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कूपर और भाभा अस्पताल, मरीज के साथ साथ पर्यावरण का भी कर रहे इलाज


कूपर और भाभा अस्पताल, मरीज के साथ साथ पर्यावरण का भी कर रहे इलाज
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कूपर और भाभा अस्पताल से मरीजो के साथ साथ पर्यावरण का भी इलाज कर रहे हैं। यह अस्पताल मरीजों के साथ पर्यावरण को भी ठीक ठाक रखने का बीड़ा उठाया है इसीलिए यहां एक विशेष योजना चलाई जा रही है। इन अस्पतालों में प्रदुषण को रोकने के लिए हरियाली का विशेष प्रबंध किया जा रहा है। अब यहां कचरे की जगह आपको छोटे बड़े पेड़ नजर आएंगे।

बीएमसी की तरफ से 650 बेड वाले कूपर अस्पताल में वर्मी कम्पोस्ट (केचुए से निर्मित खाद) योजना लागू की जा रही है। इस खाद का प्रयोग पेड़ो के लिए किया जाएगा। यह योजना कूपर में बड़े जोर शोर से चल रहा है। इस कार्य में विलेपार्ले की बचत महिला गुट का भी समावेश है।  



किस तरह से तैयार होता है वर्मी कम्पोस्ट?


अस्पतालों के कैंटीन या कचरे में फेंफे जाने वाले खाद्य पदार्थो का प्रयोग करके वर्मी कम्पोस्ट तैयार की जाती है। बचे हुए खाद्य, अन्न या फिर कचरे अस्पताल से कुछ ही दुरी पर एक गड्ढे में डाल दी जाती है। एक यंत्र की सहायता से इसे बारीक़ किया जाता है। इसके बाद इसमें केचुआ छोड़ा जाता है। केचुआ इन खाद्य पदार्थो को खाता है। केचुआ का जो मल निकलता है वही है वर्मी कम्पोस्ट।


पर्यावरण को होने वाले नुकसान के कारण ही इस योजना को लागू किया गया है। केचुओं की सहायता से खाद तैयार की जाती है। एक दिन में लगभग 25 से 30 किलो खाद तैयार होती है। मलनिस्सारण पानी को भी शुध्द करके उसका यूज किया जाता है। साल भर पहले शुरू किये गये इन योजनाओं को लोगों का अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है।

डॉ.गणेश शिंदे, चिकित्सा प्रमुख, कूपर रुग्णालय


भाभा अस्पताल में जैव इंधन योजना

 

बीएमसी के भाभा अस्पताल में भी जैव इंधन का निर्माण किया जा रहा है। यहाँ भी फेंके हुए या बचे हुए खाद्य पदार्थों की सहायता से बायो गैस का निर्माण होता है।


कैसे तैयार होती है बायोगैस


भाभा अस्पताल में खाद्य पदार्थो को नहीं फेंका जाता है। उसे कचरे मशीन की सहायता से एक यंत्र में भरा जाता है और उससे गैस बनाई जाती है। उसके बाद इसका इंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।


अस्पताल में मरीजों के लिए बाहर से खाना लाने पर प्रतिबंध है। अस्पताल के कैंटीन में ही खाना तैयार किया जाता है। भाभा में 436 बेड है। हम छह महीने से यह योजना चला रहे हैं। पहले गैस सिलेंडर ला प्रयोग किया जाता था, लेकिन अब बायोगैस का प्रयोग किया जाता है। एक दिन में 200 किलो गैस तैयार होती है।

डॉ.प्रदीप जाधव , चिकित्सा प्रमुख, भाभा रुग्णालय


भाभा और कूपर अस्पतालों में शुरू हुए इस योजना से पर्यावरण तो शुद्ध होगा ही साथ ही पर्यावरण में प्रदुषण भी नहीं फैलेगी। इन दोनों अस्पतालों से अन्य अस्पतालों को भी सीख लेने की आवश्यकता है।


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