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Exclusive: प्रवासी ही लूट रहे हैं प्रवासी मजदूरों को, नालासोपारा से ओशीवारा तक ऑटो का किराया 1500 रुपए

कलीम की तरह न जानें कितने लोग पता नहीं कहां-कहां से इस लॉकडाउन में आये होंगे और ऑटो चालकों की ज्यादतियों का शिकार हुए होंगे। हैरान करने वाली बात यह है कि इस लूट-खसोट में उत्तर भारतीय ऑटो-टैक्सी चालक भी शामिल हैं।

Exclusive: प्रवासी ही लूट रहे हैं प्रवासी मजदूरों को, नालासोपारा से ओशीवारा तक ऑटो का किराया 1500 रुपए
प्रतीकात्मक तस्वीर
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प्रवासी मजदूर (migrant worker) सरकारी उपेक्षा के साथ-साथ सरकारी अव्यवस्था के भी शिकार हो रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण शुक्रवार को ओशीवारा पुलिस स्टेशन (oshiwara police station) के बाहर देखने को मिला, जहां सैकड़ों मजदूरों को उनके गांव जाने के लिए बुलाया गया था, लेकिन जब मजदूर वहां पहुंचे तो उन्हें पुलिस ने यह कहते हुए उल्टे पांव लौट दिया कि 'ट्रेन कैंसिल हो गयी है। आज कोई ट्रेन नहीं जाएगी।' इन मजदूरों में तो कुछ ऐसे थे जो नालासोपारा (nallasopara) से आए थे और इसके लिए उन्होंने ऑटो वाले को 1500 रुपये दिए थे।

मूलरूप से बनारस के रहने वाले मोहम्मद कलीम ओशीवारा इलाके में लकड़ी के कारखाने में काम करके खुद का पेट पालते थे। लेकिन कुछ साल पहले कलीम ने नालासोपारा में एक किराए का झोपड़ा लेकर गांव से अपनी पत्नी और 2 छोटे बच्चों को भी बुला लिया था। कली म नालासोपारा में ही लकड़ी का काम करने लगे थे, लेकिन उनके गांव के कई लोग अभी भी ओशीवारा में ही रहकर काम करते थे।

सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन कोरोना वायरस कलीम के परिवार पर दुखों का पहाड़ बन कर टूट पड़ा। कलीम पिछले 2 महीने से घर पर बैठे हैं, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से लकड़ी का कारखाना बंद है। इसी बीच जोनकुच घर मे पैसे जमा थे वे भी खत्म हो गए। लोगों को गांव जाता देख कलीम ने भी गांव जाने की सोची और ओशीवारा में अपने सगे संबंधियों की सहायता से परिवार का नाम भर कर फॉर्म जमा कर दिया।

4 दिन बाद गांव जाने के लिए कलीम का नंबर आ गया। जब लोगों ने कलीम को यह बात बताई तो वे खुश हो गए। लेकिन बड़ी समस्या नालासोपारा से ओशीवारा आने की थी। कई ऑटो चालक और टैक्सी चालक से संपर्क करने के बाद भी कोई तैयार नहीं हो रहा था, और जो तैयार हुए भी वे काफी अधिक पैसा मांग रहे थे। 

मरता क्या न करता, कलीम ने 1500 रुपये में एक ऑटो वाले वाले को तैयार किया और किसी तरह से शुक्रवार की सुबह 9 बजे ओशीवारा पहुँचे, जहां उनके लोग उनका

इंतजार कर रहे थे। धूप में एक घंटा खड़ा रहने के बाद अचानक पुलिस की तरफ से ट्रेन के कैंसिल होने की घोषणा की गई। यह सुनते ही कलीम के पैरों तले जमीं खिसक गई।

पुलिस कर्मचारी ने बताया कि, अगली सूचना जल्द फोन द्वारा सब को बताया जाएगी। अब कलीम करें तो क्या करें। एक-दो दिन के लिए वे अपने परिवार सहित अपने पहचान वाले के यहाँ ओशीवारा में ही रुक गये, पुलिस के अगले सूचना के इंतजार में। 

कलीम ने बताया कि, वे पिछले 2 महीने से घर में बैठे हैं, जो जमा पूंजी थी उसी से खर्चा चल रहा था। जो थोड़े बहुत पैसे बचे थे वे भी धीरे धीरे खर्च हो जा रहे हैं। ऊपर से रोजा चल रहा है। ऐसे में 1500 रुपए व्यर्थ ही चले जाना, जान जाने जैसा है।

कलीम ने सरकारी व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा आखिर जब ट्रेन कैंसिल ही करनी थी तो फोन करके बुलाया क्यों? पुलिसिया रोब देख कर उनकी हिम्मत नहीं हुई कि वे पुलिस से कुछ पूछ सकें।

यह कहानी सिर्फ कलीम की ही नहीं है, कलीम की तरह न जानें कितने लोग पता नहीं कहां-कहां से इस लॉकडाउन में आये होंगे और ऑटो चालकों की ज्यादतियों का शिकार हुए होंगे। हैरान करने वाली बात यह है कि इस लूट-खसोट में उत्तर भारतीय ऑटो-टैक्सी चालक भी शामिल हैं।

इस बारे में एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि, ट्रेन कैंसिल होने की सूचना हमें भी अंतिम समय मे मिली। दरअसल यात्रियों की संख्या काफी अधिक हो गयी थी, जिसके बाद ओशीवारा के यात्रियों को यात्रा करने की अनुमति नहीं दी गयी। एक दो दिन बाद फिर से सभी को सूचित किया जाएगा।

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