हर राज्य की राजनीति में उतार-चढ़ाव चलता ही रहता है। कोई लगातार उपेक्षा के कारण एक पार्टी छोड़कर दूसरी में जाता है तो कोई स्थायी रूप से राजनीतिक को ही राम-राम कह देता है। भारतीय जनता पार्टी (bjp) में के वरिष्ठ नेता एकनाथ खड़से (eknath khadse) के बाद कौन- कौन भाजपा छोड़कर दूसरी पार्टी में जीती है, इसे लेकर चर्चाओ का दौर जारी है। कहा जा रहा है कि एकनाथ खड़से के राकांपा (ncp) में जाने के बाद उनसे बहुत से समर्थक भी राकांपा का दामन थाम सकते हैं. राजनीतिक जानकारों का दावा है कि भाजपा की वरिष्ठ नेता तथा राज्य की पूर्व बाल एवं परिवार कल्याण मंत्री पंकजा मुंडे (pankja munde) भी जल्द ही भाजपा का दामन छोड़ सकती है. लेकिन वे राकांपा में नहीं शिवसेना (shivsena) में जाने की इच्छुक बतायी जा रही है.
4 दशकों तक भाजपा में रहकर राकांपा में गए एकनाथ खडसे के निर्णय का किसी ने विरोध किया तो किसी ने खडसे के निर्णय पर मुंह नहीं खोला. भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार (sudhir mungantiwar) ने एकनाथ खड़से के राकांपा में जाने पर अफसोस व्यक्त करते हुए कहा कि एकनाथ खडसे का भाजपा से जाना ठीक नहीं है. एकनाथ खडसे भाजपा छोड़कर न जाए, इसके लिए भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल (chandrakant patil) ने अपनी तरफ से बहुत कोशिश की, लेकिन एकनाथ खड़से ने पहले से यह तय कर रखा था कि अब बहुत हो गया, अब भाजपा में नहीं रहना है. लगभग छह साल से देवेंद्र फडणवीस (devendra fadnavis) से नाराज चल रहे एकनाथ खड़से ने अंतत: 23 अक्टूबर को शरद पवार (sharad pawar) की उपस्थिति में राकांपा का दामन थाम लिया. 2009 से 2014 तक विधानसभा में विरोधी पक्ष नेता रहे, इसके बाद जब राज्य में देवेंद्र फडणवीस की सरकार बनी तो एकनाथ खडसे को राजस्व तथा कृषि मंत्री का कार्य सौंपा गया, लेकिन 2016 में जमीन घाटोले में नाम सामने आने पर एकनाथ खड़से को राजस्व मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. स्वयं को निर्दोष मानते हुए एकनाथ खड़से लगातार यही कहते रहे कि हैं देवेंद्र फडणवीस के कारण मुझे लगातार अपमानित होना पड़ा है. एकनाथ खडसे के भाजपा छोड़ने के बाद दिए गए बयान के बाद देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि एकनाथ खडसे ने मुझे तो खलनायक बना दिया है.
एकनाथ खडसे का राकांपा में प्रवेश निश्चित होने के बैद इस बात की चर्चाएं होती रही कि एकनाथ खडसे के साथ-साथ कौन-कौन प्रवेश के दौरान रहेगा. एकनाथ खड़से के साथ उनकी सुपुत्री रोहिणी (rohini khadde) ने भी राकांपा में प्रवेश किया। एकनाथ खडसे के साथ उनकी पत्नी मंदाकिनी खडसे, सुपुत्री एड. रोहिणी खडसे के साथ- साथ केयर टेकर गोपाल चौधरी भी थे।
खडसे ने राकांपा में प्रवेश के दौरान यह भी खुलासा किया कि मुझे शिवसेना, कांग्रेस की ओर से ऑफर मिला था, वैसे कुछ जानकारों का दावा है कि एकनाथ खड़से अगर शिवसेना में जाते तो ज्यादा बेहतर होता, क्योंकि शिवसेना में नेताओं का अभाव है, अगर एकनाथ खडसे शिवेसना में जाते तो उन्हें सम्मान भी मिलता तथा कोई बड़ा पद भी मिलता लेकिन शायद एकनाथ खडसे इसलिए शिवसेना में नहीं गए, क्योंकि उन्हें इस बात को लेकर संदेह है कि अगामी चुनाव के बाद शिवसेना के सीटों की संख्या में और ज्याद कमी आएगी। राकांपा की ओर से एकनाथ खड़से को विधान परिषद के लिए उम्मीदवारी देकर राकांपा ने फिलहाल एकनाथ खड़से को प्रसन्न तो कर दिया है लेकिन अगर राकांपा ने चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात की कहावत की तरह एकनाथ खड़से को विधान परिषद की उम्मीदवारी देकर एकनाथ खड़से को आनंदित को किया ही है साथ ही राकांपा ने भाजपा को भी कटाक्ष करने से रोक दिया कि राकांपा ने भी एकनाथ के साथ छल किया है. कहा जा रहा है कि दीपावली से कुछ दिनों पहले भाजपा के कुछ और विधायक तथा एकनाथ खड़से के सर्मथक राकांपा में जा सकते है, लेकिन इससे भी बड़ी खबर यह है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे (gopinath munde) की सुपुत्री पंकजा मुंडे के शिवसेना में प्रवेश करने की अकटलें लगायी जा रही हैं. फिलहाल पंकजा मुंडे को भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी मे स्थान प्राप्त है, ऐसे में पंकजा मुंडे भाजपा छोड़कर शिवसेना का दामन थामेगी इसमें जरा संदेह ही लग रहा है. पंकजा मुंडे का नाम महाराष्ट्र के कद्दावर भाजपा नेताओं में शुमार है, इसलिए उनके शिवसेना में जाने को सिर्फ अटकले ही बताया जा रहा है. पंकजा मुंडे का दिल्ली के भाजपा नेताओं से निकट का संबध है, ऐसे में पंकजा मुंडे का शिवसेना में जाने का कोई औचित्य नहीं है. आज की राजनीति के बार में कुछ कहा नहीं जा सकता, जब एकनाथ खड़से, सचिन अहिर, चित्रा वाघ. गणेश नाईक, नारायण राणे, हर्षवर्धन पाटिल, राधाकृष्ण विखे पाटिल जब लंबी राजनीतिक पारी खेलने के बाद दूसरी पार्टी में जा सकते हैं तो फिर पंकजा मुंडे शिवसेना में क्यों नहीं जा सकतीं। कहा जा रहा है कि अगर नागपुर में होने वाले शीतकालीन सत्र के तक पकंजा मुड़े कोई बड़ा ऐलान नहीं करेंगी, तब तक सभी की निगाहें इस ओर जरूर रहेंगी कि खड़से के बाद ऐसा कौन सा चेहरा सामने आता है कि जो भाजपा को रामराम कहकर शरद पवार की पार्टी राकांपा का हिस्सा बनता है।