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वॉकहार्ट हॉस्पिटल में अक्रॉस ब्लड ग्रुप किडनी ट्रांसप्लांट

अक्रॉस ब्लड ग्रुप किडनी ट्रांसप्लांट में अलग ब्लड ग्रुप वाले शख्स की किडनी किसी और ब्लड ग्रुपवाले मरीज को दी जाती है

वॉकहार्ट हॉस्पिटल में अक्रॉस ब्लड ग्रुप किडनी ट्रांसप्लांट
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मुंबई जैसे शहर में किडनी से जुड़ी समस्याएं अब आम बात होती जा रही है। सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों में से 15 करोड़ लोग अलग-अलग स्टेज के किडनी रोगों के शिकार हैं। और ये किडनी से जुड़ी बीमारी और भी गंभीर हो जाती है जब किडनी ट्रांसप्लांट के लिए मरीज के ब्लड ग्रुप की किडनी ना मिले। लेकिन मुंबई के वॉकहार्ट हॉस्पिटल ने एक ऐसे ही कारनामे को कर दिखाया है। अस्पताल ने एक मरीज का अक्रॉस ब्लड ग्रुप किडनी ट्रांसप्लांट किया जिससे ना ही सिर्फ मरीज की जान बच सकी बल्की ऐसे मरीजों को एक नई उम्मीद भी जाग गई है।

किडनी की समस्या से परेशान 60 साल के बुजुर्ग, नटवर (नाम बदल दिया गया है) किडनी ट्रांसप्लांट के लिए वॉकहार्ट अस्पताल, मुंबई सेंट्रल पहुंचे। नटवर के परिवार के सदस्य थोड़ी उलझन में थे, क्योंकि मरीज की पत्नी ही उन्हें किडनी डोनेट करने वाली थी और उनका ब्लड ग्रुप मरीज के ब्लड ग्रुप से बिल्कुल अलग था। मरीज की पत्नी का ब्लड ग्रुप- एबी पॉजिटिव था, जबकि मरीज का ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव था। अस्पताल के डॉक्टरों की टीम ने परिस्थिति को देखते हुए किसी भी जटिलताओं से बचने के लिए कोरोनरी एंजियोग्राफी सहित ऑपरेशन से पूर्व मूल्यांकन के साथ मरीज को ट्रांसप्लांट के लिए तैयार किया।

वॉकहार्ट हॉस्पिटल के नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉ. चंदन चौधरी का कहना है की , "पेयर्ड किडनी एक्सचेंज, जिसे "स्वैप ट्रांसप्लांट" के नाम से भी जाना जाता है, तब होता है जब किडनी डोनेट करने वाले जीवित व्यक्ति एवं मरीज का ब्लड ग्रुप असमान हो, इसलिए किसी अन्य डोनर/ रिसीवर जोड़ी के साथ किडनी का आदान-प्रदान किया जाता है। हालांकि अगर मरीज का ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव हो, तो ऐसा नहीं किया जा सकता है। अक्रॉस ब्लड ग्रुप बहुत दुर्लभ नहीं है, लेकिन ऐसा केवल भारत के चुनिंदा केंद्रों में ही होता है"

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