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जनता के लिए तिजोरी खाली, मंत्रियों के लिए कुबेर जैसा ख़ज़ाना

कोरोना काल में हाथ से काम चले जाने के कारण जहां एक ओर आम जनता के सामने दो वक्त की खाने के लाले पड़े थे, उस तौर में महाराष्ट्र में मंत्रियों के बंगलों की मरम्मत में 90 करोड़ रूपए खर्च किए गए।

जनता के लिए तिजोरी खाली, मंत्रियों के लिए कुबेर जैसा ख़ज़ाना
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लोकतांत्रिक (democracy) व्यवस्था में सबको एक समान भले ही कहा जाता हो पर वास्तविकता के धरातल पर देखा जाए तो नेता और आम-जनता के बीच बहुत बड़ा अंतर है। यह अंतर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई (capital city mumbai) में कोरोना (Covid19) काल में भी स्पष्ट तौर पर देखने को मिला। कोरोना काल में हाथ से काम चले जाने के कारण जहां एक ओर आम जनता के सामने दो वक्त की खाने के लाले पड़े थे, उस तौर में महाराष्ट्र में मंत्रियों के बंगलों की मरम्मत में 90 करोड़ रूपए खर्च किए गए। 

कोरोना काल में आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए विकास कार्यों पर ब्रेक लगा दिया और कोरोना काल में सरकार ने तिजोरी खाली होती देखकर शराब की दुकानें शुरू करने की अनुमति देकर चालाकी जरूर की, लेकिन जनता के विरोध के कारण शराब की दुकानों (wine shop) के खुले शटर सरकार को फिर गिराने पड़े। राज्य की आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने के बावजूद मंत्रियों को बंगले और मंत्रियों के केबिन पर 90 करोड़ रूपए खर्च करके सरकार ने आम जनता तथा नेता के बीच के अंतर को साफ कर दिया है। सरकार ने बता दिया है कि चाहे आर्थिक स्थिति कितनी भी खराब को मंत्रियों, नेताओं के लिए धन की कमी नहीं पड़ने दी जाएगी। 

मरम्मत के नाम पर हरेक मंत्री के बंगले पर एक करोड़ से ज्यादा रूपए खर्च करने से यह साबित हो गया है कि मंत्रियों की सुविधा में कोई कमी नहीं की जाएगी। सामाजिक न्यायमंत्री धनंजय मुंडे (dhananjay munde) के बंगले की साज सज्जा में 3.89 करोड़ रुपए खर्च किए जाने की बात सामने आयी है। धनंजय मुंडे ने अपने बंगले पर हुए खर्च के बारे में स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि मुझे बंगले में आकर अभी सिर्फ 8 दिन ही हुए हैं, मैंने अपने बंगले की साज-सज्जा या किसी भी कार्य के लिए अब तक एक भी रूपया खर्च नहीं किया है। सार्वजनिक निर्माण कार्य (PWD) विभाग ने कुछ मंत्रियों के साथ-साथ विरोधी पक्ष नेता देवेंद्र फडणवीस (Devendra fadnavis) को बंगले को मिलाकर कुल 31 बंगलों के मरम्मत तथा रंगरोगन के लिए निविदा निकाली थी, लेकिन निविदा प्रस्तुत करने से पहले ही बंगलों की मरम्मत, रंगरोगन, साजसज्जा का काम शुरु कर दिया गया था। 

मंत्रियों के बंगलों के काम के लिए इतनी सक्रियता दिखाने का सीधा मतलब यही है कि मंत्रियों की सुख-सुविधा की कितनी चिंता की जाती है, जबकि आम नागरिकों की समस्याओं की ओर जरा सा भी ध्यान नहीं दिया जाता है। जिन 31 बंगलों की साज सज्जा की गई है, उनमें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (uddhav thackeray) का सरकारी निवास स्थान वर्षा का भी समावेश है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के वर्षा बंगले की मरम्मत तथा रंगरोगन पर 3 करोड़, 26 लाख रुपए,  उप मुख्यमंत्री अजित पवार (ajit pawar) के सरकारी बंगले देवगिरी पर 1 करोड़, 78 लाख रुपए, राजस्व मंत्री बालासाहेब थोरात (balasaheb throat) के सरकारी बंगले रॉयलस्टोन पर 2.26 करोड़ रूपए,  सार्वजनिक निर्माण कार्य मंत्री अशोक चव्हाण (ashok chavhan) के सरकारी बंगले मेघदूत पर 1.46 करोड़ रुपए, सामाजिक न्याय मंत्री धनंजय मुंडे को आवंटित किए गए सरकारी बंगले चित्रकूट पर 3.89 करोड़ रुपए,  उद्योग मंत्री सुभाष देसाई (shubhash desai) के सरकारी आवास शिवनेरी पर 1.44 करोड़ रुपए, अन्न व नागरी आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल (chhagan bhujbal) के रामटेक बंगले पर 1.67 करोड़ रुपए,  चिकित्सा शिक्षा मंत्री अमित देशमुख (amit deshmukh) के बंगले बी-3 के रंगरोगन पर 1.40 करोड़ रूपए, पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे (Aaditya thackeray)  के सातपुडा बंगले पर 1.33 करोड़ रुपए, ऊर्जा मंत्री नितीन राऊत (nitin raut) की पर्णकुटी पर 1.22 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।  

सार्वजनिक उपक्रम मंत्री एकनाथ शिंदे (eknatah shinde) के पास अग्रदूत तथा नंदनवन ये दोनों मलबार हिल क्षेत्र में स्थित अगल-बगल के दो बंगले हैं, उनके रंगरोगन पर 2.80 करोड़ रूपए खर्च किए गए। खुद को किसानों की हितैषी बताने वाली सरकार के मंत्री अपने बंगलों पर करोड़ों पर खर्च होने पर फुले नहीं समा रहे। जिन 31 बंगलों को सजाने- संवारने में 90 करोड़ रुपए खर्च किए गए, उनमें से एक भी मंत्री ने यह नहीं कहा कि बंगलों पर इतने खर्च करना फिजूलखर्ची है। हां, इतना जरूर है कि उप मुख्यमंत्री अजित पवार का कहना है कि बंगलों के रंगरोगन पर खर्च तो हुआ है, लेकिन 90 करोड़ रूपए उसके लिए खर्च नहीं किए गए। 

मंत्रियों के इटालियन टाइल्स वाले बंगले और सामान्य लोगों के लिए जरूरत की वस्तुओं पर खर्च करने से सरकार के इंकार से भी यह साफ हो गया है कि सरकार जनता और मंत्रियों-नेताओं में भेद करती है। सार्वजनिक निर्माण कार्य विभाग के अंतर्गत किए जाने वाले मार्ग निर्माण के कार्य निधि के अभाव में ठप्प पड़े हैं। राज्य के अधिकांश हिस्सों में रास्तों की हालत इतनी ज्यादा खराब है कि उन पर वाहन चलाना भी संभव नहीं है।राज्य के अधिकांश हिस्सों में रास्तों की हालत इतनी ज्यादा खराब है, उन रास्तों पर हर दिन कोई- कोई बड़ा हादसा होता है और लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। मुंबई के गढ़्ढों के बारे में तो मुंबई उच्च न्यायालय ने भी सख्ती दिखायी है।मंत्रियों के बंगले पर 90 करोड़ रुपए तथा बंगलों की बिजली-पानी की बकाया धनराशि के बारे में कोई पूछताछ नहीं होती। पैसों की तंगी बताकर सरकार ने अपने कर्मचारियों को कुछ माह तक आधा वेतन भी दिया है। 

राज्य के सरकारी कर्मचारियों ने सरकार को कोरोना काल में भरपूर सहयोग भी दिया लेकिन जब इस सरकार ने अपने मंत्रियों के बंगलों के लिए 90 करोड़ रूपए खर्च तो सरकारी कर्मचारियों को सरकार की यह नीति रास नहीं आई। जनता के सामने आर्थिक समस्या का रोना और मंत्रियों के बंगलों की मरम्मत के लिए करोड़ों खर्च करने की नीति तो यही बता रही है कि जनता के लिए तिजोरी खाली और नेताओं को लिए कुबेर का खज़ाना। राज्य की महाविकास आघाड़ी की सरकार ने जनता और मंत्रियों के बीच के फासले को बढ़ाकर राजा के प्रजा के बीच क्या अंतर होता इसकी भी अनुभूति करा दी है।

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