देश भर में इस समय नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर काफी हंगामा मचा हुआ है। कई राज्यों में हिंसात्मक आंदोलन सहित आगजनी की घटनाएं देखने को मिल रही है। इस आंदोलन में अब तक 15 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। पुलिस भी इन हिंसाओं को रोकने के लिए कई उपाय करती हैं, जिसमें से एक हैं अस्थायी रूप से इंटरनेट सेवा सस्पेंड करना। आज हम जानेंगे कि आखिर भारत में इंटरनेट कैसे बंद किया जाता है।
वैसे आपको बता दें कि इंटरनेट सस्पेंड करने की एक पूरी प्रकिया है, जिसे फॉलो करते हुए इस पर बैन लगाया जाता है। इसका एक प्रोसेस होता है जिसे फॉलो करना पड़ता है. आइये जानते हैं उस प्रक्रिया को।
यही नहीं इस आदेश को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा गठित रिव्यू पैनल के पास भेजना होता है। यह कमिटी सर्विस सस्पेंड करने के बारे में समीक्षा करती है. इस कमिटी में कैबिन सेक्रेटरी, लॉ सेक्रेटरी और टेलिकम्युनिकेशन्स सेक्रेटरी जैसे पद के लोग शामिल होते हैं।
जबकि राज्य सरकार से दिए गए आदेश के रिव्यू कमिटी में चीफ सेक्रेटरी, लॉ सेक्रेटरी सहित कोई एक कोई अन्य सेक्रेटरी शामिल रहता है।
अगर हालात काफी बदतर हैं तो सरकार इमरजेंसी में इंटरनेट सेवा खंडित कर देती है। इसके लिए केंद्र या राज्य के गृह सचिव द्वारा बनाए गए जॉइंट सेक्रेटरी इंटरनेट बैन करने के लिए आदेश दे सकते हैं। हालांकि, इसके लिए उन्हें 24 घंटे के भीतर केंद्र या राज्य के गृह सचिव से इसकी मंजूरी लेनी पड़ेगी।
वैसे यह नियम साल 2017 से बनाए गए हैं. इससे पहले के नियम के अनुसार इंटरनेट सस्पेंड करने के लिए जिले के डीएम आदेश देते थे। 2017 में सरकार ने इंडियन टेलिग्राफ ऐक्ट 1885 के तहत टेम्प्ररी सस्पेंशन ऑफ टेलिकॉम सर्विसेज (पब्लिक इमरजेंसी या पब्लिक सेफ्टी) रूल्स तैयार किए। इसके बाद अब सिर्फ केंद्र या राज्य के गृह सचिव या उनके द्वारा अधिकृत अथॉरिटी इंटरनेट बंद करने का आदेश दे सकते हैं।
वैसे आपको एक बात और बता दें कि इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकनॉमिक रिलेशन्स समेत कुछ संस्थाओं की रिसर्च के मुताबिक, इंटरनेट सस्पेंड करने के मामले में भारत दुनिया भर में पहले स्थान पर है।