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16 अक्टूबर वर्ल्ड स्पाइन डे- हलके में न लें पीठ समस्या


16 अक्टूबर वर्ल्ड स्पाइन डे- हलके में न लें पीठ समस्या
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बदलती जीवन शैली और बदलते खान-पान के बीच लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। साथ ही उम्र बढ़ने के साथ-साथ हड्डी भी कमजोर होने लगती है, इनमे सबसे अधिक प्रभाव रीढ़ की हड्डी पर पड़ता है, जिसे स्पाइनल डीजेनेरेशन कहते हैं।इसका कारण आनुवंशिक होने के साथ साथ गलत आदतों के कारण उठने और बैठने के कारण होता है। इस कारण रीढ़ अकड़ने लगती है और फिर इंसान स्पाइनल डीजेनेरेशन से ग्रसित हो जाता है।

भारत में 16 से 34 उम्र के 20 फीसदी लोग इस बीमारी से त्रस्त हैं, मुंबई में 18 फीसदी युवक पीठ की समस्या से ग्रस्त हैं. अक्सर लोग पीठ की समस्या की हल्के में लेते हैं, लेकिन जैसे जैसे उम्र बढती जाती है यह समस्या स्थायी हो जाती है इसीलिए जैसे ही इसकी शिकायत हो वैसे ही हमें डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए।

क्यूआई क्लिनिक. जो कि स्पाइनल क्लिनिक है इसने 2016-17 में करीब 20 हजार लोगों पर एक सर्वे किया गया। यह सर्वे मुंबई, दिल्ली, बेंगलूर, पुणे जैसे शहरों में रहने वाले उन लोगों पर किया गया था जो पीठ दर्द की समस्या से ग्रसित थे। सर्वे के अनुसार मुंबई में रहने वाले 16 से 34 साल के 18 फीसदी लोग स्पाइनल से त्रस्त थे तो दिल्ली के 25 फीसदी युवा इस समस्या का सामना कर रहे थे।

चार शहरों के लगभग 45 फीसदी लोग 7 हफ्ते से इस समस्या से पीड़ित हैं, अगर इसकी अनदेखी की जाती है तो फिर ऑपरेशन ही इसका एकमात्र इलाज होता है। यही नहीं अगर समय पर इक उपचार किया जाए तो इससे निजात भी पायी जा सकती है।

डॉ. गरिमा आनंदानी, क्लिनिकल डायरेक्टर

23 फीसदी लोग ही इसका इलाज करवाते हैं और 73 फीसदी लोग घरेलू उपचार का सहारा लेते हैं, जबकि 62 फीसदी लोग ऑपरेशन के कारण वैकल्पिक इलाज ढूंढते हैं।


इस साल वर्ल्ड स्पाइन डे के अवसर पर स्पाइन जैसे बीमारियों को लेकर जनजागृति अभियान चलाया जायेगा। इस विषय पर लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। डॉ. अनज एरिनाजा, एमडी आणि सीईओ, क्यूई स्पाइन क्लिनिक

महिलाओं की अपेक्षा पुरुष अधिक पीड़ित

स्पाइनल की समस्या पुरुषो में अधिक देखी जाती है। यह बीमारी महिलाओं में 46 फीसदी होने की संभावना रहती है तो पुरुषों में यह बढ़ कर 54 तक हो जाती है।


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