भारतीय संस्कृति में नदियों को सिर्फ पानी के एक स्रोत को रुप में नहीं देखा जाता है , बल्की इनसे जुड़ी होती है देश की पहचान और आस्था। बावजुद इसके देश में नदियों की स्थिती दिन ब दिन खारब होती जा रहा है, नदियां प्रदूषित होती जा रही है। जो ना ही सिर्फ नदियों की स्थिती के लिए खरतान है बल्की पर्यावरण के लिए भी चिंता का विषय है।
"गंगा, कृष्णा, नर्मदा, कावेरी – हमारी कई महान नदियाँ तेज़ी से सूख रही हैं। अगर हम अभी कदम नहीं उठाएंगे, तो जो विरासत हम अगली पीढ़ी को सौंपेंगे वो संघर्ष और अभाव से भरी होगी। इन नदियों ने हमें हज़ारों सालों तक पोषित किया है। अब समय आ गया है कि हम इनको पोषित करें और इन्हें स्वस्थ बनाएं। भारत की नदियों को नया जीवन देने का सबसे सरल तरीका नदी के दोनों ओर कम से कम एक कि.मी. की चौड़ाई में पेड़ लगाना है"- रैली के आयोजक सद्गुरु जी
सरकारी ज़मीन पर जंगल लगाए जा सकते हैं और किसानों की ज़मीन पर फल या दूसरी तरह के पेड़ लगाए जा सकते हैं। इससे ये सुनिश्चित होगा कि मिट्टी की नमी से हमारी नदियाँ सालों भर पोषित होती रहेंगी। इससे बाढ़, सूखे और मिट्टी का कटाव भी कम होगा, और किसानों की आय बढ़ेगा"।
देश में नदियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए देश का युवा, गृहकर्मी, व्यवसायी, मशहूर हस्तियों, और सामाजिक और सरकारी नेताओं ने नदियों के बचाव के लिए आयोजित किये जानेवाले इस रिवर मार्च में लोगों से जुड़ने की अपील की।
नदियों को बचाने के लिए ईशा फाउंडेशन की ओर से राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है। इस फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव खुद कन्याकुमारी से लगभग 7,000 किलोमीटर की यात्रा 16 राज्यों से तय करते हुए 2 अक्टुबर को दिल्ली पहुंचेंगे।रैली फॉर रीवर्स नाम के जन जागरूकता कार्यक्रम का आगाज 1 सितंबर को भारत में 60 से अधिक शहरों में हुआ। । लाखों लोग, टी-शर्ट, प्लेकार्ड, हेडगीयर और स्टिकर लेकर इस रैली में शामिल हुए।
इस अभियान के 3 कारण:
1) हर किसी को हमारी नदियों के सामने आने वाले संकट से अवगत कराना
2) नदियों के लिए रैली की आवश्यकता के बारे में समाज के सभी वर्गों में जागरूकता पैदा करना
3) नदियों की स्थिती को अच्छी करना के लिए सरकार के नितियों को और गति देना।
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