सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा की धारा-497 (व्यभिचार) असंवैधानिक है और भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक घोषित करार दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जब तक धारा-497 (व्यभिचार) ,आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उत्साहीत) करने के दायरे में नही आती है तब तक इसे अपराधिक नहीं माना जाता है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति खानविलकर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हम विवाह के खिलाफ अपराध के मामले में दंड का प्रावधान करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक घोषित करते हैं। अब यह कहने का समय आ गया है कि पति महिला का मालिक नहीं होता है। महिलाओं के साथ असमान व्यवहार करने वाला कोई भी प्रावधान संवैधानिक नहीं हो सकता है।
आईपीसी की धारा-497 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कानून का समर्थन किया है। सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से एएसजी पिंकी आंनद ने कहा था कि अपने समाज में हो रहे विकास और बदलाव को लेकर कानून को देखना चाहिए न कि पश्चिमी समाज के नजरिए से।
ले सकते है तलाक
फैसले के बारे में पढ़ते हुए कोर्ट ने कहा की शादी के बाहर के संबंध में मामले में तलाक लिया जा सकता है लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। मुख्य न्यायाधीश अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि पति पत्नी के रिश्ते की खूबसूरती होती है मैं, तुम और हम। समानता के अधिकार के तहत पति पत्नी को बराबर का अधिकार है। उन्होंने कहा कि मौलिक अधिकारों के पारामीटर में महिलाओं के अधिकार शामिल होने चाहिए। एक पवित्र समाज में महिला की व्यक्तिगत गरिमा महत्वपूर्ण होती है। समाज महिला के साथ असामनता का व्यवहार नहीं कर सकता है।