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डिब्बा वालों को मुंबई के 50 फीसदी कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बैन, डब्बा वालों ने कैंटीन और स्कूल पर लगाया सांठगांठ का आरोप

डब्बावालों के अनुसार मुंबई के लगभग 50 फीसदी कॉन्वेंट स्कूलों ने डिब्बावालों की एंट्री पर रोक लगा दी है। टिफिन डिलीवरी की यह संख्या एक लाख से घट कर मात्र 20 से 22 हजार पर आ गयी है।

डिब्बा वालों को मुंबई के 50 फीसदी कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बैन, डब्बा वालों ने कैंटीन और स्कूल पर लगाया सांठगांठ का आरोप
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डब्बावालों ने मुंबई के कई कॉन्वेंट स्कूलों के खिलाफ शिकायत की है कि वे कैंटीन के प्रभाव में आकर अपने स्कूलों में टिफिन की डिलिवरी पर रोक दी है। डब्बावालों का आरोप है कि ज्यादातर कॉन्वेंट स्कूल कैंटीन वालों की सहायता से बच्चों को कैंटीन से ही सामान खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं। 

डब्बावालों के अनुसार मुंबई के लगभग 50 फीसदी कॉन्वेंट स्कूलों ने डिब्बावालों की एंट्री पर रोक लगा दी है। टिफिन डिलीवरी की यह संख्या एक लाख से घट कर मात्र 20 से 22 हजार पर आ गयी है।

डब्बावालों का क्या कहना है?

इस बारे में डब्बेवालों के प्रवक्ता सुभाष तलेकर का कहना है कि स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए स्कूल वाले बच्चों को घर का ही खाना खाने दें। दक्षिण मुंबई के कई स्कूलों ने डब्बे वालों को स्कूल में टिफिन डिलीवरी करने पर रोक लगा दी है। तलेकर का कहना है कि वर्तमान में, स्कूल प्रशासन छात्रों को स्कूल से कपड़े, जूते, किताबें यूनिफॉर्म सहित अन्य कई वस्तुएं स्कूल से ही खरीदने का आदेश देता है। माता-पिता भी मजबूर होकर स्कूलों के इन नियम को मानने में बाध्य हैं। 


तलेकर शिकायत करते हैं कि, स्कूल प्रशासन शिक्षा का व्यवसायीकरण कर रहे हैं। स्कूल प्रशासन और कैंटीन मालिक आपस में सांठ-गांठ करते हैं। कैंटीन वालों का धंधा जोरों में चले इसीलिए स्कूलों ने टिफिन डिलीवरी बंद करवाई जा रही है। बच्चे भी कैंटीन से महंगे खाद्य पदार्थ खाने में मजबूर हैं।

तलेकर आगे कहते हैं कि बच्चों को घर का खाना खाने में स्कूल कैसे विरोध कर सकते है। इस बारे में हमने मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणविस और शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े को पत्र लिखा और उनसे स्कूलों द्वारा लगाईं गयी पाबंदी को हटाने की मांग की।आखिर यह डब्बे वालों के रोजगार का भी प्रश्न है। हमें आशा है कि बच्चों को उनेक घर का खाना खाने को जरुर मिलेगा।


डब्बावालों ने जिन स्कूलों ने टिफिन डिलीवरी पर पाबंदी लगाई है उन स्कूलों की लिस्ट भी जारी की है।इन स्कूलों में जीडी सोमानी (कोलाबा), क्वीन्स मेरी (ग्रैंड रोड), बंगाली स्कूल जैसे नामी गिरामी स्कूल शामिल हैं। 

स्कूल वालों का क्या कहना है?

हालांकि स्कूल वाले डिब्बावालों के इनब आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हैं। कुछ स्कूल वाले इसे बच्चों की सुरक्षा से जुड़ा मसला बताते हैं तो कुछ स्कूल वाले समय कि कमी। 

सेंट टेरीजा स्कूल से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि कॉन्वेन्ट स्कूलों का समय अब पांच घंटे का हो गया है और बच्चे लंच के समय अपने घर पहुंच जाते हैं।  

जबकि जी डी सोमानी स्कूल के प्रिंसिपल का कहना है कि सुरक्षा कारणों से भी यही जरूरी है और पैरंट्स भी यही चाहते हैं। हमारे यहां कैंटीन है लेकिन कैंटीन से खाना खरीदना कोई बाध्यता नहीं है। बच्चे घर से खाना ला सकते हैं।

तो वहीँ एक स्कूल की प्रिंसिपल का कहना है कि सुरक्षा हालतों को देखते हुए  स्कूलवाले  डिब्बावालों को परमिशन नहीं दे रहे हैं क्योंकि डिब्बावालों के पास कोई आईडी कार्ड नहीं होता है।

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