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बापू जेब में आते हैं, दिलों में नहीं!


बापू जेब में आते हैं, दिलों में नहीं!
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दुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आज 148वीं जयंती है। महात्मा गांधी ने दुनियां को सिखाया कि युद्ध सत्य और अहिंसा जैसे हथियारों से भी जीते जा सकते हैं। बापू ने इन्हीं दो हथियारों के सहारे अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ी और एक दिन भारत को स्वतंत्र कराया।  

पर आज के समय में बापू सिर्फ नोटों में ही नजर आते हैं। जब कभी नोट पुराने और मैले हो जाते हैं, तो आरबीआई मस्त नए नोट छाप देती है और बापू फिर चमचमाने लग जाते हैं। पर चक्कर यह है कि बापू नोटों पर तो चमचमा जाते हैं पर लोगों के दिलों में बापू बुझ से गए हैं। खासकर युवा तो उनके विचारों से कोशों दूर हैं।

महात्मा गांधी का सपना सिर्फ देश को आजाद कराना नहीं था, उनका सपना एक संपन्न और स्वच्छ राष्ट्र का भी था। और इन दोनों चीजों में आज भी भारत काफी पीछे हैं। कुछ हद तक स्वच्छता की और देश आगे बढ़ा है, पर यह ना के ही बरारबर है। कोई त्योहार आता है तो हम अपने घरों की साफ सफाई में तो जुट जाते हैं। पर हमें मोहल्ले और परिसर की सफाई से कोई लेना देना नहीं होता।

उल्टा हम अपने घर से कचरा निकालकर कहीं भी डाल देते हैं। जब तक हम सफाई को दिल से नहीं लेंगे तब तक स्वच्छता का मिशन कभी कामयाब नहीं होगा। हम मानते हैं कि कई बार सफाई कर्मचारी भी लापरवाही करते हैं ऐसे में बिंदास आप उनकी शिकायत कीजिए। पर ये भी मत भूलिए कि सफाई कर्मचारी हमारे सहयोगी हैं हमारे घर से निकले कचरा के लिए जिम्मेदार हम ही है। वह कचरा जब तक सही से ठिकाने नहीं लग जाता तब तक आपकी जिम्मेदारी खतम नहीं होती।

मेरी ऐसे नेताओं से भी शिकायत है जो सिर्फ गांधी जयंती जैसे अवसरों पर ही स्वच्छता के लिए आगे निकलते हैं। अरे अगर आप स्वच्छता को बढ़ावा देना चाहते हैं। तो आप भी दिल से सफाई कीजिए और सिर्फ गांधी जयंती पर ही नहीं कि नाममात्र के कचरा को 20 नेता लगे हैं झाड़ू मारने। इसे दिखावा ही कहा जा सकता। और दिखावे से कभी स्वच्छता मिशन कामयाब नहीं हो सकता।

महात्मा गांधी स्वदेशी के घोर समर्थक थे। यही वजह थी कि उन्होंने अपना जीवन एक धोती में गुजार दिया। अगर सच में स्वदेशी को बढ़ावा दिया जाए तो देश में ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा होंगे। जब हर किसी को रोजगार मिलेगा तो हमारा देश अपने आप संपन्न हो जाएगा। इसमें सरकार को तो अपने कदम आगे बढ़ाने ही चाहिए साथ ही हमें भी इस ओर आगे आना होगा। कहते हैं ना जबतक समस्या निजी ना हो तबतक हल नहीं निकलता। इसलिए इस समस्या का हल भी आपको ही निकालना होगा। बापू को जेब में रखने के साथ साथ उनके विचारों को दिल में भी उतारने की कोशिश कीजिए। वैसे भी जेब और दिल के बीच में ज्यादा गैप नहीं होता।

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