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हिंदू-मुस्लिम ने एक दूसरे को किडनी देकर बचाई जान

दोनों परिवार की महिलाओं का ब्लड उनके पतियों के ब्लड ग्रुप से मैच कर गया और इसके बाद दोनों महिलाओं ने एक दूसरे के पतियों को एक एक किडनी डोनेट करने का निर्णय लिया।

हिंदू-मुस्लिम ने एक दूसरे को किडनी देकर बचाई जान
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राजनीती भले ही धर्म,जाति के नाम पर एक दूसरे को लड़वाती है लेकिन कई ऐसे भी मौके आते हैं जब जिंदगी का सवाल आता है अलग-अलग धर्म के लोग एक हो जाते हैं। एक ऐसी ही घटना के मुताबिक एक हिंदू और एक मुस्लिम धर्म की महिलाओं ने हॉस्पिटल में एक-दूसरे के पति को किडनी डोनेट न सिर्फ सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल कायम की बल्कि यह भी बताया कि सवाल किसी के जिंगदी का हो तब धर्म आड़े नहीं आता।

रिपोर्ट्स के मुताबिक मुंबई के सैफी हॉस्पिटल में परिवार द्वारा किडनी स्वैप ट्रांसप्लांटेशन होने की जानकारी आमने आई है। एक हिंदू महिला ने एक मुस्लिम महिला के पति को तो उसी मुस्लिम महिला ने उसी हिंदू महिला के पति को एक-एक किडनी डोनेट की।

इस मामले के मुताबिक़ ठाणे के रहने वाले नदीम (51) और उनकी पत्नी नजरीन (45) दोनों चार सालों से अस्पतालों के चक्कर लगा रहे थे। 3 बच्चों के पिता नदीम पिछले 4 सालों से डायलिसिस पर हैं, यह परिवार पिछले कई दिनों से किसी डोनेटर की तलाश में था। जबकि बिहार निवासी रामस्वार्थ यादव (53) और उनकी पत्नी सत्यादेवी (45) भी इसी केस में दर-दर अस्पतालों के चक्कर काट रहे थे। रामस्वार्थ यादव की भी एक किडनी खराब हो गयी थी। दोनों का केस सैफी अस्पताल के एक ही डॉक्टर हेमल शाह के पास आया।

हेमल शाह ने दोनों परिवार वालों को मिलाया, यही नहीं सौभाग्यवश दोनों परिवार की महिलाओं का ब्लड उनके पतियों के ब्लड ग्रुप से मैच कर गया और इसके बाद दोनों महिलाओं ने एक दूसरे के पतियों को एक एक किडनी डोनेट करने का निर्णय लिया।

इसके बाद सभी डॉक्टरों की टीम ने 14 मार्च को वर्ल्ड किडनी डे के मौके सर्जरी कर नदीम को सत्यदेवी की और रामस्वार्थ यादव को नजरीन की किडनी लगाई। और इस तरह से बिना किसी भेदभाव के एक हिंदू के शरीर में मुस्लिम की किडनी और एक मुस्लिम के शरीर में हिंदू की किडनी लग गयी, क्योंकि उनके खून का रंग एक था और खून किसी धर्म-जाति कला फर्क नहीं करता।

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