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पवार घराने में मतभेद, यह टकराव कहां ले जाकर छोड़ेगा

पवार घराने और ठाकरे घराने में जो मूलभूत फर्क है, वह यह है कि उद्धव ठाकरे (uddhav thackeray) अपने पुत्र आदित्य (aditya thackeray) के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं, जबकि पवार घराने में दादा और पोते में जंग चल रही है।

पवार घराने में मतभेद, यह टकराव कहां ले जाकर छोड़ेगा
Photo credit: TV9 marathi
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महाराष्ट्र में दो राजनीतिक घरानों का विशेष महत्व है, एक पवार घराना और दूसरा घराना ठाकरे घराना। इन दोनों घरानों की तीसरी पीढ़ी वर्तमान में राज्य की राजनीति में सक्रीय है। ठाकरे घराने में आदित्य (Aaditya thackeray) तथा पवार घराने में पार्थ (parth pawar) और रोहित पवार (rohit pawar) तीसरी पीढ़ी का प्रतनिधित्व कर रहे हैं। पवार घराने और ठाकरे घराने में जो मूलभूत फर्क है, वह यह है कि उद्धव ठाकरे (uddhav thackeray) अपने पुत्र आदित्य (aditya thackeray) के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं, जबकि पवार घराने में दादा और पोते में जंग चल रही है।

सुशांत (sushant singh rajput suicide case) प्रकरण सीबाआई को देने की मांग किए जाने पर राकंपा अध्यक्ष शरद पवार (sharad pawar) द्वारा फटकारे जाने के बाद पार्थ पवार ने भी अपनी भूमिका स्पष्ट की है। पार्थ पवार (parth pawar) ने सत्यमेव जयते जैसे वक्तत्व के आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है।

अभिनेता सुशांत सिंह (actor singh rajput) प्रकरण सीबीआई (CBI) को देने का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है। इसके बाद कुछ ही मिनिट बाद पार्थ ने सत्यमेव जयते, इस तरह का ट्विट किए जाने से आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है। सुशांत प्रकरण में शरद पवार (sharad pawar) ने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की, उससे पार्थ पवार बहुत नाराज हुए। कहा जा रहा है कि पार्थ के बयान से शरद पवार (sharad pawar) और अजित पवार (ajit pawar) के बीच मनमुटाव भी बहुत ज्यादा बढ़ गया था।

दादा और नाती की इस जंग का फायदा विपक्षी दल भाजपा ने उठाते हुए भाजपा ने कहा कि पार्थ पवार लंबी रेसा घोड़ा है। पहले राम मंदिर और फिर सुशांत सिंह राजपूत (sushant singh rajput) के मामले में पार्टी लाइन से बाहर जाकर बयान दिया है, जो शरद पवार (sharad pawar) को रास नहीं आया और उन्होंने साफ कर दिया कि पार्थ पवार के बयानों को मैं गंभीरता से नहीं लेता।

राकांपा के एक वरिष्ठ नेता तथा राज्य के पूर्व उपमुखमंत्री छगन भुजबल (chhagan bhujbal) ने तो यहां तक कहा कि नया है वह। जिस तरह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी (rahul gandhi) के किसी विचारधारा पर कांग्रेस (Congress) सहमत नहीं होती थी तो नया है वह कहकर मामले को रफा-दफा कर दिया करते थे। 

राज्य के पूर्व मंखमंत्री देवेंद्र फडणवीस (devendra fadnavis) का कहना है कि भाजपा (BJP) राहुल (rahul) के बयान को गंभीरता से नहीं लेती। दूसरे शब्दों में कहें तो राकांपा में शरद पवार अपने पोते पार्थ पवार को गंभीरता से नहीं लेते तो भाजपा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान को ज्यादा महत्व नहीं देते। यानि भाजपा के नज़रिए में जो स्थान राहुल गांधी को मिला हुआ, लगभग वहीं स्थान पार्थ पवार का राकांपा के शीर्ष नेताओं के नज़रिए में है। 

कहा जा रहा है कि शरद पवार से कटाक्ष से पार्थ पवार इतने नाराज हैं कि वे राकांपा छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। पार्थ पवार ने गृहमंत्री अनिल देशमुख (anil deshmukh) से मुलाकात करके अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले की सीबाई जांच की मांग की थी। पार्थ पवार के गृहमंत्री से मिलने तथा उनसे राजपूत प्रकरण की सीबीआई जांच करने की बात कहकर राकांपा में हचलच मचा दी।

इस प्रकरण में पहले ही गृहमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया था कि किसी भी हालत में राजपूत प्रकरण की सीबीआई जांच नहीं की जाएगी, लेकिन जब उन्हीं की पार्टी के एक युवा नेता ने सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग उठाकर एक तरह से यह साबित कर दिया कि उनकी विचारधारा पार्टी लाइन से अलग है। पार्थ के बयान के बाद राकांपा सुप्रिमो ने साफ किया कि मैं पार्थ की बातों को कौड़ी का भी महत्व नहीं देता। राज्य में तीन दलों की सरकार का गठन जिस तरह से हुआ, उसेक बाद से लगातार यह कहा जाने लगा कि शरद पवार कुछ भी कर सकते हैं।

बारिश में सभा करते लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करने वाले शरद पवार अपने भतीजे अजित पवार तथा उनके पुत्र पार्थ के व्यवहार से बहुत परेशान हैं। शरद पवार चाहते हैं कि वे जो कुछ कहते हैं और करते हैं, उसके विरोध मे कोई आवाज न उठाए।

अजित पवार के पुत्र पार्थ पवार के बारे में किए गए वक्तव्य के कारण महाराष्ट्र के राजनीतिक क्षेत्र में गतिरोध ही पैदा हो गया था। पार्थ पवार अभी अपरिपक्व हैं, उनके बयान को में कवडी भर की कीमत मैं नहीं देता, जब इस तरह सा बयान राकांपा सुप्रिमो ने दिया तो साफ हो गया कि शरद पवार अभी अपने कुनबे से किसी को भी आगे नहीं आने देना चाहते।

पार्थ पवार को पिछले लोकसभा चुनावी जंग में खड़ा न करने के पक्षधर रहे शरद पवार का राजनीतिक अनुभव नई पीढ़ी के सभी नेताओं की आयु से भी अधिक है। 

इन पूरे घटनाक्रम को आज के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पडताल करके देखने की जरूरत है। महाविकास आघाडी की सरकार स्थापित होने से लेकर शरद पवार राज्य में जबरर्दस्त रूप से सक्रिय हुए हैं।

राज्य सरकार के छोटे बड़े नीति को अमल में लाने के बारे में शरद पवार स्वयं अपनी पार्टी के साथ. साथ मुख्यमंत्री से भी सतत चर्चा करत करते रहते हैं, पार्थ पवार के रूप में जो विरोधी स्वर पवार कुनबे में उभरा है, उस पर नियंत्रण लगाना बहुत जरूरी है, अगर समय रहते शरद पवार ने स्थिति को नहीं संभाला तो अजित पवार अपने कुछ सहयोगी विधायकों को लेकर अपनी अलग से पार्टी बना ली तो पवार कुनबे का भी वही हश्र होगा जो आज ठाकरे कुनबे का है। सही समय पर सही कदम ही पवार घराने की मजबूती बनाए रखेगा, अन्यथा यह पवार नामक राजनीतिक कुनबा ठाकरे कुनबे की ओर बढ़ता हुआ दिखायी देगा।

लेखक : सुधीर जोशी


नोट: (इस लेख से मुंबई लाइव का कोई संबंध नहीं है। इस लेख में लिखी गई सभी सामग्री लेखक के अपने विचार हैं।)

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