Advertisement

हाइकोर्ट के विवादित फैसले के बाद कॉलेजियम सिस्टम पर फिर उठे सवाल

कोर्ट के फैसले के बाद पॉस्को एक्ट को लेकर भी इसमें संशोधित करने की बातें की जा रही हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि, हमारे कानूनों में निश्चित ही बहुत सारी कमियां हैं जिनका जल्द ही समाधान होना आवश्यक है।

हाइकोर्ट के विवादित फैसले के बाद कॉलेजियम सिस्टम पर फिर उठे सवाल
SHARES

अभी हाल ही में मुंबई हाईकोर्ट (bombay high court) ने जिस तरह से एक के बाद एक अजीबोगरीब फैसला दिया था, उससे सभी लोग हैरान थे। कोर्ट ने एक के बाद एक तीन फैसले ऐसे दिए, जो काफी सुर्खियों में रहे, इनमें से तो एक फैसले पर तो सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने रोक लगा दी। यह फैसला दिया था, नागपुर बेंच की मुंबई हाईकोर्ट की जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला वाला ने। पुष्पा गनेड़ीवाला नेे एक शख्स को अपने अजीब फैसले के कारण बरी कर दिया।

दरअसल यह आरोपी पॉस्को एक्ट (pocso act) के तहत गिरफ्तार किया गया था। इस 50 वर्षीय आरोपी पर एक नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म करने का प्रयास के तहत मामला दर्ज था। इस केस की सुनवाई में आरोपी को पॉस्को एक्ट के तहत सुनाई गई सजा को न्यायमूर्ती ने रद्द कर दिया गया। साथ ही उसे सिर्फ आईपीसी की धारा 354 के तहत दोषी माना गया है।

इस फैसले में जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने कहा कि, नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना उसके साथ दुराचार की श्रेणी में नहीं आता। जस्टिस ने कहा, किसी महिला या लड़की के स्तन को कपड़े के ऊपर से दबाने पर उसे यौन हमला नहीं माना जाएगा, जब तक कि स्किन टू स्किन कांटेक्ट (skin to skin contact) नहीं होता, यानी आरोपी के हाथ पीड़ित महिला या लड़की के त्वचा को डायरेक्ट टच नहीं करते हैं। हाईकोर्ट ने इस मामले को यौन हमले की श्रेणी देने से इनकार किया और इनकार का आधार सिर्फ यही था कि आरोपी ने उस बच्ची को स्किन टू स्किन नहीं छुआ था। इस मामले में कोर्ट का कहना है कि यौन अपराध (Sexual offence) की श्रेणी में आने के लिए प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क होना आवश्यक है।

यही नहीं हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि, यदि आरोपी किसी लड़की का हाथ पकड़ता है और उसके पेंट की जिप खुली होती है तो इसे भी यौन हमला नहीं माना जाएगा। हालांकि इसे आईपीसी की धारा 354 के तहत अपराध माना गया है और इसके लिए अधिकतम 3 साल की सजा आरोपी को दी जाएगी।

आरोपी शख्स पर पहले पोक्सो एक्ट की धारा 10 के आधार पर 5 वर्ष की सजा वह ₹25000 के जुर्माने का प्रावधान था, लेकिन जिस लड़की के साथ यह घटना हुई उसकी मां की दोबारा अपील करने पर इस केस में दोबारा सुनवाई हुई। जिसमें कोर्ट ने इसे यौन अपराध न मानकर आईपीसी की धारा 354 ए के अंतर्गत माना और पोक्सो एक्ट की धाराओं को रद्द कर दिया। 

बाद में इस फैसले को लेकर जब हो हल्ला शुरू हुआ तो, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। कोर्ट के इस फैसले को लेकर ऐसा माना जा रहा था कि, इस तरह के फैसले से अपराधियों के हौसले को और बल मिलेगा, वे कानून की कमजोरी का फायदा उठा कर किसी के भी साथ मनमानी करेंगे।

इस तरह से किसी भी अपराधी की मानसिकता यह होगी कि वह किसी महिला या नाबालिग बच्ची को भी गलत मंशा से छू सकेगा। उसे सिर्फ यही ख्याल रखना होगा कि, स्किन टू स्किन संपर्क ना हो।

इस तरह के फैसले किसी भी सभ्य समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। इस घटना के बाद से तो कोलेजियम सिस्टम पर ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कई बुद्धिजीवी इसे खत्म करने की मांग कर रहे हैं। तो कई लोग इसे कानून का नेपोटिज्म कह कर इसकी आलोचना कर रहे हैं।

गौरतलब है कि, कॉलेजियम सिस्टम के तहत कोई भी तीन जजों की बेंच मिलकर किसी एक शख्स को नियुक्त करती है। और यदि तीनों जज उस पर सहमत हो जाए तो उस व्यक्ति को न्यायपालिका में आने का अधिकार प्राप्त होता है। लोग इसी प्रक्रिया को न्याय पालिका में नेपोटिज्म (nepotism) का एक प्रकार कह रहे हैं। इसलिए लोगों का यह कहना है कि, इस तरह के सिस्टम का हमारी न्यायपालिका से खत्म होना बेहद आवश्यक है।

कोर्ट के फैसले के बाद पॉस्को एक्ट को लेकर भी इसमें संशोधित करने की बातें की जा रही हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि, हमारे कानूनों में निश्चित ही बहुत सारी कमियां हैं जिनका जल्द ही समाधान होना आवश्यक है।

संबंधित विषय
Advertisement
मुंबई लाइव की लेटेस्ट न्यूज़ को जानने के लिए अभी सब्सक्राइब करें