भिड़े और भाजपा समर्थकों के खिलाफ मुकदमे वापस लेने के सरकारी फैसले के खिलाफ जनहित याचिका

बॉम्बे हाईकोर्ट में भिड़े और भाजपा समर्थकों के खिलाफ मुकदमे वापस लेने के सरकारी फैसले के खिलाफ जनहित याचिका दायर की गई है। इस याचिका में संभाजी भिड़े सहित कई व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज 41 से अधिक आपराधिक मामलों को वापस लेने के फैसले पर सवाल उठाया गया है।

कार्यकर्ता शकील अहमद द्वारा दायर की गई इस याचिका में सरकार पर आरोप लगाया गया है की सरकार ने उन लोगों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को चुनिंदा रूप से हटा दिया गया है, जो सत्तारूढ़ भाजपा के समर्थक या कार्यकर्ता हैं। शकील की ओर से अधिवक्ता नितिन सतपुते ने 41 मामलों में दर्ज 2,300 से अधिक व्यक्तियों के खिलाफ आरोपों को हटाने के सरकार के फैसले को चुनौती दी है।

अपनी दलील में शकील अहमद शेख ने कहा है कि यदि सरकार की कार्रवाई कानूनी है, तो भीमा-कोरेगांव हिंसा के आरोपी व्यक्तियों को भी इसी तरह का ट्रिटमेंट दिया जाना चाहिए। सरकार ने राजनीतिक या सामाजिक आंदोलनों की स्थिती में आपराधिक मामलों को वापस लेने के लिए 2010 में एक अधिसूचना जारी की थी। अधिसूचना सरकार को कुछ राजनीतिक और सामाजिक मामलों जैसे धरना, विरोध के कारण दर्ज मामलों को वापस लेने का अधिकार देती है।

शेख के अनुसार, मौजूदा समय में सरकार ने जून 2017 से सितंबर 2018 तक कुल 41 मामलों को हटा दिया है। PIL में दावा किया गया है की ”36 मामलों में, उप-समिति जिसने मामलों को हटाने का फैसला किया है, ने मूल अधिसूचना में शर्त का उल्लंघन किया है। वास्तव में, उप-समिति को कोई कानूनी ज्ञान नहीं है और इसलिए इस तरह के फैसले लेना सही नही है"।

इसके साथ ही PIL में इस बात की भी मांग की गई है की "कानून की प्रक्रिया का पालन ना करने और नियमों की धज्जियां उड़ानेवाले अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए, जो अपराध दर्ज किये गए है वह राजनीतिक या सामाजिक अपराधों की श्रेणी में नहीं आते हैं , बल्की एक गंभीर अपराध की श्रेणी में आते है”।

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