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मासिक धर्म से जुड़ी रूढ़िवादी परम्परा की काली छाया पर प्रकाश का स्त्रोत बनेगी फिल्म,‘मासूम सवाल’

फिल्म ‘मासूम सवाल: द अन्बेरबल पेन’ की कहानी एक बच्ची के इर्दगिर्द घूमती है ,जिसे बचपन में जब वो अपने भाई को खोजती है तब घर वाले श्रीकृष्ण को उसका भाई बता देते हैं ।

मासिक धर्म से जुड़ी रूढ़िवादी परम्परा की काली छाया पर प्रकाश का स्त्रोत बनेगी फिल्म,‘मासूम सवाल’
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नक्षत्र 27 मीडिया प्रोडक्शन के बैनर तले निर्माता रंजना उपाध्याय लेकर आ रही हैं अपनी नई फिल्म ‘मासूम सवाल: द अन्बेयरेबल पेन'। फिल्म की कहानी लिखी है संतोष उपाध्याय ने जो कि इस फिल्म के निर्देशक भी हैं। फिल्म में शामिल कलाकारों की बात करें तो नितांशी गोयल, मन्नत दुग्गल, मोहा चौधरी, वृन्दा त्रिवेदी, रोहित तिवारी, राम जी बाली, गार्गी बनर्जी, एकावली खन्ना, शिशिर शर्मा,  और मधु सचदेवा लीड रोल में हैं।

फिल्म ‘मासूम सवाल: द अन्बेरबल पेन’ की कहानी एक बच्ची के इर्दगिर्द घूमती है ,जिसे बचपन में जब वो अपने भाई को खोजती है तब घर वाले श्रीकृष्ण को उसका भाई बता देते हैं । 14 साल की होने तक जिसके साथ वो खेलती थी, पहली माहवारी के बाद उन्हीं श्रीकृष्ण के विग्रह को छू देने से जैसे उसने पाप कर दिया। इसके बाद शुरू हुए हंगामे और दिक्कतों की कहानी है फिल्म ‘मासूम सवाल: द अन्बेरबल पेन’।

 अपनी फिल्म ‘मासूम सवाल: द अन्बेरबल पेन’ के बारे में कहानीकार और निर्देशन संतोष उपाध्याय कहते हैं, जैसा कि, फिल्म का टाइटल, ‘मासूम सवाल’ अपने आप में ही सब कुछ बयां करता है कि ये कहानी है एक छोटी सी बच्ची और उसके मासूम सवालों की । आखिर क्यों एक बच्ची माहवारी में भगवान की मूर्ति को स्पर्श नहीं कर सकती, जिसे वो भगवान मानती ही नहीं । भाई मानती आ रही है ।  आखिर कैसे महावारी के दौरान वो अशुद्ध हो जाती है? क्यों उसे इन दिनों में कड़े और अलग तरह के नियमों का पालन करने पर मजबूर होना पड़ता है? ये वो सवाल हैं जो आज की पीढ़ी के जहन में उठ सकते हैं, वो पीढ़ी जो आज कहीं ज्यादा आजादी से जी सकती है।

जब एक महिला अपनी महावारी से गुजर रही होती है तो उसकी पीड़ा असहनीय होती है और मेरा मानना है कि ऐसे वक्त में उसपर लादी गई रूढ़िवादी सोच और रोक-टोक उसके दर्द को कई गुना और बढ़ा देती है। आप आज के सिनेमा को देखें तो उसके कंटेन्ट में एक सशक्त बदलाव आया है, दर्शक आज अलग तरह के कंटेन्ट की मांग कर रहा है। फिल्म की कहानियां सिर्फ प्रेम कहानियों से कहीं आगे और विषयों की ओर बढ़ रही हैं, फिर वो कोई सामाजिक विषय हो या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की कहानी. मैं इसे मॉडर्न सिनेमा कहूंगा।”

निर्देशक संतोष उपाध्याय अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, “मुझे खुशी और गर्व है कि मैं इस वक्त में ऐसे विषय पर फिल्म बना सका। ऐसा विषय जो बेहद संवेदनशील है, वो विषय जो पुरानी कुरीतियों और पाबंदियों पर सवाल उठाता है। मैं यकीन से कहता हूं कि ये फिल्म दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ेगी. फिल्म देखने के दौरान और उसके बाद लोग अपने मन में सवाल करेंगे कि महावारी के ऐसे नियमों को क्यों न बदल दिया जाए, क्यों न हम इन बदलावों को अपनाएं जो इस असहनीय पीड़ा को कम कर सकते हैं।”

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