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मंत्रालय ही नहीं मंदिरों को बांटने के लिए भी कांग्रेस-एनसीपी और शिव सेना के बीच चल रही है रस्साकसी

महाराष्ट्र के दो बड़े मंदिरों में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए शिव सेना और एनसीपी के बीच बंटवारे की लड़ाई चल रही है। ये दो बड़े मंदिर हैं, मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर और शिर्डी के साईं बाबा का मंदिर।

मंत्रालय ही नहीं मंदिरों को बांटने के लिए भी कांग्रेस-एनसीपी और शिव सेना के बीच चल रही है रस्साकसी
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इस समय महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज तीनों पार्टियों के बीच सिर्फ मंत्रालय को लेकर ही आपसी खींचतान नहीं चल रही है बल्कि मंदिरों को लेकर भी ये तीनों पार्टियां एक दूसरे के सामने आ गयी हैं। महाराष्ट्र के दो बड़े मंदिरों में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए शिव सेना और एनसीपी के बीच बंटवारे की लड़ाई चल रही है। ये दो बड़े मंदिर हैं, मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर और शिर्डी के साईं बाबा का मंदिर। इन दोनों मंदिरों में दर्शन और पूजा के लिए न केवल देश से ही बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में भक्त आते हैं और पूजा दर्शन करते हैं। इसके अलावा इन दोंनो मंदिरों में भक्त जी खोल कर दान भी देते हैं। शायद यही कारण है कि इन मंदिरों के बोर्ड में  अपना 'आदमी' रखने के लिए शिव सेना और एनसीपी के साथ-साथ कांग्रेस भी एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। आइये जानते हैं क्या है पूरा माजरा...

छह मंत्रियों को 4 से 5 मंत्रालयों की जिम्मेदारी
महाराष्ट्र में सरकार का गठन हुए एक महीने से भी अधिक का समय हो गया है, लेकिन तीनों पार्टियों के बीच मंत्रालय को लेकर चल रही रस्साकसी के कारण पोर्टफोलियो किसी भी मंत्री को नहीं दिया गया है। हाँ, उद्धव ठाकरे सहित जिन छह विधायकों ने जिस दिन मंत्री पद की शपथ ली थी, उन सभी छहों मंत्रियों को 4 से 5 मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। अभी दो दिन पहले ही तीनों पार्टियों के 36 नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली लेकिन अभी तक उन्हें भी पोर्टफोलियो नहीं सौंपा गया है। 

मंदिरों में नियंत्रण  पावर का सिंबल प्रतीक 
सूत्रों के अनुसार बात मंत्रालय के बंटवारे तक ही सिमित नहीं है बल्कि महाराष्ट्र के दो बड़े मंदिरों को लेकर भी इन तीनों पाटियों के बीच आपसी होड़ मची है। सूत्रों के मुताबिक मुंबई का सिद्धि विनयक मंदिर और शिर्डी का साईं बाबा का मंदिर देश ही नहीं विदेश में भी काफी प्रसिद्ध है। यहां सेलेब्रटी से लेकर राजनेता तक सभी आकर सिर नवाते हैं। यही नहीं इन मंदिरों में नियंत्रण होना एक तरह से पावर का सिंबल माना जाता है। इनका संचालन करने वाले बोर्ड के प्रमुख की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार के हाथ में होता है, यही कारण है कि राज्य के महाविकास आघाड़ी की तीनों पार्टियां इन मंदिरों पर अपना अधिकार जमाना चाहती हैं।

चढ़ावा भी है मुख्य कारण
इन तीनों पार्टियों को यह अच्छी तरह से पता है कि मंदिरों पर अधिकार जमाना एक तरह से किसी मंत्री के स्टेटस के बराबर है। साथ ही इन मंदिरों में चढ़ने वाला चढ़ावा भी इतना भारी भरकम होता है कि जिसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। और बड़ी बात यह है कि मंदिरों में चढ़ने वाला चढ़ावा हर साल बढ़ता ही जाता है, एक तरह से यहां खुद लक्ष्मी धन वर्षा करती हैं। यही कारण है की तीनों पार्टियां इन दोनों मंदिरों में अपना अधिकार चाहती हैं।

इसका अंदाजा हम इससे लगा सकते हैं, 

2019 में शिर्डी क्वे साईं बाबा के मंदिर में 300 करोड़ का चढ़ावा आया। इसके अलावा इस चढ़ावे में 20 किलो से अधिक सोना और लगभग 400 किलो चांदी भी शामिल है। यहां हर साल दो करोड़ से अधिक की संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं। 

मुंबई का सिद्धि विनायक मदिर में इस साल 400 करोड़ से अधिक का चढ़ावा आया। इसके अलावा सोना-चांदी का दान अलग से। बताया जाता है कि यहां हर साल सवा करोड़ से ज्यादा भक्त दर्शन करते हैं।

बन सकता है 'तीर्थस्थान मंत्रालय'
अब इस समस्या को देखते हुए सरकार पहली बार महाराष्ट्र में अलग से एक 'तीर्थस्थान मंत्रालय' बनाने की बात चल रही है, जिसके तहत शिर्डी, सिद्धिविनायक समेत बाकी अन्य महत्त्वपूर्ण मंदिर भी इसी मंत्रालय के अधीन रहेंगे। अगर ऐसा होता है तो सिद्धि विनायक पर शिवसेना का, शिर्डी पर कांग्रेस का और बाकी बचे हुए मंदिरों पर एनसीपी का कंट्रोल होगा।  

किसके हिस्से कौन से भगवान?
वर्तमान में सिद्धि विनायक का कंट्रोल शिव सेना के पैसा है, जबकि शिर्डी के मंदिर पर बीजेपी का कंट्रोल था, लेकिन अब सूबे में नई सरकार आ गयी है तो शिर्डी का कंट्रोल एनसीपी और कांग्रेस अपने हाथ में लेना चाहती है। शिवसेना के सूत्रों का कहना है कि वह सिद्धिविनायक मंदिर अपने पास रखना चाहती है, जबकि कांग्रेस चाहती है कि उसे शिर्डी मिले, तो वहीं एनसीपी का कहना है की उसे सिद्धिविनायक या शिर्डी, दोनों में से कोई भी मंदिर का कंट्रोल चाहिए। 

साल 1999 , 2004 और 2009 में यानी जब कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी तब शिर्डी कांग्रेस के पास और सिद्धिविनायक एनसीपी के पास था। लेकिन उस समय सिर्फ यही दो पार्टियां थी, इसीलिए बंटवारा आसान था, और 2014 में भी बेजीपी और शिव सेना दो ही पार्टियां थी, इसीलिए उनके बीच आसानी से बंटवारा हो गया। लेकिन इस बार तीन पार्टियों की सरकार है इसलिए बंटवारा मुश्किल हो रहा है और तीनों पार्टियों में भगवान को बांटने की खींचतान चल रही है।

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