8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है। थैलेसीमिया एक गंभीर बीमारी है और इससे केवल दो तरीके से रोका जा सकता है। शादी से पहले पति-पत्नि के रक्त की जांच हो, और यदि जांच में दोनों के रक्त में माइनर थैलेसीमिया पाया जाए तो बच्चे को मेजर थैलेसीमिया होने की पूरी संभावना बन जाती है। ऐसी स्थिति में मां के 10 सप्ताह तक गर्भवती होने पर पल रहे शिशु की जांच जरुर होनी चाहिए। जिसके कारण गर्भ में पल रहे बच्चे में थैलेसीमिया की बीमारी का पता लगाया जा सकता है। दूसरा उपाय यह कि यदि विवाह के बाद माता-पिता को पता चले कि शिशु थैलेसीमिया से पीड़ित है तो बोन मेरो ट्रांसप्लांट पद्धति से शिशु के जीवन को सुरक्षित किया जा सकता है।
थैलेसीमिया एक प्रकार का जेनेटिक डिसऑर्डर होता है। इस रोग में शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है, जिसके चलते खून की कमी हो जाती है।मरीजों के शरीर में रेड ब्लड सेल्स औसतन 120 दिन की जगह 20 दिन के ही रह जाते हैं। इसका सीधा प्रभाव शरीर के हीमोग्लोबिन पर पड़ता है। हीमोग्लोबिन कम होने से कमजोरी और दूसरी बीमारियों होने की आशंका ज्यादा हो जाती है। इस बीमार का सही समय पर इलाज न मिलने पर मौत तक हो सकती है।
दो तरह का होता है थैलेसीमिया
थैलेसीमिया दो प्रकार के होते हैं। माइनर थैलेसीमिया और मेजर थैलेसीमिया । माइनर थैलेसीमिया में केवल एक जींस प्रभावित होता है। इसमें मरीज को कम ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है। तो वही मेजर थैलेसीमिया में दोनों जींस खराब हो जाते है जिसके कारण मरीज को हर महीने ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है। भारत में लगभग हर साल 10,000 बच्चे इस बीमारी से ग्रसित पैदा होते है।
क्या है थैलेसीमिया के लक्षण-
दुर्बलता
थकान
अस्थि विकृति, विशेष रूप से चेहरे पर
पीली उपस्थिति या पीले रंग की त्वचा
धीमी विकास दर
संक्रमण का खतरा बढ़ता है
आयरन अधिभार
हृदय की समस्याएं
कैसे होता है इलाज -
ब्लड ट्रांसफ़्यूजन
दवाएं और पूरक
प्लीहा या पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए संभव सर्जरी