लोकल ट्रेन में यात्रा करने वाले यात्रियों की अजीब हरकतें, इन पर कभी ध्यान गया है आपका?

लोकल ट्रेन को यूं ही मुंबई की लाइफ लाइन नहीं कहा जाता। यहां सिर्फ एक यात्री ही यात्रा नहीं करता वरन आपको यहां एक भारत यात्रा करता हुआ दिखाई देगा। आपके साथ यात्रा करे हुए चारों ओर ऐसे यात्री होंगे जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक या फिर राजस्थान से लेकर असम से आए हुए हो सकते हैं और आपको मालुम नहीं पड़ता। यह सारी बातें यहां हम इसीलिए कर रहे हैं कि ऐसी कई सारी चीजें हैं जिन्हे देख कर यार सुन कर एक नया अनुभव मिलता है। ये तो बड़ा गर्क हो इस मोबाइल का अब सब एक दूसरे से बातें करना भूल गए हैं।

इसके अलावा ऐसी कई सारे ट्रेनों में अघोषित नियम भी होते हैं जिन्हें फॉलो करना पड़ता है, नहीं करने पर लोग आपसे जबरन फॉलो करने के लिए कहते हैं। मसलन ट्रेन में चढ़ने से पहले ही आपको आपका पिट्ठू बैग पीठ से हटा कर आगे की तरह यानी सीने की तरफ लटकाना पड़ता है। ऐसा इसीलिए कि खुद को चढ़ने में आसानी तो होती ही है, साथ ही दूसरों को भी परेशान नहीं होना पड़ता। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो भीड़ में आपका बैग फंसेगा और आप अटक जाएंगे जिससे पीछे वाले आप पर चिल्लायेंगे।

इसके बाद अगर आपको उतरना है तो एक स्टेशन पहले ही सीट छोड़ कर गेट पर खड़ा होना पड़ेगा ताकि जल्दी से उतर सकें, अगर आप चूके तो चढ़ने वाली भीड़ के आगे बेबस होकर आप नहीं उतर पाएंगे। इसमें भी एक तुक यह है कि आप उसी तरफ खड़े हो जिस तरफ स्टेशन आने वाला हो, अगर साइड गलत हुई तो आपके लिए परेशानी हो सकती है।

एक नियम और देखने को मिला, विरार से चर्चगेट तक यात्रा करने वाले कई यात्री बोरीवली में सीट छोड़ देते हैं ताकि खड़े हुए यात्री बैठ सकें। और चर्चगेट से विरार जाने वाले यात्री भी बोरीवली में सीट छोड़ देते ताकि खड़ा हुआ यात्री बैठ कर विरार जा सके। हालांकि ऐसा करने के लिए यात्री मजबूर नहीं हैं, लेकिन करते हैं।

ऐसा भी नहीं सभी यात्री मानवता की मूरत होते हैं, कुछ ऐसे भी होते हैं भीड़ होने के बाद भी दरवाजे पर बैठे जानबूझकर नजरें मोबाइल पर गड़ाए रहते हैं, हालांकि उन्हें यह अच्छी तरह पता होता है कि उनकी वजह से लोगों को तकलीफ हो रही है बावजूद वे खड़े नहीं होते, तब तक जब तक लोग उन्हें खड़े होने के लिए नहीं कहते हैं। यही नहीं गैंग की करतूत सुन कर तो आप भी चौंक जाएंगे, स्टेशन आने से पहले गैंग के कुछ लोग ट्रेन के दरवाजे पर भीड़ लगा कर खड़े हो जाते हैं और यात्रियों को यह कह कर चढ़ने नहीं देते हैं कि अंदर भीड़ है।

एक वाकया ऐसा भी है, जो इन सबसे अलग है,  रात के लगभग 10 से 10:30 बीच ट्रेन में भीड़ कम थी। बांद्रा से एक गोरी चिट्टी बुढ़ी महिला (जो दिखने में ठीक-ठाक घर से लग रही थी) एक नौजवान युवक के साथ चढ़ी। युवक लंगड़ा रहा था, चढ़ते ही महिला हाथ में एक पुराना से कागज जो शायद किसी डॉक्टर का अप्रूव पेपर था (पता नहीं फर्जी था या असली) लहरा कर कहने लगी, बच्चे के इलाज के लिए कुछ दे दो, बच्चे के इलाज के लिए कुछ दे दो, कह कर लोगों के सामने हाथ फ़ैलाने लगी। लोग उसे देख कर 10 या 5 रूपये देने लगे। मेरे ख्याल से उस बोगी में बैठे सभी लोगों ने उसे कुछ न कुछ दिया। 

और जब यह महिला चढ़ी ठीक उसी समय दूसरे गेट से एक और महिला चढ़ी, मलिन चेहरा, मैले कुचैले कपड़े पहने, गोद में एक नवजात शिशु को साथ लिए, एक हाथ में दूध का बोतल जो शिशु के मुंह में था जबकि दूसरा हाथ लोगों के सामने फैला हुआ था। यकीन मानिये पूरी बोगी घूमने के बाद भी उस महिला को किसी भी यात्री ने कुछ नहीं दिया। जबकि कुछ सेकंड पहले ही युवक के साथ चढ़ी उस दूसरी महिला को सभी ने कुछ न कुछ पैसे दिए थे। इसीलिए कुछ भी हो इस भीड़ को समझ पाना मुश्किल है।

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