हाथरस की घटना से कितना सीखेंगे हम

इस समय हाथरस में वह सब चीज उपलब्ध है जो एक मीडिया और राजनीतिक पार्टियों को चाहिए होता है। मीडिया को दिखाने के लिए वहां रेप है, जातिवाद है, पुलिस की बर्बरता है, प्रशासन का निकम्मापन है तो वहीं राजनीतिक पार्टियों को अपनी राजनीति चमकाने का एक अवसर।

हाथरस की घटना से कितना सीखेंगे हम
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प्रसिद्ध व्यंग्यकार काका हाथरसी के शहर हाथरस की पहचान काका हाथरस के कारण ही थी। जब जब काका हाथरस का जिक्र होता था, तब तब हाथरस शहर का भी जिक्र होता था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से 

हाथरस गैंगरेप घटना की वजह से बदनाम हो रहा है। आज मीडिया और देश की राजनीति का केंद्र हाथरस है। इस समय हाथरस में वह सब चीज उपलब्ध है जो एक मीडिया और राजनीतिक पार्टियों को चाहिए होता है। मीडिया को दिखाने के लिए वहां रेप है, जातिवाद है, पुलिस की बर्बरता है, प्रशासन का निकम्मापन है तो वहीं राजनीतिक पार्टियों को अपनी राजनीति चमकाने का एक अवसर।

बताया जाता है कि हाथरस की उम्र अभी ढाई दशक की भी नहीं है. सिर्फ 23 साल पहले हाथरस पैदा हुआ था। जिस लड़की की मौत से हाथरस चर्चा में आया वह तो सिर्फ 19 साल की ही थी। हाथरस को पहली पहचान हास्य के सशक्त हस्ताक्षर काका हाथरसी ने दी थी। हालांकि काका ने 1995 में ही अपनी आँखें मूँद ली थीं। काका जब हाथरस को देश और दुनिया में मशहूर कर रहे थे तब हाथरस जिला नहीं था। काका के जाने के दो साल के बाद आगरा, मथुरा और अलीगढ़ के हिस्से जोड़कर हाथरस बनाया गया था।

मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो गौतम बुद्ध की माँ महामाया के नाम पर इसका नाम महामाया नगर रख दिया। सरकार बदली तो यह फिर से हाथरस बन गया।

सिर्फ 23 साल की उम्र में हाथरस जिस रास्ते की तरफ बढ़ गया उसमें दर्द है, आंसू हैं, बदनामी है, न छूटने वाले दाग हैं, कलंकित होते रिश्ते हैं।

हाथरस केवल इसलिए नहीं बदनाम हुआ है कि वहां रेप हुआ है और और पीड़िता की मौत हुई है, बल्कि इसीलिए भी बदनाम हुआ है पुलिस के असंवेदनशील रवैये से, हाथरस बदनाम हुआ है लचर प्रशासनिक व्यवस्था से, हाथरस बदनाम हुआ जुर्म को छुपाने के तरीके से, हाथरस बदनाम हुआ जुर्म के सबूत मिटाने से, हाथरस बदनाम हुआ है खाकी की ताकत को आम आदमी पर थोपने से, हाथरस बदनाम हुआ है पीड़ित परिवार को नज़रबंद करने से।

19 साल की लड़की पर जिस तरह से ज़ुल्म ढाए गए उसके खुलासे ने लोगों को आक्रोशित किया है। लड़की ने अस्पताल के बिस्तर पर 14 दिन ज़िन्दगी के साथ संघर्ष किया। दिल्ली गैगरेप का शिकार निर्भया और इस निर्भया में फर्क तलाश करें तो ज़ुल्म उस पर भी कम नहीं हुआ था। दोनों के साथ मरने की हद तक जुल्म किए गए। दिल्ली वाली निर्भया के साथ चलती बस में उसकी अस्मत तार-तार की गई थी। उसके शरीर में लोहे के राड डाले गए थे। कई घंटे तक ज़ुल्म के बाद उसे चलती बस से सड़क पर फेंक दिया गया था।

इस निर्भया की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई थी। गर्दन की हड्डी को नुक्सान पहुंचाया गया था। ज़बान काटने की कोशिश की गई थी। जालिमों ने उसके सामने ज़िन्दगी के रास्ते ही बंद कर दिए थे।

अगर इन दोनों केस में पीड़िता बच जाती तो क्या दोनों इस लायक रह जाती कि अपने भरोसे घर से निकलकर कहीं जा सके?

अक्सर ऐसा होता है कि, ऐसे मामलों में पुलिस अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से नहीं निभाती है। अपराधियों के खिलाफ सबूत पुख्ता नहीं बनाती और अपराधी छूट जाता है। रेप के खिलाफ जो आवाजें उठती हैं उनके खिलाफ पुलिस बर्बर हो जाती है। इसका असर सीधे न्याय व्यवस्था पर पड़ता है। पहले यूपी पुलिस फिर SIT और अब CBI इस मामले की जांच करेगी। दरअसल पुलिस मामले को सही से हैंडल करती तो मामला इतना पेचीदा नहीं होता, इस मामले को इतना पेचीदा बना दिया गया है कि, सब कुछ उलझ सा गया है।

हाथरस का मामला तो सेंसेक्स की तरह अचानक से उछल गया था। पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया था। हाथरस काण्ड ने यूपी सरकार को सांसत में डाल दिया था. मगर सरकार समझी कि 25 लाख मुआवज़े और एक अदद नौकरी से सब कुछ शांत हो जाएगा।

हाथरस में रेप के बाद पुलिस और प्रशासन की गल्तियों के बाद शुरू हुई सियासत ने हालात बद से बदतर कर दिए। लड़की तो मर गई है। रात के अँधेरे में उसकी चिता भी जल गई है। घर वालों ने अस्थियाँ भी चुन ली हैं। यह अस्थियाँ नदी में प्रवाहित हो जायेंगी। रोने की आवाजें धीरे-धीरे शांत हो जायेंगी। पुलिस भी हट जायेगी।

वक्त के साथ सब रुटीन हो जायेगा लेकिन हाथरस आती प्रियंका गांधी का शाना पकड़कर झिंझोड़ता पुलिसकर्मी, महिला पत्रकार को जीप में ठूंसकर ले जाती पुलिस और वकील सीमा से चीख-चीखकर बात करता एडीएम इस बात का संकेत है कि महिला सम्मान के कितने भी दावे कर लिए जाएं लेकिन यह अब तक संस्कार का हिस्सा नहीं बन पाया है।

हाथरस हाथ और रस से मिलकर बना है। यह रस काका से जुड़ता है तो हास्य की सरिता बहाता है, अन्दर तक गुदगुदी पैदा करता है और जब गौतम बुद्ध की माँ से जुड़ता है तो शान्ति और करुणा का भाव पैदा करता है।

लेकिन इस भाव को अब कोई भाव नहीं मिल रहा है। शायद इसलिए कि ऐसे भाव की अब कोई कीमत भी नहीं रह गई है। और जब तक ऐसे भाव की कीमत लोग नहीं समझेंगे हाथरस की घटना, निर्भया की घटना होती रहेंगी।

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