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यूपी में आवारा गोवंश पशुओं का आतंक चरम पर

ऐसा नही है कि, छुटे हुए जानवर केवल फसलों को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं, कई जगहों से तो बैल के हमले से लोगों के घायल होने की भी खबरें सामने आई हैं। यानी एक तरह से जान को भी खतरा है।

यूपी में आवारा गोवंश पशुओं का आतंक चरम पर
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यूपी के एक छोटे से गांव के रहने वाले छोटेलाल के पास मात्र 1 एकड़ जमीन है, जिसमें वे खेती करते हैं, और इतना उगा ही लेते हैं कि उसमें उनके और उनके परिवार भर के खाने का हो जाए। हालांकि इसके लिए पैसों का भी जुगाड़ करना पड़ता है, और उसके लिए छोटेलाल अपनी पत्नी के साथ दूसरों के खेत में मजदूरी करके कमाते हैं। लेकिन उस मजदूरी से भी केवल वे खेती में लगाने के लायक ही कमा पाते हैं। यानी जो वे मजदूरी में कमाते हैं, उसे खेती में लगाते हैं और फिर वही खाते हैं। छोटेलाल का यही क्रम कई सालों से चल रहा है। 

लेकिन पिछले कुछ सालों से उनके ऊपर कानून और कुदरत की डबल मार पड़ रही है। जहाँ एक तरफ महंगाई और बेमौसम बरसात और सूखे की वजह से छोटेलाल पहले से ही परेशान रहा करते थे तो वहीं दूसरी तरह उनकी फसलों को आवारा गोवंश पशु नुकसान पहुंचा रहे हैं। 

छोटेलाल का कहना है कि, इतनी महंगाई में उन्होंने पैसे बचा कर टमाटर के 100 पौधे खरीदे थे, और पानी डाल कर उनकी रोपाई कर दी थी, लेकिन एक हफ्ते बाद ही उन टमाटर के पेड़ों को आवारा गोवंश पशुओ ने खा लिया। उनकी सारी फसलों को जानवरों ने चौपट कर दिया।

यही नहीं पिछले साल उन्होंने आलू की बुआई की थी, फसल अच्छी थी, लेकिन फसल तैयार होने के कुछ दिन पहले ही आवारा गोवंश पशुओ ने फसल में इतनी दौड़ लगाई कि आलू के पेड़ जड़ उखड़ गए, जिससे काफी नुकसान हुआ था।

एक दूसरे किसान सुरेंद्र सिंह के पास 3 एकड़ की जमीन है। वे बाहर कमाई करते हैं और समय पर आकर मजदूरों को पैसे देकर उनसे काम कराते हैं। लेकिन वे भी इन जानवरों से परेशान हैं। उनका कहना है कि, खेती करना अब काफी महंगा होता जा रहा है। वे आगे कहते हैं कि, इतनी महंगी फसल तो हम बो देते हैं, लेकिन इतना टाइम नहीं होता है कि, वहां दिन रात बैठकर फसलों की सुरक्षा की जा सके। पालतू आवारा गोवंश पशु फसलों को खा जाते हैं। पहले केवल नीलगाय और जंगली सुअरों से ही नुकसान होता था, लेकिन अब ये आवारा पशु। खेती करना दूभर हो गया है।

किसान सुरेंद्र कुमार मिश्रा का कहना है कि उन्होंने धान की फसल लगाई थी। फसल की लागत 20 हजार आई थी। रात में इन आवारा गोवंश पशुओ के झुंड ने उनकी फसल को खुरो तले रौंद दिया और आधे से ज्यादा खेत की फसल को चर गए।

तो वहीं किसान रामसेवक ने बताया कि उन्होंने अपने खेत में प्याज की फसल बोई थी। फसल में 15 हजार रुपये की लागत आई थी। लेकिन उनकी फसल को जानवरों ने नुकसान पहुंचाया जिससे उन्हें 15 हजार रुपये का नुकसान हुआ है, जरा सा चूको कि ये जानवर फसल को चट कर जाते हैं।

किसान सुनील कुमार ने बताया कि उन्होंने भिंडी की फसल बोई थी, लेकिन उनकी भिंडी की फसल जानवरों ने उजाड़ दी। भिंडी की फसल को उगाने में 10 हजार रुपये की लागत आई थी, जिससे उन्हें तगड़ा नुकसान झेलना पड़ा।

यह परेशानी केवल छोटेलाल, सुरेंद्र सिंह, सुरेंद्र मिश्र, रामसेवक और सुनील कुमार की ही नहीं है, बल्कि राज्य के लाखों किसानों की है। जो योगी सरकार के इस नए कानून से परेशान हैं।

जानकार बताते हैं कि, जब से यूपी की योगी सरकार ने गौ हत्या कानून लागू किया है तभी से ही यूपी के कई कसाई घर बंद हो गए हैं। चारे के अभाव या बीमार पशुओ को लोग बेच देते थे, और खरीदने वाले उन्हें खरीद कर कसाई घर पहुंचा देते थे। लेकिन अब लोगों ने उन्हें खरीदना बंद कर दिया है। जिसके बाद अब लोगों ने अपने पालतू जानवरों को खुलेआम छोड़ना शुरू मर दिया है। इनमें गाय और बछड़े शामिल होते हैं। ये जानवर खुले में घूमते हैं और किसानो की फसल को नुकसान पहुँचाते हैं।

हालांकि अब ऐसे जानवरों की संख्या लगातार बढ़ती हुई राज्य में लाखों तक पहुँच रही है। और किसानों की फसलों का नुकसान भी लगातार बढ़ ही रहा है।

हालांकि इन आवारा पशुओं की सेवा के लिए प्रशासन की तरफ से गौ सेवा केंद्र भी खोले गए हैं, लेकिन वहां की अव्यवस्था किसी से छुपी नहीं है।

वहां भी शुल्क लेकर ही जानवरों को लिया जाता है, साथ ही जब जगह भर जाती है तो फिर मना कर दिया जाता है।

अब प्रदेश के किसान भी राजस्थान की तरह यहां भी तारबंदी की मांग कर रहे हैं। राजस्थान में तारबंदी के लिए आधा शुल्क किसान तो आधा शुल्क सरकार की तरफ से वहन किया जाता है।

योगी सरकार के चुनावी एजेंडे में गौ हत्या रोकने प्रमुख मुद्दा था। यूपी ही नहीं देश मे गाय पर राजनीति किस कदर होती है, यह सभी जानते हैं। योगी सरकार ने कानून बनाते हुए गौ हत्या के लिए 10 साल की जेल और 5 लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान किया है।

ऐसा नही है कि, छुटे हुए जानवर केवल फसलों को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं, कई जगहों से तो बैल के हमले से लोगों के घायल होने की भी खबरें सामने आई हैं। यानी एक तरह से जान को भी खतरा है। इन गोवंशों से निपटने के लिए फिलहाल प्रशासन के पास भी कोई कारगर उपाय नहीं है, जिससे सड़क और खेत में गोवंश का आतंक चरम पर है।

यह ठीक है कि, गाय को हिंदू धर्म में माता का स्थान दिया हुआ है, और गाय का वध करने से हिंदुओं की आस्थाओं को चोट पहुँचती है, लेकिन अच्छा तब होता जब प्रशासन इसके लिए उचित व्यवस्था करती। गाय कितनी भी पूज्य हो, लेकिन इस कीमत पर नहीं कि वह फसलों को नुकसान पहुंचाए।  अब यह कानून कहीं न कहीं आम किसानों के लिए सिरदर्द साबित होता जा रहा है, शायद इसका असर आने वाले चुनावों में भी देखने को मिले।

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