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क्या एकनाथ खड़से को राकांपा में मिलेगा इच्छित सम्मान?


क्या एकनाथ खड़से को राकांपा  में मिलेगा इच्छित सम्मान?
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भारतीय राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं सकता। यह बात केवल एक राज्य की राजनीति तक ही सीमित नहीं रह गई है, बल्कि यह बात धीरे-धीरे पूरे देश की राजनीति का हिस्सा बन गई है। 22 अक्टूबर को अपने असंख्य कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में एकनाथ खडसे (eknath khadde) ने राकांपा (ncp) का दामन थाम लिया। राकांपा का दामन थामने के बाद एकनाथ खडसे ने जिस तरह का तेवर दिखाया है, उससे यह साफ हो गया है कि खडसे राकांपा में भी अपना पहले जैसा तेवर ही दिखाएंगे। एकनाथ खड़से भाजपा (bjp) छोड़कर राकांपा में कोई गए, इसके पीछे का मूल कारण क्या है, यह तो एकनाथ खड्से ने भाजपा को त्यागते तथा राकांपा को स्वीकाराते समय बता दिया था। उन्होने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (devendra fadnavis) पर ठीकरा फोड़ते समय कहा कि फडणवीस के कारण ही उन्हें भाजपा का त्याग करना पड़ा. देवेंद्र फडणवीस को छोड़कर एकनाथ खड़से को किसी से भी कोई शिकायत नहीं हैं।  

 भाजपा के साथ 40 वर्ष की राजनीतिक यात्रा पूरी करने के बाद एकनाथ खडसे शरद पवार की राकांपा में शामिल हो गए। एकनाथ खडसे ने राकांपा का दामन थाम को लिया है, लेकिन क्या खडसे को राकांपा में जाने के बाद वह मान-सम्मान मिलेगा, जिसे वे प्राप्त नहीं कर सके। राकांपा सुप्रिमो शरद पवार (ncp chief sharad pawar) की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद एकनाथ खडसे के राकांपा मे जाने का रास्ता साफ हुआ। एकनाथ खडसे ने 1989 में पहली बार मुक्ताईनगर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र चुनाव से लड़ा और जीत हासिल की. राज्य में जब 2014 में भाजपा- शिवसेना गठबंधन (bjp-shivsena alliance) की सरकार बनी तथा देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने, उस वक्त से एकनाथ खडसे के मन में जो नाराजगी शुरू हुई, वह नाराज़गी भाजपा छोड़ते वक्त भी उनके मन में स्पष्ट रूप से देखी गई। 

राकांपा में एकनाथ खड़से के प्रवेश से वर्तमान उप मुख्यमंत्री अजित पवार (ajit pawar) नाराज हैं, पहले ऐसा कहा गया लेकिन बाद में अजित पवार ने ही खुलासा किया कि वे कोरोना पाजिटिव (Covid positive) हैं, इसलिए वे खडसे का स्वागत करने के लिए नहीं आ सके। शिवसेना नेता मनोहर जोशी (manohar joshi) के नेतृत्व वाली सरकार में वित्त तथा सिंचाई विभाग के मंत्री रहे एकनाथ खड़से नवंबर 2009 से 2014 तक विधानसभा में विरोधी पक्ष नेता का काम भी देखा है। 

देवेंद्र फडणवीस से टकराव के कारण भाजपा छोड़ने का निर्णय करने  के बाद से यह सवाल बार-बार सामने आ रहा था कि खड़से भाजपा छोड़ेगे तो जाएंगे। 2014 में अस्तित्व में आई देवेंद्र फडणवीस की सरकार में राजस्व का मंत्री रहते समय उन पर लगे आरोप के बाद फडणवीस तथा खड़से के बीच का फासला इतना ज्यादा बढ़ गया कि उनमें समझौता हो पाना संभव नहीं था। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विनोद तावड़े, चंद्रशेखर बावनकुले,प्रकाश मेहता के साथ-साथ एकनाथ खड़से का भी टिकट काट दिया, इसके बाद भी एकनाथ खड़से को इस बात का एहसास नहीं हुआ कि अब भाजपा में उनकी अहमियत नहीं रही, वे भाजपा में बने रहे और लगातार देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ आग उगलते रहे। 

जब एकनाथ खड़से की बेटी को भी विधानसभा चुनाव में पराजय मिली तो उनके संयम का बांध टूट गया और वे सीधे तौर पर दवेंद्र फडणवीस के खिलाफ आ गए। भाजपा की ओर से जब  देवेंद्र फडणवीस को बिहार का चुनाव प्रभारी बनाया गया तो उस वक्त एकनाथ खड़से ने खुलकर कहा था टिकट बंटवारे में देवेंद्र फडणवीस ने जैसी रणनीति महाराष्ट्र में अपनायी थी वैसी नीति वे बिहार में न अपनाएं, बेटी की विधानसभा चुनाव हुई हार ने एकनाथ खड़से तथा देवेंद्र फडणवीस के बीच के दरार के दायरे को इतना ज्यादा बढ़ा दिया कि उसके बाद एकनाथ खड़से का भाजपा में रहना मुश्किल होता जा रहा था, उन्हें भाजपा में घुटन सी होने लगी और इसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने किसी ऐसे राजनीतिक कुनबे की तलाश शुरु की और शरद पवार की पार्टी राकांपा में जाने के बाद वे भाजपा तथा फडणवीस के खिलाफ जंग छेड़ने का ऐलान किया है।

 एकनाथ खड़से ने राकांपा का दाम तो थाम लिया है, लेकिन क्या उनकी चाहत राकंपा में पूरी होगी इसकी उम्मीद नहीं के बराबर है। कहा जा रहा है कि एकनाथ खड़से को राकांपा महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी जा सकती है। वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष जयंत पाटिल (jayant patil) को महाविकास अघाडी (mva) की सरकार में  में स्थान प्राप्त है । शरद पवार (sharad pawar) ने उत्तर महाराष्ट्र में राकांपा की ताकत बढ़ाने के मद्देनज़र एकनाथ खडसे को राकांपा में शामिल किया है, ऐसा राजनीतिक जानकारों का दावा है। सुनने में तो यह भी आ रहा है कि आने वाले दिनों में भाजपा के कुछ अन्य विधायक भी राकांपा का रूख कर सकते हैं।  

विधायक, मंत्री तथा विरोधी पक्ष नेता के रूप में काम कर चुके एकनाथ खड़से राकांपा में कितना सम्मान प्राप्त करते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। मुख्यमंत्री बनने की आस रखने वाले एकनाथ खडसे को राकांपा में कौन-कौन से पद मिलते हैं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। स्पष्ट वक्ता तथा हाजिरीजबाबी के लिए ख्यात एकनाथ  खडसे का भाजपा में जिस तरह से देवेद्र फडणवीस के साथ टकरान रहा, वैसा ही टकराव अब एकनाथ खडसे तथा राकांपा नेताओं के बीच भी हो सकता है। जलगाव जिले में कांग्रेस को कभी-भी अपनी ताकत बहुत ज्यादा बढ़ाने को नुहीं मिली. अब जबकि एकनाथ खडसे का राकापा में आगमन हो गया है तो जलगांव के साथ-साथ धुले तथा नंदूरबार, खानदेश के इन तीनों जिलों में ‘राष्ट्रवादी’ का पाया और ज्यादा मजबूत होगा। आने वाले दिनों में एकनाथ खडसे की राकांपा में भूमिका क्या होगी यह साफ हो जाएगा और तभी यह बात भी स्पष्ट होगी कि एकनाथ खडसे का भाजपा छोड़कर राकांपा में जाने का फैसला उचित था या नहीं।

Note : इस आर्टिकल में लेखक के खुद के विचार हैं। इसका मुंबई लाइव से कोई लेना देना नहीं है।

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