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जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड का बर्खास्त होना आम लोगों पर सरकार के हावी होने की निशानी है!


जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड का बर्खास्त होना आम लोगों पर सरकार के हावी होने की निशानी है!
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जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल यानी की आईसीसी ने रद्द कर दिया है। इसका मतलब ये है की आनेवाले समय में जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड को आईसीसी की ओर से कोई भी मदद नहीं दी जाएगी और साथ ही आईसीसी के अंतर्गत आनेवाली किसी भी टीम से जिम्बाब्वे टीम का मुकाबला नहीं हो सकता है।  निलंबन के बाद अब आईसीसी की फंडिंग रुक जाएगी और इसकी टीम आईसीसी के किसी भी ईवेंट में भाग नहीं ले पाएगी

आईसीसी का कहना है की  क्रिकेट के प्रशासन में सरकार के दखल को दूर करने में जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड नाकाम साबित हुआ है जिसके कारण आईसीसी ने जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड को बर्खास्त कर दिया है।  दरअसल जिम्बाव्वे क्रिकेट बोर्ड का बर्खास्त होना किसी बोर्ड का बर्खास्त होने नही है। बल्की उस देश में सरकार का  आम आदमी पर हावी होना है।  जिम्बाव्वे देश की मौजूदा स्थिती काफी खराब है। 

देश में मंहगाई ने आसमान छू लिया है।  देश में पिछलें कई सालों से राजनीतिक उठापठक चल रही है।जिम्बाब्वे क्रिकेट लंबे समय से देश में जारी राजनीतिक उथलपुथल का शिकार रहा है। 

सरकार का जारी है दखल

जिम्बाव्वे की सरकार ने पिछलें महिने जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था।  जेडसी के कार्यकारी मैनेजिंग डायरेक्टर गिवमोर मैकोनी को भी उनके पद से निलंबित कर दिया गया। जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड की चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी शिकायतों और जिम्बाब्वे क्रिकेट के संविधान उल्लंघनों की शिकायतों और कई अन्य विवादों के बाद एसआरसी ने   जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड के चुनावों को निलंबित करने को कहा था।

हालांकी क्रिकेट बोर्ड ने इन निर्देशों को नजरअंदाज किया और तावेंगवा मुखुलानी  को चार वर्षों के लिए फिर से चुन लिया गया था। जिसके बाद क्रिकेट बोर्ड और सरकार ने तनातनी शुरु हो गई। सरकार ने अपने अधिकारो का उपयोग कर  जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड को निलंबित कर दिया और सरकार के कई नुमांइंदे डेविड एलमैन-ब्राउन, अहमद इब्राहिम, चार्ली रॉबर्टसन, साइप्रियन मैनडेंगे, रॉबर्टसन चिंयेंगेटेरे, सिकेसई नोकवारा और डंकन फ्रॉस्ट को देश में क्रिकेट के संचालन के लिए गठित अंतरिम समिति में शामिल किया गया।


खिलाड़ियों ने भी किया है विरोध

कभी अंतरराष्ट्रीय खेल में जिम्ब़ाव्वे के क्रिकेट टीम को एक मजबूत टीम के रुप में जाना जाता था।  लेकिन जैसे जैसे वहां के राजनीतिक हालात बदले वैसे वैसे इसका असर खिलाड़ियों पर भी पड़ने लगा। क्रिकेट टीम ने धीरे धीरे अपना अच्छा प्रदर्शन करना मानो भूल सी ही गई। सरकार विरोध में कई खिलाड़ियों ने भी  आवाज उठाई। एंडी फ्लावर, हेनरी ओलोंगा और ताइतेंदा तायबू ने देश के प्रशासन में जारी भ्रष्टाचार के विरोध में खेल को अलविदा कह चुके हैं। इन खिलाड़ियों को मौत की धमकी के कारण देश छोड़ने को विवश होना पड़ा।

देश की खराब हालत

पिछलें दशको में जिम्बाव्वे देश की हालत काफी खराब हुई है।  पिछले 20 साल के दौरान जिम्बाब्वे के हजारों लोग देश में आर्थिक संकट की वजह से रोजी रोटी की तलाश में विदेश जा चुके हैं। जिम्बाब्वे के पूर्व राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे ने  बीते 37 वर्षों सालों तक  ज़िम्बाब्वे की कमान संभाले रखी। उनके कार्यकाल में देश की स्थिती काफी खराब होने लगी।  देश में महंगाई बढ़ने लगी, रोजगार घटना लगे ईंधन के दाम महंगे होने लगे।  लोगों की रोजमर्रा से  जुड़ी चीजों पर सीधे महंगाई का असर होने लगा।  

साल 2017 में जनता के बढ़ते विरोध और अंतराष्ट्रीय समुदाय के दबाव के कारण उन्होने अचानक इस्तीफा दे दिया।  जिम्बॉव्वे की फ़ौज मुगाबे के ख़िलाफ़ हो गई जिसके सहारे उन्होंने वर्षों तक विपक्ष और विरोधियों पर नकेल कस रखी थी।  फौज को इस बात की भी नाराजगी थी की मुगाबे  ने लंबे समय से उनके साथ रहे उपराष्ट्रपति एमर्सन मनांगाग्वा को हटा दिया था। फौज को शक था की कही मुगाबे ये पद अपनी पत्नी को ना दे। 

एमर्सन मनांगाग्वा बने राष्ट्रपति

मुगाबे के इस्तीफे के बाद  उन्ही के कार्यकाल में उपराष्ट्रति रहे एमर्सन मनांगाग्वा को राष्ट्रपति घोषित किया गया। कुर्सी पाने के पहले उन्होने जनता से तमाम वादे किये थे। देश में खुशहाली लाने की, महंगाई कम करने की , रोजगार बढ़ाने की और भी कई वादे लेकिन उनके सत्ता में आने के बाद भी देश की स्थिती कुछ खास नहीं बहली। 

स्थिती हुई और भी खराब

एमर्सन मनांगाग्वा के आने के बाद भी देश की राजनीतिक स्थिती में कोई सुधार नहीं हुआ। विपक्षी पार्टियों के नेताओं को परेशान करना और सैनिकों के दम पर अपने विरोधियों का शांत कराना जैसे काम अब भी बदस्तूर जारी है। राष्ट्रपति एमर्सन मनांगाग्वा के कार्यकाल में स्थिति और खराब हो गई है। महंगाई के साथ साथ देश में राजनीतिक अस्थिरता भी बढ़ती गई। आम लोगों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है और सरकार देश के हर संस्थान में चाहे वह देश के अंदरुनी मामले हो या फिर क्रिकेट के , हर संस्थान में सरकार अपने व्यक्तियों को बैठाना चाहती है। 

क्रिकेट में सरकार के बढ़ते दखल को देखते हुए कई खिलाड़ियों ने इसका विरोध किया , लेकिन अंत में आईसीसी ने जिम्बॉव्वे क्रिकेट बोर्ड में बढ़ते राजनीतिक प्रभाव को देखते हुए इसपर बैन लगा दिया। 

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