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शहरों में तबाही मचाने के बाद गांवों में घुसा कोरोना, वैक्सीन नहीं लगवाने के लिए नदी में कूदे ग्रामीण

ऐसी स्थिति सिर्फ यूपी में नहीं बल्कि बिहार, झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र के भी ग्रामीण इलाकों में देखने को मिल रहे हैं। अधिकांश गांवों में वायरस से लड़ने का कोई रास्ता नहीं है।

शहरों में तबाही मचाने के बाद गांवों में घुसा कोरोना, वैक्सीन नहीं लगवाने के लिए नदी में कूदे ग्रामीण
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कोरोना वायरस (CoronVirus) के टीके को लेकर यूपी (uttar pradesh) के ग्रामीण इलाकों में कैसी कैसी भ्रांतियां फैली है इसका कुछ उदाहरण है...

एक मजदूर गैर पढ़ी लिखी महिला कहती है

टीके के सुई में जहर भर के लगा रहे हैं, जिसके लगाने के बाद लोग मर जाते हैं। 

दूसरी महिला कहती है...

कोरोना की आड़ में शरीर के अंग निकालने का काम शुरू है।

एक अन्य महिला कहती है...

सुई लगाकर सरकार लूटने का काम कर रही है।

एक महिला का कहना है...

इस सुई में सुअर की चर्बी मिली है, जो लगवाएगा वो अपवित्र हो जाएगा।

जब एक महिला से मजाक में किसी ने कहा कि, अब सरकार टीका लगवाने वाले को ही राशन देगी, तो महिला ने कहा, कमा कर खा लूंगी, लेकिन न तो राशन लूंगी और न ही टीका लगवाऊंगी।

कोरोना वैक्सीन (Corona vaccine) की भ्रांतियाँ किस कदर ग्रामीणों में फैली है, इसका अंदाजा बाराबंकी (Barabanki) की ताजा घटना से लगाया जा सकता है । यहां एक गांव में वैक्सीन लगाने पहुंची स्वास्थ्य विभाग की टीम को देख कर लोग डर गए और उन्हें वैक्सीन न लगवानी पड़े, इसके लिए सरयू नदी (Sarayu River) में छलांग लगा दी। यह नजारा देख कर स्वास्थ्य विभाग की टीम (Medical Team) के हाथपांव फूल गए और उनसे नदी से बाहर आने का अनुरोध करने लगे लेकिन ग्रामीण नहीं माने। मामले की जानकारी होने पर उपजिलाधिकारी मौके पर पहुंचेे। एसडीएम (Barabanki SDM) के समझाने के बाद ग्रामीण नदी से बाहर आये और वैक्सीन लगवाई। बता दें कि 1500 की आबादी वाले इस गाँव में मात्र 14 लोग ही वैक्सीन लगवाने की हिम्मत जुटा सके।

उपर्युक्त सभी बातें विभिन्न महिलाओं से बात करने पर आधारित है। अच्छा, ऐसा नहीं है कि, ऐसे विचार मजदूर या निचले तबके वाली महिलाओं के ही है, कुछ उच्च तबके वाली महिलाओं के भी ऐसे विचार हैं, लेकिन अधिकांश के नहीं!

चौकानें वाली बात यह है कि, सिर्फ महिलाओं के ही नहीं, बल्कि पुरुषों में भी ऐसी भ्रांतियां देखने को मिल रही है।

सबसे बड़ी चुनोती है, ऐसे लोगों को समझाना। ऐसे लोग आसानी से नहीं समझ पाते। और बात अगर जाति और धर्म पर आ जाती है तो तब तो और भी मुश्किल हो जाती है।

मीडिया रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों की मानें तो अब ग्रामीण इलाकों में भी कोरोना घुस गया है। एक तो यूपी की स्वास्थ्य सेवा पहले से ही धराशायी है, और शहरों में कहर बरपाने के बाद अब ग्रामीण इलाकों से भी कोरोना वायरस (coronaries in rural areas) के मरीज सामने आ रहे हैं। पहले चरण में तो सब ठीक था, लेकिन दूसरे चरण में स्थिति भयावह है। हालांकि लॉकडाउन (lockdown) में स्थिति में सुधार आया है लेकिन लॉकडाउन तो हमेशा नहीं रह सकता है न।

ऐसी स्थिति सिर्फ यूपी में नहीं बल्कि बिहार, झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र के भी ग्रामीण इलाकों में देखने को मिल रहे हैं। अधिकांश गांवों में वायरस से लड़ने का कोई रास्ता नहीं है। ग्रामीण इलाकों में स्थित अधिकांश स्वास्थ्य केंद्र में मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं, कोई डॉक्टर नहीं है और कोई ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं है।

गांव वालों का कहना है कि "गांव में ज्यादातर मौतें इसलिए हुई हैं क्योंकि ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं थी। बीमारों को जिला मुख्यालय ले जाया जा रहा है और उन बेहद बीमार मरीजों को लगभग चार घंटे की यात्रा करनी पड़ती है।"

कुछ पढ़े लिखे और जागरूक लोगों का कहना है कि, ग्रामीण लोग अस्पताल जाने से इसलिए भी डरते हैं कि, उन्हें ऐसा लगता है कि, पॉजिटिव पाए जाने और उन्हें पुलिस उठा के जाएगी। और उन्हें किसी अनजान जगह ले जाकर अस्पताल में भर्ती कर देगी, जहां इलाज के अभाव में उनकी मौत हो जाएगी।

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