जल्द ही विवादास्पद वर्जिनिटी टेस्ट या टू-फिंगर टेस्ट को मेडिकल के पाठ्यक्रम से हटा दिया जाएगा। महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम पैनल ने मेडिकल के पाठ्यक्रम से इस विषय को हटाने की इजाजत दे दी है। महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज (एमयूएचएस) के तहत बोर्ड ऑफ स्टडीज वर्जिनिटी टेस्ट के एक अध्याय को एमबीबीएस द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम से हटाने का फैसला किया है यानी की एमबीबीएस द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम में अब वर्जिनिटी टेस्ट या टू-फिंगर टेस्ट नहीं होगा।
महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (MGIMS), वर्धा के फॉरेंसिक विभाग के एक पत्र के बाद, MUHS बोर्ड के सदस्यों ने अप्रैल में एक बैठक में इस मुद्दे को उठाया, बताया कि महिला के कुंवारीपन के परीक्षण करने का कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है और इसे अभ्यास से दूर करने की जरुरत है। चर्चा के बाद, बोर्ड ने विश्वविद्यालय के कुलपति को वर्जिनिटी परीक्षण वाले चैप्टर को हटाने के लिए सिफारिश की है।
क्या था मामला
महाराष्ट्र के एक फोरेंसिक मेडिसिन प्रोफेसर ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें मेडिकल पाठ्यक्रम से "कौमार्य परीक्षण" को हटाने की मांग की गई है, उनका दावा है कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (MGIMS) में फोरेंसिक मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ इंद्रजीत खांडेकर ने "वर्जिनिटी टेस्ट" के अवैज्ञानिक होने का दावा किया और इसके साथ ही एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जो । मानव अधिकारों और लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देने के बारे में थी।
क्या होता है वर्जिनिटी टेस्ट
वर्जिनिटी टेस्ट महिला के उन अंगों की जांच होने का कथित तौर पर दावा किया जाता जिससे पता चल सके की महिला संभोग से गुजर चुकी है या नहीं। आमतौर पर बलात्कार के मामलों में यह आकलन किया जाता है।
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