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मुंबई के साल 2018 रहा विरोध और प्रदर्शनों का साल

पिछलें साल किसानों के साथ साथ कई अन्य समुदाय के लोगों ने भी मुंबई के आजाद मैदान में अपनी मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया है

मुंबई के साल 2018 रहा विरोध और प्रदर्शनों का साल
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भारत के बेहतरीन कॉरपोरेट्स और फाइव-स्टार होटल होने के कारण मुंबई लोगों के लिए एक सपनों का शहर है। यह उन लाखों लोगों के लिए भी एक उम्मीद है जो महाराष्ट्र के अलग अलग कोने से विरोध प्रदर्शन करने के लिए आते है। जहां एक ओर इस शहर में कॉर्पोरेट और बॉलीवुड की चमक धमक है तो वहीं दूसरी ओर लोगों को अपने अधिकार के लिए आवाज उठाने का मौका भी ये शहर लोगों को देता है।

साल 2018 में किसानों , दलित और सामाज के अन्य पिछलें लोगों ने अपना हक पाने के लिए मुंबई में जमा हुए और इसका विरोध प्रदर्शन किया। विरोध और प्रदर्शन लोकतंत्र में एक अहम हिस्सा होते है। जिस देश में लोगों को विरोध और प्रदर्शन करने की इजाजत नहीं होती वहां लोकतंत्र अपना दम तोड़ देता है।

राज्य सबसे शक्तिशाली संस्थानों में से एक है, जो अपने नीतियों के माध्यम से समाज को एक अधिकार और जवाबदारी देने का कार्य करता है। 20वीं सदी के सबसे बड़े विचारको मे से एक कार्ल हेनरिक्स मार्क ने कहा है की
पूंजीवादी समाज में उत्पादन के साधन सिर्फ कुछ लोगों के हाथों में ही सिमित रह जाते है और बाकी वर्ग इससे पिड़ित रहते है। मार्क्स ने कहा कि एक पूंजीवादी समाज हमेशा हमेशा अपने फायदे के लिए सोचता है, जिससे लोगों को उचित श्रम नहीं मिलता है।

आंगनवाड़ी शिक्षकों और श्रमिकों की दुर्दशा

महाराष्ट्र में, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और शिक्षक 2010 से राज्य सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और अपने वेतन में वृद्धि के साथ साथ समय पर भुगतान करने की मांग कर रहे हैं। आंगनवाड़ी शिक्षकों और श्रमिकों ने इस साल कई बार आजाद मैदान में विरोध प्रदर्शन किया ।

प्रदर्शनकारियों का कहना है की उन्हे कई सालों से समय पर भूगतान नहीं मिला है। श्रमिको को बच्चों को पढ़ाने के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ रहे है। इसके अलावा, प्रदर्शनकारियों ने कहा कि जिला परिषद स्कूलों में 670 छात्रों के लिए केवल नौ शिक्षक हैं। । राज्य के लगभग 36 जिलों में, ऐसे कई शिक्षक हैं जो अवैतनिक रूप से काम करते हैं और कुछ को नौकरी शुरु होने के बाद से उनको अभी तक पगार नहीं दी गई है।

इससे पहले मार्च 2018 में, महिला और बाल कल्याण विकास विभाग मंत्री पंकजा मुंडे ने महाराष्ट्र आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम (MESMA) के तहत आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को लाने का फैसला किया था। जिसके विरोध के बाद, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को यह निर्णय स्थगित करना पड़ा।

इससे पहले सितंबर 2018 में, केंद्र सरकार ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को दिए जाने वाले मानदेय में वृद्धि का आदेश दिया था। हालांकि, इस साल दिसंबर में, एक हजार आंगनवाड़ी कार्यकर्ता केंद्र सरकार के आदेश मे देरी करने के लिए राज्य सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि अगर उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो वे हड़ताल और जेल भरो आंदोलन करेंगे।

किसान लॉन्ग मार्च

भारत में मौजूदा समय में कृषि संकट की हालत इतनी खराब है की देश में 76 फिसदी किसान खेती छोड़ना चाहते है। वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ, जो दशकों से किसान आत्महत्या और संकटों पर रिपोर्टिंग कर रहे थे, ने दावा किया था कि आज देश जिस संकट का सामना कर रहा है, उसे "सभ्यता और सामाजिक संकट" के रूप में बताया जा सकता है।

कई विशेषज्ञों का दावा है कि आजादी के बाद से भारत मौजूदा समय में प्रमुख कृषि संकटों में से एक का सामना कर रहा है। इसके मद्देनजर, इस साल देश भर में किसान विरोध प्रदर्शन करते देखे गए।

इससे पहले मार्च 2018 में, नासिक से 50,000 से अधिक किसानों ने मुंबई की ओर कूच किया, जिनमें से कई नंगे पैर थे और 180 किलोमीटर लंबा मार्च किया। मार्च में, किसान वित्तीय राजधानी में आजाद मैदान में इकट्ठा हुए, जहां वे महाराष्ट्र सरकार द्वारा उन्हें पूर्ण कर्ज माफी का आश्वासन देने तक अड़े रहे। किसानों ने फडणवीस सरकार से यह भी मांग की कि वे उन जमीनों का मालिकाना हक दे जिनपर वह खेती कर रहे है।

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