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कर्मयोगी आमटे के आंगन का 'अचंभा'

जब मैं मृत्यु शय्या पर रहूंगी, उस वक्त आनंदवन में दस लाख वृक्ष लगे, ऐसी विचारधारा रखने वाली डॉ शीतल आमटे का आत्महत्या करना सभी को परेशान कर रहा है।

कर्मयोगी आमटे के आंगन का 'अचंभा'
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समाजसेवी, कर्मयोगी, दूसरों के लिए अपने जीवन को समर्पित करन वाले डॉ मुरलीधर देवीदास आमटे की पोती डॉ शीतल आमटे (sheetal amte suicide) ने अचानक आत्महत्या करके कर्मयोगी के आंगन आनंदवन से एक ऐसे अचम्भे को बाहर निकाला है, जिसने यह बात अच्छी तरह समाज को बता दी है कि कौन कहता है कि आनंदवन में निराशा, हताशा, उदासी, उदासीनता जैसी बातें नहीं होती। डॉ शीतल आमटे के पास क्या नहीं था, दौलत, शोहरत, मान-सम्मान सब कुछ, फिर आनंदवन (anand van) की सीईओ को आत्महत्या करने जैसा कदम क्यों उठाना पड़ा, यह सवाल लगातार उठाया जा रहा है। जिस समाजसेवी बाबा आमटे (baba amte) का नाम न केवल भारत अपितु पूरे विश्व में बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता था, जिस व्यक्ति का नाम देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न की सूची में शामिल हो सकता था, उस बाबा आमटे के आनंदवन के आंगन से आत्महत्या की खबर बाहर आना निश्चय ही बहुत दु:खद बात है। 

आनंदवन और आत्महत्या इस बात पर यकीन करना मुश्किल है, लेकिन कभी-कभी कुछ बातें ऐसी हो जाती हैं, जिसका भले ही किसी को यकीन न हो, लेकिन उसे कड़वे सच की तरह यकीन करना ही पड़ता है। कुछ इसी तरह का कड़वा सच कर्मयोगी बाबा आमटे के आनंदवन से बाहर आया तो लोगों के बीच से यह सवाल उठा कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि डॉ शीतल आमटे (करजगी) ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। बाबा आमटे के पुत्र डॉ विकास आमटे तथा भारती आमटे की सुपुत्री तथा आनंदवन के महारोगी सेवा समिति की मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ शीतल आमटे (करजगी) ने विषैला इंजेक्शन लगाकर आत्महत्या (suicide) कर ली।   

बाबा आमटे जैसे समाजसेवी की पोती द्वारा इस तरह का कदम उठाना सभी को हैरान तथा बेचैन कर रहा है। आत्महत्या करने के पीछे का मुख्य कारण क्या था, इसका पता तो अभी कर नहीं लग लग सका है, लेकिन कहा यह जा रहा है कि डॉ शीतल आमटे ने निराशा के कारण आत्महत्या की। कर्मयोगी बाबा आमटे तथा उनकी पत्नी साधना आमटे ने अपनी जीवन में जो कुछ भी हासिल किया। उस पर डॉ शीतल आमटे द्वारा उठाए गए कदम ने एक ऐसी दाग लगाया कि लोगों के बीच से लगातार यह पूछा जा रहा है कि आखिर बाबा आमटे की पोती को ऐसा क्या गम था कि उसे आत्महत्या जैसा आतामघाती कदम उठाना पड़ा।     

'श्रम ही श्रीराम है’ इस लक्ष्य को सामने रखकर बाबा आमटे ने अपना पूरा जीवन दीनदुखियों की सेवा में लगा दिया था। अपने दादा की तरह शीतल में भी परिश्रम करने की अपार क्षमता थी वह भी अपने दादा की तरह ऊंची उड़ान भरना चाहती थी, लेकिन वह अपनी उड़ान की गति बहुत तेज रखना चाहती थी, वह चाहती थी कि उसे सब कुछ तेज गति से मिल जाए। वह अपने पति गौतम करजगी जैसे समक्ष साथीदार के साथ आनंदवन को नवा चेहरा देने की कोशिश करने लगी, लेकिन उसके इस कार्य से कुछ लोग बहुत उत्साही हुए तो कुछ लोग नाराज भी हुए। लगातार आनंदवन और सिर्फ आनंदवन के कारण उनके तथा परिवार के लोगों को बीच टकराव की स्थिति पैदा हुई और इस वजह से डॉ शीतल आमटे (करजगी) के मन में निराशा का बीज उत्पन्न हुआ। 

जब मैं मृत्यु शय्या पर रहूंगी, उस वक्त आनंदवन में दस लाख वृक्ष लगे, ऐसी विचारधारा रखने वाली डॉ शीतल आमटे का आत्महत्या करना सभी को परेशान कर रहा है। अमेरिका के हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा लेने वाली डॉ. शीतल आमटे ने अपनी 39 वर्ष की आयु में कई पुरस्कार प्राप्त किए थे।  

आश्चर्य में डालने वाली इस घटना के बारे में महारोगी सेवा समिति से जुड़े लोगों का कहना है कि डॉ. शीतल आमटे बीते कुछ दिनों से काफी परेशानी थी। शीतल आमटे अपने घर में अचेतावस्था में मिली, उन्हें वरोरा के उप जिला अस्पताल में इलाज के लिए ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। 

पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी से यह पता चला है कि डॉ. शीतल आमटे के शरीर के पास से जहरीले इंजेक्शन बरामद हुए हैं, ऐसे में यही आशंका व्यक्त की जा रही है कि डॉ. शीतल ने जहरीला इंजेक्शन लगाकर आत्महत्या की है। डॉक्टर शीतल आमटे को जनवरी 2016 में विश्व आर्थिक मंच की ओर से 'यंग ग्लोबल लीडर 2016' के रूप में चुना गया था। डॉ मुरलीधर देवीदास आमटे, जिन्हें बाबा आमटे के नाम से जाना जाता था, उन्होंने समाज के उपेक्षित लोगों और कुष्ठ रोगियों के लिए अनेक आश्रमों और समुदायों की स्थापना की थी। बाबा आमटे ने अनेक सामाजिक कार्यों जैसे वन जीवन संरक्षण तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी।

 9 फरवरी, 2008 को बाबा आमटे का 94 साल की आयु में चंद्रपुर जिले के वरोरा स्थित अपने निवास में निधन हुआ था। डॉ शीतल आमटे की आत्महत्या की घटना ने न केवल वरोरा बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। 

देर रात तक घटनास्थल पर जांच पडताल जारी रही। 

बताया जा रहा है कि पिछले कुछ माह  से आनंदवन में अस्थिरता का वातावरण निर्माण होने की बात सोशल मीडिया के माध्यम से सामने आ रही थी। इस आधार पर लोगों का कहना है कि आनंदवन में शुरु हुआ परिवार विग्रह का दौर डॉ शीतल की आत्महत्या तक पहुंच गया। डॉ शीतल आमटे इस पूरे घटनाक्रम में एकदम अकेली पड़ गई थीं, उनका साथ देने वाला कोई नहीं था, इसलिए निराश होकर डॉ शीतल ने आत्महत्या करने जैसा आत्मघाती फैसला किया।   

जिला प्रशासन ने कोरोना विषाणु के विरोध में लड़ने के लिए समाज के अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े लोगों से कोरोना योद्धा के रूप में शामिल होने की जिस वक्त अपील की थी, उस वक्त कोरोना योद्धा के रूप में डॉ. शीतल आमटे को भी शामिल किया गया था, उनके अच्छे कार्य के लिए उन्हें स्वतंत्रता दिवस के मौके पंचायत समिति वरोरा की ओर से सम्मानित भी किया गया था। 

डॉ. शीतल आमटे की आत्महत्या का समाचार मिलते ही आमटे परिवार के लोग गडचिरोली जिले के हेमलकसा से शाम को आनंदवन में पहुंचे। 

डॉ. शीतल आमटे के पिता डॉ. विकास आमटे, मां भारती आमटे, भाई कौस्तुभ आमटे, पल्लवी आमटे के साथ डॉ. प्रकाश आमटे, डॉ. मंदाकिनी आमटे, दिगंत आमटे आनंदवन में आते ही घर में चले गए,  घऱ के लोगों ने घटना के बारे में किसी से भी बातचीत नहीं की।डॉ. शीतल आमटे के पार्थिव शरीर का आनंदवन में बाबा आमटे के समाधि स्थल के बगल में अंतिम संस्कार कर दिया गया।  

वरिष्ठ समाज सेवक बाबा आमटे तथा साधना आमटे ने 1949 में आनंदवन की स्थापना की। यह आनंदवन समाज द्वारा अस्वीकार किए गए कुष्ठरोगियों के लिए अधिकृत आश्रय स्थल बन गया। इसी आनंदवन में बाबा आमटे ने कुष्ठ रोगियों की निस्वार्थ सेवा केली, उनमें जीने की नई आशा का संचार किया, उनमें जीवन को नई तरह से जीने की लालसा पैदा की। बाबा आमटे के साथ उनकी पत्नी साधना आमटे ने भी कुष्ठ रोगियों में जीवन जीने की ज़ज्बा भरा। बाबा आमटे तथा उनकी पत्नी ने बड़ी मेहनत से आनंदवन खड़ा किया। समाज की ओर से अस्वीकार किए गए लोगों के लिए आनंदवन मालिकाना आश्रयस्थल जैसा बन गया था, जो भी कुष्ठरोगी यहां रहने के लिए आता था, उसे इस बात का पूरा भरोसा रहता था कि यहां उसे सम्मान के साथ दो वक्त की रोटी मिलेगी और उसके रोग का उपचार भी होगा। 

बाबा आमटे तथा उनकी पत्नी साधना आमटे के निधन के बाद आनंदवन का कामकाज का दायित्व उनके सुपुत्र विकास आमटे को सौंपा गया, उन्होंने कुछ दिनों तक  आनंदवन का कामकाज देखा, उसके बाद उनके पुत्र कौस्तुभ आमटे की महारोगी सेवा समिति पर नियुक्ति की गई। इस समिति में बाबा की सुपुत्री शीतल आमटे (करजगी) को भी स्थान दिया गया। आमटे परिवार के बीच के विवाद का मुख्य कारण आनंदवन के कामकाज में बाबा आमटे के पोते की जगह पोती को दिए जाने के कारण हुआ, ऐसा आनंदवन के आसपास रहने वालों का दावा है। सच क्या है और क्या झूठ है, इसकी पड़ताल तो देर सबेर हो ही जाएगी, लेकिन बाबा आमटे जैसे समाजसेवी के परिवार में इस तरह का विवाद और आत्महत्या की घटना होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। 

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