनीति से दूरी बना ली। तमिलनाडु की राजनीति में अपने पांव जमाने की हरसंभव कोशिश करने वाली भाजपा ने इस बार के चुनावी जंग में अण्णा द्रमुक से गठबंधन किया है और 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं।

'अण्णाद्रमुक अगर सत्ता में आई तो तमिलनाडु को देवता भी बचा नहीं सकते', किसी वक्त रजनीकांत की ओर से दिया गया यह बयान बहुत चर्चित हुआ था, अब उसी में अण्णाद्रमुक को सत्ता पर लाने की एक कोशिश के रूप में रजनीकांत को फिल्म जगत का सर्वोच्च सन्मान दिया जाए, यह बात किसी संयोग से कम नहीं है। द्रमुक अगर किसी सांप का मुंह है तो अण्णाद्रमुक सांप की पूंछ है, ऐसा वक्तव्य अभिनेता कमल हसन (kamal hasan) ने दिया था। कमल हसन भी अब राजनीति के मैदान में उतरे हैं। तमिलनाडु के सिनेमा के दर्शकों के चहेते थलैवा का सम्मान करने के बदले भाजपा को क्या लाभ होगा, यह देखने वाली बात होगी। अण्णा द्रमुक के बारे में रजनीकांत का मत परिवर्तित होता है, या नहीं यह देखने वाली बात होगी। रजनीकांत का जीवन तथा उनकी फिल्म नाट्यमय होती हैं. चाहत लोकप्रियता,  चाहने वाले, भक्ति भाव की बराबरी करने वाले विश्व का कोई भी अन्य अभिनेता नहीं मिलेगा।

अभिनय में रजनीकांत को उच्च दर्जा देने की समीक्षा संभवत तैयार नहीं होगा, लेकिन किसी कलाकार की छवि जनमानस पर पड़ा मनमोहक विचार किया जाए, संभवत अमिताभ बच्चन भी रजनीकांत के सामने कम पड़ता। संवाद फेक, हावभाव तथा कुछ अनोखे अंदाज रजनीकांत नामक चमत्कार सामने आया है। तय सांचे में यानि दुष्ट का नाश करने की नायक के कथानक वर्षो से करके, रजनीकांत के प्रशंसक नई फिल्म की आतुरता से देख रहे हैं। मानवता तथा सादगी के कारण उनकी लोकप्रियता का परिमाण है। अपनी प्रतिक्रिया जानबूझकर तमिल भाषा में देते हैं। किसी वक्त उनके साथ बस कंडक्टर का काम करके, उन्होंने अभिनय का सलाह दी और उस राज बहादुर नामक दोस्त के प्रति आभार व्यक्त किया। गरीबी के दिन निकालते समय मेहनत करने वाले अपने भाई सत्यनारायणराव तथा गुरू के.बालचंदर का नाम लेना वे कभी नहीं भूलते।

पचास वर्ष की आयु समाप्त होने के बाद तथा सिर के बाल गिर जाने के बाद भी रजनीकांत लोगों के सामने अपने स्वाभाविक रूप में आते हैं, सामान्य व्यक्ति के रूप में वे स्वयं को रखते हैं। अब 70 वर्ष की आयु में पहुंचने पर भी रजनीकांत ने पिछले पंधरा-वीस वर्ष फिल्मी पर्दे पर युवा अभिनेता के रूप में काम किया। युवा नायिकाओं के साथ बगैर संकोच किए नाच-गाकर उनका मनोरंजन करने वाले दर्शक भी इस बात को ते मन से स्वीकार कर रहे हैं। रजनीकांत की फिल्में भले ही फ्लॉप हों, लेकिन रजनीकांत कभी-भी फ्लॉप नहीं होते। उनके भव्य पोस्टर पर दूध का अभिषेक करके फिल्म का पहला शो देखने वाले लाखों फिल्म प्रेमी है, उनकी सुपर ह्यूमन की छवि केवल तमिलनाडु में ही नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत में लोकप्रिय हुई कि असंख्य हास्य, असंख्य मिम्स तैयार हुए।

मानवी क्षमता से परे कोई भी काम रजनीकांत कर सकते हैं,  यह विचारधारा उनके लिए फिल्मी पर्दे पर निभाए गए किरदार की वजह से बनी है, ऐसा होने पर भी अभिनेता के रूप में  उनकी हिंदी फिल्मों की पारी बहुत ज्यादा फूली फली नहीं। कलात्मक अलग रास्ते की लगने वाले फिल्मों की ओर रजनीकांत ने बहुत गांभीरता से नहीं देखा, उन्हें वैसी जरुरत नहीं पड़ी। अभिनय क्षेत्र में अनेक पुरस्कार, पद्मश्री, पद्मभूषण जैसे सन्मान प्राप्त होने के बाद अब दादासाहेब फाल्के पुरस्कार देने की घोषणा करके उन्हें जो सम्मान दिया गया, इसे रजनीकांत के अभिनय यात्रा का शिखर करना गलत नहीं होगा, लेकिन इसके लिए जो समय तय किया गया, उससे विपक्ष समेत अन्य भाजपा विरोधी दलों को यह कहने का अवसर मिल गया कि राजनीकांत को उक्त पुरस्कार देकर केंद्र सरकार ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। रजनीकांत को लोग प्रेम से थलैवा (नेतृत्व करने वाला) कहा जाता है।

सच्चे अर्थों में लोक नेता इस थलैवा का सन्मान तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के दौरान करना, एक तरह से रजनीकांत की अभिनय यात्रा पर काला दाग लगाने जैसा ही है। 12 दिसंबर, 1950 को बेंगरूलु के एक मराठी परिवार में जन्मे रजनीकांत का वास्तविक नाम शिवाजी राव गायकवाड है। रजनीकांत को केंद्र सरकार की ओर से सन् 2010 में पदमभूषण तथा 2016 में पदमविभूषण पुरस्कार के सम्मानित रजनीकांत को उनके अभिनय, फिल्म निर्माण तथा लेखन क्षेत्र में दिए गए उल्लेखनीय योगदान के लिए 2019 के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई। टॉलिवुड में अपनी पहचान बनाने के बाद रजनीकांत ने अंधा कानून फिल्म के माध्यम से बॉलिवुड में प्रवेश किया। सीबीएससी के पाठ्यक्रम में जिस अभिनेता को स्थान दिया है, उसके बारे में इतना ही कहना उचित होगा कि बंदे में दम है।

चूंकि भाजपा अभी अभिनेताओं का कार्ड खेलकर उन क्षेत्रों में अपनी ताकत बढ़ाने का फैसला किया है, जहां अभिनेता जीत की गारंटी बनना सकते हैं, लेकिन रजनाकांत ने राजनीति में न आने का कार्ड खेलकर भाजपा को मायूस कर दिया था, जिसे रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार देकर काफी हद तक कम किया गया। अब देखना यह है कि रजनीकांत को दादा फाल्के पुरस्कार देने से भाजपा को तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में कितना लाभ मिल पाता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह उनके विचार हैं।)

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