लिक्विड उर्फ मुन्ना यानी दिव्येंदु शर्मा (Divyendu Shrama) जब भी स्क्रीन पर आते हैं दर्शकों के बीच एक अलग ही छाप छोड़ जाते हैं। हाल ही में उनकी वेब फिल्म 'शुक्राणु' (Shukranu) ZEE5 पर रिलीज हुई है। इस फिल्म में वे एक ऐसे व्यक्ति का किरदार निभा रहे हैं जोकि शादी के दो दिन पर नशबंदी का शिकार हो जाता है। फिल्म प्रमोशन के दौरान दिव्येंदु ने मुंबई लाइव से खास बात की। इस दौरान उन्होंनें शुक्राणु और मिर्जापुर 2 (Mirzapur 2) के बारे में खुलकर बात की।
'शुक्राणु' के किरदार के बारे में बताइए?
फिल्म में मेरे किरदार का नाम है इंदर। जो कि दिल्ली में रहने वाला एक लड़का है। एक कंपनी में सुपरवाइजर है। इसकी जीवन में कुछ पाने की अपेक्षाएं होती हैं। वह एक ऐसा इंसान है अगर वह अपने आस पास कुछ गलत होते देखता है, तो उसके खिलाफ आवाज उठाता है। और उसके लिए यही भावना महंगी पड़ जाती है, उसे नशबंदी से गुजरना पड़ता है। पर इस हादसे के बारे में वह किसी से नहीं बोल पाता।
इस फिल्म की स्क्रिप्ट आप तक कैसे आई, और इसमें खास क्या लगा?
ZEE के साथ मैं पहले भी 'बदनाम गली' और शॉर्ट फिल्म 'फटाफट' कर चुका था। हम लोगों का इस बीच काफी अच्छा अनुभव रहा। इसी बीच एक और स्क्रिप्ट आई, और जब मैंने फिल्म का टाइटल 'शुक्राणु' सुना और कॉन्सेप्ट सुना तो जो कि मुझे काफी इंट्रेस्टिंग लगा। हमारे यहां इमरजेंसी और खासकर नशबंदी पर ज्यादा फिल्में नहीं बनी हैं। पता नहीं क्यों नहीं बनी हैं। पर मुझे लगा की जो भी इन हादसों से गुजरे हैं, हमें उनके बारे में बात करनी चाहिए, यह फिल्म करनी चाहिए। इमरजेंसी और नशबंदी सुनकर बहुत भारी सा लगता है, पर स्क्रिप्ट बहुत ही लाइट तरीके से लिखा गया है, तो मुझे लगा यह दर्शकों के लिए काफी रोचक होगी। वैसे तो आप डॉक्यूमेंट्री भी बना सकते हैं, पर जब फिल्म बना रहे हैं तो मेसेज के साथ साथ वह मनोरंजक भी होनी चाहिए। फिल्म में एक कटाक्ष है, जो हंसता भी है और रुलाता भी है। इससे पहले मैंने इस तरह का और पीरियड किरदार नहीं निभाया था। फिल्म 70 के दशक की है तो उस समय का स्टाइल बेल बॉटम आदि है, जिससे फिल्म दिखने में भी काफी अलग है।
फिल्म का मुद्दा काफी सेंसटिव है, इसे फनी तरीके से प्रस्तुत करना सही है?
कटाक्ष एक बहुत बड़ी चीज होती है। कटाक्ष हमेशा सच बोलता है, पर आपको महसूस भही होता है। एक आर्टिस्ट का काम भी वही होता है, सच्चाई तो दिखता मगर अपने तरीके से दिखाता है। सामान्य इंसान एक लेख को पढ़ सकता है, पर पेंटर उसकी पेंटिंग बनाएगा और गायक उसे गाकर पेश करेगा। जिंदगी में कुछ भी हो जाए पर जिंदगी रुकती नहीं है। अगर आपकी नशबंदी हो जाए तो क्या आप रिपोर्टिंग करना छोड़ देंगे? जिंदगी तो वैसे ही चलती रहती है। वहीं फिल्म के किरदार इंदर का हाल है, एक टाइम पे वह बहुत कॉम्प्लेक्स फील करता है। कभी फनी सिचुएशन बनती है तो दूसरे ही टाइम इमोशनल भी। बस यही ध्यान रखना होता है कि यह लाइन क्रॉस ना हो।
लिक्विड और मुन्ना को लेकर हजारों मीम्स बनते हैं, फैंस के इस प्यार को आप कैसे देखते हैं?
मैं ईश्वर का शुक्रगुजार हूं। बहुत कम लोगों को यह मौका मिलता है कि इतने कम समय में दो आइकॉनिक किरगार निभाने को मिले। मुझे कभी सोचा नहीं था कि मुझे कुछ ऐसा भी करने को मिलेगा जो लिक्विड से भी ज्यादा फेमस हो पाएगा। अच्छी बात यह है कि दोनों ही किरदार बिलकुल अलग हैं। एक नॉर्थ पोल है तो दूसरा साउथ पोल है। एक अभिनेता के रूप में मैं यही करना चाहता था, इसलिए खुश भी बहुत हूं। जब थिएटर में मेरी ट्रेनिंग हुई उसके बाद फिल्म स्कूल गया। तो उस समय में यही चाहता था कि लोगों को ऐसा कुछ दिखाऊं, जो अलग अलग तरह के किरदार हों। अगर आप एक ही तरह का काम एक तरह की फिल्में करते रहते हो तो उसमें मजा नहीं है। मैं ये नहीं कह रहा कि जो ऐसा कर रहे हैं, वो गलत हैं, वह उनका निर्णय है। मैं बस यही चाहता था अलग अलग किरदार करना और वह करने मुझे मिल रहा है। दर्शक भी इस एक्सेप्ट कर रहे हैं और प्यार दे रहे हैं। कई बार यह अन रियल लगता है। पर बहुत खुशी होती है।
मुन्ना के किरदार में आपने खुद को कैसे ढाला था?
बहुत कठिन था, क्योंकि मैंने उससे पहले ऐसा कोई किरदार नहीं निभाया था। और दूसरी बात यह है कि जब आपको कोई डार्क कैरेक्टर मिलता है तो उसे आप विलेन बना देते हो। मेरे लिए यह बहुत जरूरी था कि मैं मुन्ना को विलेन नहीं इंसान बनाउंगा। तभी मुन्ना की फैन फॉलोविंग इतनी अधिक है। मुन्ना जैसा भी है पर वह एक इंसान भी है। मुन्ना को आप रोते हुए भी देखते हैं, उसे ठेस भी पहुंचती है। एक तरफ जहां वो शादी में गोली चलाता है तो वहीं दूसरी तरफ घर में बैठकर रोता भी है। मेरे लिए यही बात जरूरी थी कि मुझे ये चीजें दिखानी हैं कि मुन्ना को भी ये चीजें ठेस पहुंचाती हैं। वो कोई राक्षस का अवतार नहीं है कि घर से निकलकर बोतला है कि चलो लोगों को मारा जाए। वह जो भी करता है उसके पीछे कोई ना कोई वजह होती है। इसलिए मुख्य स्ट्रगल जो थी वह यह थी कि मुन्ना एक इंसान होना चाहिए। मुन्ना एक ट्रवल सोल है, जिसे नहीं पता है कि कैसे क्या करना है। जब आपको पता नहीं होता है तो कई बार आप खुद को बड़े गलत तरीके से पेश कर देते हैं। उस किरदार की जो इनसिक्योरिटीज थी, मैं उन्हीं को बाहर लाना चाहता था। स्टाइल वाला आदमी है, चश्मा लगाता है, जीप में घूमता है। बंदूक भी पास में है। उसके पास टशन तो पूरा है। लेकिन ये टशन में आप उसे यह भी बोल सकते हैं कि वह एक इंसान भी है। यही वजह है कि वह इस तरह की हरकतें करता है फिर भी लोग उसे पसंद करते हैं।
मिर्जापुर 2 का अपडेट?
मिर्जापुर 2 की रिलीज का अपडेट अभी तक मेरे पास भी नहीं है। पर शूटिंग पूरी हो चुकी है और फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन का काम चालू हैं। अभी तक कितना काम हुआ है कितना नहीं हुआ है उसके बारे में भी मुझे जानकारी नहीं है।