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जानिए ब्लैक और वाइट फंगस से अधिक खतरनाक क्यों है येलो फंगस

एम्स के निदेशक डॉ गुलेरिया बताते हैं कि, जो या तो डायबिटीक हैं या जिन्हें ज्यादा स्टेरॉयड दिया जा रहा है उन्हीं लोगों में अधिकांशतः फंगस की शिकायत देखने को मिलती है।

जानिए ब्लैक और वाइट फंगस से अधिक खतरनाक क्यों है येलो फंगस
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अभी देश में कोरोना (covid19) की दूसरी लहर समाप्ति की ओर थी कि, ब्लैक फंगस (black fungus) नामकी एक और महामारी ने मुसीबत के रूप में दस्तक दे दी। ब्लैक फंगस को म्यूकरमाइकोसिस (mucormycosis) भी कहते हैं।

इस बीमारी की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार ने भी राज्यों से इसे महामारी घोषित करते हुए सारा रिकॉर्ड रखने को कहा है।

यही नहीं ब्लैक फंगस के मामले गुजरात और महाराष्ट्र में सबसे अधिक सामने आए। 

अभी इस बीमारी के बचाव के उपाय किये ही जा रहे थे कि वाइट फंगस भी आ धमका। बिहार, हरियाणा और अन्य जगहों पर वाइट फंगस (White Fungus) के मामले भी सामने आए हैं।

इस बीमारी को लोग समझ भी पाते कि दिल्ली से सटे गाजियाबाद(UP) में येलो फंगस(Yellow Fungus) का भी एक मामला सामने आ गया।येलो फंगस को ब्लैक और वाइट दोनों फंगस से अधिक खतरनाक बताया जा रहा है।

हालांकि इस बारे में दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS)  के निदेशक डॉ रणदीप सिंह गुलेरिया का कहना है कि म्यूकर संक्रमण कोरोना की तरह कम्युनिकेबल डिजीज यानी फैलनेवाली बीमारी नहीं है।

तो आइए, स्वास्थ्य एजेंसी, एक्पर्ट्स डॉक्टर्स के माध्यम से यह जानते हैं कि, इन सभी फंगस के लक्षण क्या हैं, किस फंगल इन्फेक्शन से कितना खतरा है और इनसे बचाव के क्या उपाय हैं?

फंगस कितने तरह के होते हैं?

विशेषज्ञों की मानें तो फंगस कोई नई चीज नहीं हैं बल्कि यह पहले से ही पर्यावरण में मौजूद है. इनसे होनेवाले इन्फेक्शन को फंगल इन्फेकशन भी कहते है। दाद, खाज, खुजली भी एक तरह के फंगल इन्फेक्शन ही हैं। दाद के अलावा नेल फंगल इन्फेक्शन, वजाइनल इन्फेक्शन, गले में होने वाले इन्फेक्शन वगैरह आम होते हैं। और फंगल इन्फेक्शन होने के पीछे कमजोर इम्यूनिटी सबसे बड़ी वजह है।

डॉक्टरों का कहना है कि, जो लोग कोरोना की चपेट में आते है उनकी इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है। खासकर डायबिटीज के पेशेंट में ऐसे मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं। क्योंकि डायबिटिक पेशेंट को कोरोना होने पर उनका इम्यून सिस्टम बहुत ज्यादा कमजोर हो जाता है।

एम्स के निदेशक डॉ गुलेरिया बताते हैं कि, जो या तो डायबिटीक हैं या जिन्हें ज्यादा स्टेरॉयड दिया जा रहा है उन्हीं लोगों में अधिकांशतः फंगस की शिकायत देखने को मिलती है। इसके अलावा अन्य लोगों में यह न के बराबर ही है। साथ ही यह मरीज के पास बैठने या संपर्क में आने से नहीं फैलता है।

तो वहीं हेमेटोलॉजिस्ट डॉ डी ठाकुर बताते हैं कि संक्रमण दर के नजरिये से वाइट फंगस, ब्लैक फंगस से ज्यादा संक्रामक है। जबकि ब्लैक फंगस ज्यादा जानलेवा है। इसके गंभीर होने पर 54 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है।

जबकि येलो फंगस के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि, येलो फंगस के लक्षण मिलने पर तुरंत मेडिकल हेल्प ली जानी चाहिए, ताकि शुरुआती दौर में ही इसका पता लगाया जा सके और इसका इलाज हो सके।


ब्लैक फंगस के लक्षण

चेहरे में सूजन, सिरदर्द, आंख में सूजन, नाक बंद होना, उल्टी आना, बुखार आना, साइनस कंजेशन, चेस्ट पेन होना, मुंह के ऊपर हिस्से या नाक में काले घाव होना, चेहरे का एक ओर सुन्‍न होना


वाइट फंगस के क्या लक्षण

मुंह, गले, वजाइना में संक्रमण, बुखार आना, ठंड लगना साथ ही यह तेेजी से किडनी, हार्ट और ब्रेन में पहुंच जाता है जो घातक होता हैं।


कैसे करें बचाव

किसी भी फंगस से बचने के लिए डॉक्टर प्रदूषण भरे वातावरण से दूर रहने की सलाह देते हैं। धूल-मिट्टी से जुड़े काम करते समय फुल स्लीव्स शर्ट, ग्लव्स और मास्क पहनने को कहा जाता है।उन जगहों पर न जाएं, जहां ड्रेनेज का पानी जमा होता हो। अपनी इम्यूनिटी को मजबूत बनाए रखें। अपने आसपास साफ सफाई रखें।

इसके अलावा अगर हाइजीन का, साफ-सफाई का ख्याल नहीं रखा गया तो इंटरनल बॉडी में फंगल इन्फेक्शन का खतरा रहता है।

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