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स्वतंत्रता दिवस विशेष- बच्चों को कुपोषण से कब मिलेगी आजादी?

मुंबई के धारावी ,मालवणी,गोवंडी,मानखुर्द ऐसे कई इलाके है जहां बच्चो में कुपोषण के कई मामले सामने आए है।

स्वतंत्रता दिवस विशेष- बच्चों को कुपोषण से कब मिलेगी आजादी?
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महाराष्ट्र को एक डेवलप राज्य के रुप में माना जाता है। पर्यटन से लेकर बड़े बड़े कंपनियों के ऑफिस इस राज्य में है। मॉल, पब और कई सारे रेस्टोरेंट से भरे इस राज्य में एक सबसे बड़ी समस्या खड़ी होकर सामने आ रही है वह है कुपोषण। मुंबई से सटे मीरा भायंदर इलाके में 157 कुपोषित बच्चों का मामला सामने आया है। 157 कुपोषित बच्चों में से 36 बच्चों को गंभीर कुपोषण की श्रेणी में रखा गया है। मापदंडों के अनुसार, 121 बच्चों को मध्यम कुपोषण की श्रेणी में रखा गया है। 


ऐसा नहीं है की सिर्फ मुंबई या फिर उसके आसपास के सटे इलाको में कुषोषण के मामेल बढ़ हे है। डॉ अभय बंग द्वारा पेश एक रिपोर्ट पर की जिसमें यह कहा गया था कि राज्य में कुपोषण से हर साल 11,000 लोगों की मौत हो जाती है। इस रिपोर्ट के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार भी लगाई थी।  अपनी रिपोर्ट पर डॉ बंग ने अदालत में कहा है कि 2004 के समय जो कुपोषण के मामले नंदुरबार, धुले और मालघाट जिले में थे, आज 13 साल बाद भी परिस्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है।


एक आकड़े के मुतबिक राज्य में मौजूदा समय में लगभग 13 लाख से भी अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हो गए है।  मुंबई के धारावी , मालवणी , गोवंडी , मानखुर्द ऐसे कई इलाके है जहां बच्चो में कुपोषण के कई मामले सामने आए है।  वही मुंबई से ही सटे पालघर मेे साल 2017 में कुपोषण से 126 बच्चों की मौत हुई थी।  पालघर में ही लगभग 7000 से भी ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हो गए है।  

केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री डॉ वीरेन्द्र कुमार ने साल 2018 में बताया कि महाराष्ट्र भले ही औद्योगिक रूप से विकसित प्रदेशों में शुमार हो, परंतु बाल पोषण के मामले में इसकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। एनएफएचएस -4 की रिपोर्ट बताती है कि महाराष्ट्र के 36 प्रतिशत बच्चे (पांच वर्ष से कम आयु वाले) अल्प-वजनी हैं, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है।

महिला कुपोषण में भी महाराष्ट्र की स्थिति राष्ट्रीय औसत से खराब है। रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र की 23.5 प्रतिशत महिलाएं (15-49 वर्ष) कुपोषित हैं यानी उनके शरीर में ऊर्जा की भारी कमी है।

मुंबई भी अछूती नहीं

साल 2017 में एक आरटीआई से ये बात सामने आई है की बीएमसी स्कूलों में पढ़नेवाले हर तीन बच्चों में एक बच्चा कुपोषण का शिकार है।कुपोषण से जूझ रहे बच्चों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। ये अलग बात है की बीएमसी स्कूलो में मिड मील स्कीम भी चलाई जाती है। बावजूद इसके बीएमसी स्कूलों के बच्चों में कुपोषण की मात्रा बढ़ती ही जा रही है। प्रजा फाउंडेशन नामक एक गैर सरकारी संगठन ने आरटीआई के तहत ये जानकारी हासिल की है।

मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में सबसे निचले स्तर पर गोवंडी इलाके का नाम आता है। गोवंडी में कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे अधिक है। गोवंडी के बाद ख़ार दूसरे स्थान पर, तो वहीं कुर्ला तीसरे स्थान पर है।

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