महाराष्ट्र के स्कूली शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने राज ठाकरे से मुलाकात की। दोनों के बीच आधे घंटे तक चर्चा हुई। हालांकि राज ठाकरे अपने रुख पर अड़े हुए हैं। राज्य में पहली कक्षा से स्कूली शिक्षा में त्रिभाषा फार्मूले के अनुसार हिंदी लागू की जा रही है और राज ठाकरे इसके विरोध में हैं।
राज ठाकरे के विरोध को खत्म करने के लिए दादा भुसे ने राज ठाकरे से मुलाकात की। हालांकि मुलाकात के बाद दादा भुसे ने साफ किया कि राज ठाकरे अभी भी अपने रुख पर कायम हैं। अब राज ठाकरे ने भी अपना रुख साफ किया है और हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ सरकार को बड़ी चेतावनी दी है। राज ठाकरे ने साफ किया कि वह 6 जुलाई को सुबह 10 बजे हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ मार्च निकालेंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि इस मार्च में सभी दलों को शामिल होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह मार्च रविवार को ही निकाला जा रहा है और इसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल होना चाहिए। राज ठाकरे अब त्रिभाषावाद के खिलाफ मैदान में उतरते नजर आ सकते हैं। अगर मुझे भुसे से मिलना है तो मैं आजाद मैदान में उनसे मिलूं। राज ठाकरे ने सीधे तौर पर कहा कि हिंदी की अनिवार्यता भाषाई आपातकाल है।
राज ठाकरे ने आगे बोलते हुए कहा कि दादा भुसे ने अपनी स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की। हम इस भाषाई आपातकाल को स्वीकार नहीं करेंगे। छोटे बच्चों पर हिंदी की अनिवार्यता नहीं थोपी जा सकती। मूल रूप से हम किसी भाषा के खिलाफ नहीं हैं। शिक्षा मंत्री की भूमिका अस्वीकार्य है। जब तक अनिवार्यता वापस नहीं ली जाती, तब तक आंदोलन चलता रहेगा। राज ठाकरे एक बार फिर कहते दिखे कि हम इस पूरी बात के पूरी तरह से खिलाफ हैं। राज ठाकरे यह साफ करते दिखे कि हम हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ हैं और रहेंगे।
महाराष्ट्र में किसी भी भाषा को जबरन थोपने की इजाजत नहीं दी जाएगी। भुसे के पास मेरे कई सवालों के जवाब नहीं थे। 6 तारीख को होने वाले मार्च के बारे में बात करते हुए राज ठाकरे ने कहा, मेरी सभी राजनीतिक पार्टियों से अपील है कि वे इस मार्च में हिस्सा लें और इस मार्च में किसी भी पार्टी का झंडा नहीं होगा, पूरा मार्च मराठी लोगों का होगा। हम उन लोगों से भी बात करेंगे जो शिक्षा विशेषज्ञ और लेखक हैं, उन्हें पत्र भेजे जाएंगे। राज ठाकरे ने कहा कि हम उस मार्च में सभी को आमंत्रित करेंगे, माता-पिता भी उस मार्च में होंगे।
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