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मेरे लिए व्रत की तरह है आरटीआई - अनिल गलगली

मुंबई के आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल गलगली ने कई संवेदनशील मामलों का खुलासा किया है।

मेरे लिए व्रत की तरह है आरटीआई - अनिल गलगली
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1) हाल ही में मशहूर उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस एनर्जी को अडानी ट्रांसमिशन ने 18,800 करोड़ रुपये में ख़रीदा है, लेकिन रिलायंस एनर्जी ने 1451.69 करोड़ रुपये के कई करों का भुगतान महाराष्ट्र सरकार को नहीं किया है। कंपनी ने यह पैसा उपभोक्ताओं से सरचार्ज, टॉस, ग्रीन सेस और सेल्स टैक्स आदि के नाम पर वसूले थे। अगर अब रिलायंस एनर्जी को अडानी ट्रांसमिशन ने ख़रीद लिया है तो 1451.69 करोड़ रुपये का भुगतान कौन करेगा? अब इस पर काफी विवाद हो रहा है। इस बात का खुलासा नहीं होता अगर...


2) इसी साल सदी के महनायक बिग बी यानी अमिताभ बच्चन ने गोरेगांव में स्थित अपने बंगले में अवैध निर्माण कराया था, अनाधिकृत निर्माण की जानकारी होने के बावजूद इस मामले में बीएमसी कोई कार्रवाई नहीं कर रही थी। बाद में इसका काफी विरोध हुआ। इस मामले का खुलासा नहीं होता अगर...



3) इसी साल मुंबई यूनिवर्सिटी में इस बार रिजल्ट को लेकर जो घमासान मचा था उसका कारण उत्तर पुस्तिका चेक करने वाली कंपनी 'मेरिटट्रैक' थी। तमाम खामियों के बावजूद मुंबई यूनिवर्सिटी ने इसी 'मेरिटट्रैक' कंपनी को फिर से उत्तर पुस्तिका जांचने का काम दे दिया था।  जिसका बाद में काफी विरोध हुआ था। इस मामले का खुलासा नहीं होता अगर...

4) भारतीय नौसेना के अड़ियल रवैये के कारण 42 साल तक प्रत्यक्ष डिमार्केशन न होने से डाक विभाग की खरीदी हुई जमीन पर डाक विभाग की बिल्डिंग बनाना संभव नहीं हो पा रहा है। मामला कांजुरमार्ग का है। यह बात सामने नहीं आ पाती अगर...

5) मुंबई यूनिवर्सिटी के कालीना कैंपस की 61 में से 36 बिल्डिंगों को ओसी नहीं दिया गया है। यह चौंकानेवाली जानकारी खुद मुंबई यूनिवर्सिटी ने दी हैं। यह सारी बिल्डिंग वर्ष 1975 से वर्ष 2008 के दौरान बनाई गई हैं। इस मामले को कोई नहीं जान पाता अगर...


अगर मुंबई के आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल गलगली ने जानकारी के अधिकार के तहत (RTI) इन सारी जानकारियों को सामने न लाया होता तो...

यह तो एक बानगी भर हैं फेहरिस्त काफी लंबी है। इस फेहरिस्त में कई ऐसे मामले हैं जो राज्य स्तरीय के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय भी हैं। इन मामलों में महाराष्ट्र बीजेपी के नेता एकनाथ खड़से का 'रामटेक' बंगलों विवाद हो या फिर अभिनेत्री से बीजेपी नेता बनी 'ड्रीम गर्ल' हेमा मालिनी का मुंबई के ओशिवारा में डांस एकेडमी खोलने के लिए लीज पर ली हुई जमीन का मामला। इस फेहरिस्त में गांधी परिवार से जुड़ा नेशनल हेराल्ड मामला भी है तो मुकेश अंबानी और अंटालिया से जुड़ा विवादित मासला भी शामिल है।    

अपनी मधुर मुस्कान से किसी का भी दिल जीत लेने वाले अनिल गलगली वास्तविक जीवन में जितने सीधे साधे और सरल स्वाभाव के हैं भ्रष्टाचारियों के लिए वे उतने ही सख्त मिजाज वाले एक्टिविस्ट, जो किसी भी कीमत पर अपने सिद्धातों से समझौता न करता हो।


'इस तरह हुई सफर की शुरुआत'

2003 में ही यानी केंद्र सरकार द्वारा 2005 में RTI को लागू करने से पहले ही महाराष्ट्र सरकार ने इस कानून को लागू कर दिया था। उसी समय से अनिल ने इस कानून को अपना हथियार बना लिया। अपने सफर की शुरुआत के बारे में जिक्र करते हुए अनिल कहते हैं कि 2002 या 2003 में जब मुंबई एयर पोर्ट पुनर्वास मामला चल रहा था तो उस समय कई स्थानीय लोगों को गोरेगांव के दिंडोशी में घर दिए गए थे लेकिन उन घरों को बेच कर कई लोग फिर से वापस आ गए थे। अनिल कहते हैं कि उस समय हमने RTI के जरिये यह जानने की कोशिश की थी कि कितने लोगों को घर आवंटित हुए थे, उनके नाम क्या-क्या हैं? और कितने लोगों को अभी घर दिया जाना है? और कितने लोग इस सूचि में शामिल हैं?


'सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं'

अनिल गलगली बताते हैं कि RTI के सकारत्मक और नकारत्मक दोनों पहलू हैं। सकरात्मक पहलू के बारे में बताते हुए कहते हैं कि यह कानून जब से लाया गया है तब से अधिकारी फाइल नोटिंग करने लगे हैं यानी वे हर काम को लेकर सचेत रहते हैं, किसी भी फाइल को पास करने से पहले उनकी जवाबदेही बढ़ी है, गलत काम करने वालों को यह मैसेज गया कि इससे उनकी नौकरी जा सकती है। भ्रष्टाचार भी कम हुए हैं। आरटीआई से जानकारी मिलने के बाद तत्काल सरकारी मशीनरी एक्शन में आ जाती है।


'अपने फायदे के हिसाब से उपयोग किया जाता है'

जबकि इसका नकारात्मक पहलू यह है कि इस कानून को लेकर सरकार अभी भी उदासीन है, जो सरकार सरकार सत्ता में रहती है वो आरटीआई का विरोध करती है और विपक्ष इसके समर्थन में रहते हैं। लोग इसे अपने फायदे के अनुसार मनमाना तरीके से यूज करते हैं। इससे आरटीआई को नुकसान होता है। उन्होंने बताया कि राज्य में आरटीआई में मात्र 150 शब्दों की अनिवार्यता है इससे लोग मामले की अधिक जानकारी आरटीआई के तहत नहीं दे पाते, इसका सबसे अधिक नुकसान ग्रामीण इलाको में देखने को मिलता है।


'कुछ ऐसे लोग भी हैं'

अनिल बताते हैं कि जिस RTI से लोगों की पोल खुलने का डर रहता है उसे लेकर सम्बंधित संस्था या व्यक्ति की तरफ से काफी लापरवाही देखने को मिलती है। अमूमन वे आरटीआई को लटकाने लगते है या फिर जवाब देने से बचने लगते हैं। अनिल यह भी बताते हैं कि कुछ ऐसे लोग भी सरकार में हैं जो अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और वे सही-सही जानकारी सही समय पर भी देते हैं।




'सरकार को करना चाहिए यह काम'

सरकार  को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आरटीआई की जानकारी 30 दिन के बजाय 3 दिन में मिले। साथ ही साथ आरटीआई-4 के अंतर्गत जो भी सरकार के पास जानकारी होती है उसे तत्काल अपने वेबसाइट पर अपलोड करना चाहिए। अगर सरकार ऐसा करती है तो आरटीआई डालने वालों की संख्या में कुछ हद तक कमी आ सकती है और लोगों को समय समय पर जानकारी भी मिल जाया करेगी।


'सरकार खुद नहीं चाहती कि लोग इस कानून को जाने'

अनिल जानकारी देते हुए बताते हैं कि महाराष्ट्र में पिछले सात सालों में आरटीआई के प्रचार के लिए मात्र 34 लाख रुपये ही सरकार ने खर्च किये हैं, यानि 4 साल कांग्रेस के और 3 साल बीजेपी के। वे कहते हैं कि सरकार की इस मंशा को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि वे खुद ही नहीं चाहते कि इसकी जानकारी लोगों तक पहुंचे। यही कारण है कि आरटीआई की मूवमेंट कम होती है। अनिल आगे कहते हैं कि होना तो यह चाहिए कि अगर किसी को कोई भी जनकरी लेनी है तो उसे संबंधित विभाग में जाना चाहिए और व्यवस्था के अंतर्गत दो घंटे में ही जानकारी मिल जानी चाहिए, लेकिन अफ़सोस ऐसा है नहीं,सरकार इसके प्रति उदसीन है। सरकार को आरटीआई की जानकारी का जवाब देने की बजाय सरकार को खुद आगे बढ़ कर जवाब देना चाहिए।


'गोपनीयता को बनाते हैं ढाल'

आरटीआई के धुरंधर अनिल गलगली का मानना है कि गोपनीयता का तर्क देकर अकसर उसी बात को छुपाया जाता है जहां चोरी हुई होती है। अगर आप सही हो, ईमानदार हो तो आपको खुद ही आगे आकर जानकारी देनी चाहिए। सरकार यह प्रक्रिया और भी सरल बनानी चाहिए।


'सुरक्षा महत्वपूर्ण मुद्दा'

'व्हीसल ब्लोअर' की सुरक्षा बेहद ही जरुरी है। अनिल कहते हैं कि अगर किसी व्हीसल ब्लोअर को धमकी मिलती है तो पुलिस को उसकी सुरक्षा का इंतजाम करना चाहिए साथ ही 24 घंटे के अंदर धमकी देने वाले शख्स का पता लगा कर उसे गिरफ्तार करना चाहिए। बकौल अनिल इसकी जांच डीसीपी लेवल पर होनी चाहिए और किसी हादसे के बाद फास्टट्रैक कोर्ट के जरिये सुनवाई हो चाहिए।

एक घटना का जिक्र करते हुए अनिल बताते हैं कि एक आरटीआई कार्यकर्ता को धमकी मिली, तो वह पुलिस में कम्प्लेन कराने गया लेकिन पुलिस ने कम्प्लेन नहीं दर्ज की। थोड़े दिन में उस पर जानलेवा हमला किया गया, उक्त कार्यकर्ता ने पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए सरकार के खिलाफ मानवाधिकार आयोग से शिकायत कर दी। मानवाधिकार ने जांच के आधार पर मुआवजे के तौर पर सरकार को उक्त कार्यकर्ता को 10 लाख रूपये देने का आदेश सुनाया।


'हर कोई बुरा नहीं होता'

अकसर सुनने में आता है कि फलां कार्यकर्ता आरटीआई के नाम पर वसूली करते गिरफ्तार किया गया। इस बारे में अनिल गलगली का कहना है कि हर पेशे में अच्छे और बुरे लोग होते हैं, लेकिन बुरे लोगों के कारण कानून में बदलाव नहीं कर सकते। वे आगे कहते हैं कि पिछले 10 सालों से कहीं से भी किसी भी कार्यकर्ता के द्वारा अवैध वसूली का कोई मामला सामने नहीं आया है। अकसर शिकायत वही करता है जो गलत काम करता है, वर्ना यह मात्र एक अफवाह ही साबित होती है। गलगली के अनुसार अगर कोई कार्यकर्ता सही में किसी से अवैध मांग करता है तो उसे तत्काल पुलिस की सहायता लेनी चाहिए।


'इस बात के लिए भगवान का शुक्रिया'

इस राह में अनेक दुश्वारियां के साथ साथ जान से हाथ धोने का जोखिम भी बना रहता है। क्या कभी धमकी मिली है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए अनिल हंसते हुए कहते हैं कि भगवान का मैं शुक्रिया अदा करता हूँ अभी तक मुझे इस तरह से कभी किसी ने धमकी नहीं दी है और न हो कभी कोई धमकी भरा कॉल आया है।




'युवाओं की भागीदारी है कम'

अनिल बताते हैं कि अभी आरटीआई में युवाओं की भागीदारी काफी कम है। वे कहते हैं कि यह एक बेहद सरल काम है। वे यह भी सलाह देते हैं कि अगर आपको पैसा कमाना है तो आपको यह सेवा आपके लिए नहीं है। इस कार्य के लिए मन में समाज सेवा की भावना बेहद जरुरी है।


'सरकार से यह है मांग'

अनिल मांग करते हैं कि सभी राजनितिक दलों, निजी बैंको, सरकारी बैंक और कॉपरेटिव बैंको, सोसायटी सहित सभी निजी कंपनियों को भी इस दायरे में लाना चाहिए। वे कहते हैं कि सबसे पहले तो खुद सरकार को इस दायरे में आना चाहिए। इसके बाद अन्य लोगों को भी लाना चाहिए। वे कहते हैं कि सभी राजनीतिक दल इस कानून के समर्थन में तो है लेकिन खुद की पार्टी पर लागू होने के बात जब आती है तो इस कानून से आँख फेर लेते हैं।


'इस मामले में मुझे ख़ुशी मिली थी'

किस मामले का खुलासा होने पर आपको ख़ुशी मिली थी? के जवाब पर अनिल का कहना है कि डांस अकादमी के नाम पर बीजेपी नेता हेमा मालिनी को कौड़ियों के भाव पर जमीन देना, जब इस बात का खुलासा हुआ तो सरकार पर सवाल उठे। इस मामले में जब सरकार ने कानून बनाया तो मुझे काफी ख़ुशी हुई। इसके बाद महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के मामले का जिक्र करते हए अनिल कहते हैं कि जब सचिन ने बंगलो बनाया था तो उन्हें ओसी नहीं दी गयी थी उन्होंने प्लान के मुताबक काम नहीं किया था। जब इसका खुलासा हुआ तो यह कानून बनाया गया कि अब सभी के लिए ओसी अनिवार्य होगी। एक तीसरे मामले के बारे में वे कहते हैं कि पहले वाटर बिल और प्रॉपर्टी बिल दोनों में असेस्टमेंट टैक्स लिया जाता था जो कि गलत था, जब हमने इसका खुलासा किया तो इसे वाटर बिल से हटा दिया गया जिससे लाखो लोगो को इसका फायदा मिला। यह आरटीआई की सबसे बड़ी जीत थी।


'मेरे लिए यह सबसे बड़ी चुनौती थी'

अनिल गलगली ने आज तक काफी मामलों का खुलासा किया है लेकिन सबसे बड़े मामले का जिक्र वे नेशनल हेराल्ड मामले को बताते हैं। यह मामला सीधे-सीधे सोनिया गांधी और राहुल गांधी जुड़ा था। मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मामले से पूर्व सीएम अशोक चव्हाण, मुम्बई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह,पूर्व मुख्य सचिव स्वाधीन क्षत्रीय जुड़े हुए थे।


'यह मामला काफी शॉकिंग था'

आज तक के सबसे बड़े शॉकिंग मामले की जानकारी देते हुए अनिल गलगली कहते हैं कि उन्होंने एक मामले का खुलासा किया था, जिसमें कलीना इलाके में IAS और IPS अधिकारीयों के लिए घर बनाये गए थे। इस मामले में नियमों का उल्लंघन करते हुए 3 मंजिला इम्मारत को 12 मंजिला बनाया गया था। इस मामले का खुलासा होने पर काम रोक दिया गया।

अनिल अचरज भरे स्वर में कहते हैं कि जिन IAS और IPS अधिकारीयों के लिए यह घर आवंटन किये गए थे उनमें लगभग 65 लोग अभी भी कार्यरत है। वे कहते हैं कि कितना अजीब है कि जो लोग कानून बनाते हैं वजही लोग इसे तोड़ते भी हैं। एक अन्य मामले के तहत MCA ने MMRDA से शिक्षा के नाम पर जमीन ली और शिर्के नामके एक बिल्डर की सहायता से क्लब हाउस और होटल खोल लिए गए। इस मामले का जब अनिल गलगली ने खुलासा किया तो वहां जांच के लिए ऑडिटर की नियुक्ति की गयी।


'मेरे लिए व्रत है आरटीआई'

अनिल कहते हैं कि मेरे लिए आरटीआई एक व्रत की तरह है, जिसे हर हाल में पवित्रता से पूरा करना होता है। आरटीआई के लिए खुद सरकार को भी आगे आना चाहिए। पारदर्शक और भ्रष्टाचार मुक्त शासन के लिए यह बहुत जरुरी है। इससे आम लोगों के साथ साथ सरकार का भी फायदा होगा।

 

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