बॉम्बे हाई कोर्ट ने (bombay high court) साल 2012 में दो महिलाओं के साथ कथित रुप से गैंगरेप (gang rape) करने और एक महिला की हत्या (murder) करने के मामले में एक आरोपी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि, अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ सबूत पेश करने में असफल रहा। जिसके बाद हाईकोर्ट ने शख्स को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखने से इनकार कर दिया। इस मामले में कोर्ट की आर्डर कॉपी 2 दिसंबर को सामने आई।
अदालत ने अपने दोषसिद्धि आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है और जीवित पीड़िता की गवाही पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, 25 नवंबर को जस्टिस साधना जाधव और पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने अपने आदेश में रहीमुद्दीन मोहफुज शेख को बरी कर दिया।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, घटना के समय पीड़िता की आयु 19 साल थी और जिस महिला की हत्या हुई वह 28 वर्ष की थी। वे दोनों कूड़ा बीनने का काम करती थीं। मई 2012 में आरोपी रोजगार दिलाने की बात कहकर महिलाओं को नवी मुंबई ले गए जहां उन्होंने शराब पी।
इसके बाद आरोपितों ने कथित तौर पर महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और उनके साथ मारपीट की। हादसे में एक की महिला की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि दूसरी दूसरा भागने में सफल रही। उसके बयान के आधार पर पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।
कोर्ट ने अपने आदेश में पीड़िता की गवाही पर संदेह जताया और कहा कि आरोपी द्वारा दिए गए सुझावों में दम है कि वह वेश्यावृत्ति में लिप्त थी।इसके अलावा, पीड़ितों को आरोपियों द्वारा उनके साथ जाने के लिए मजबूर नहीं किया गया था और उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के आरोपी के साथ शराब का सेवन किया था। इस मामले में दूसरे आरोपी को पहले ही नाबालिग घोषित किया जा चुका है।
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