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मुंबई कांग्रेस में सिर-फुटौव्वल !


मुंबई कांग्रेस में सिर-फुटौव्वल !
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देश की आर्थिक राजधानी कहलानेवाली मुंबई में राजनीतिक माथापच्ची भी कम नहीं होती है। किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए मुंबई कितना अहम होता है ये उनकी मुंबई में होनेवाली रैलियों से ही पता चलता है।  देश की शायद ही ऐसी कोई पार्टी होगी जिसकी रैली या बैठक मुंबई में ना हो। मुंबई के लिए देश की लगभग हर पार्टियों ने अलग विभाग ही बना रखा है। कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने मुंबई के लिए अलग विभागीय अध्यक्ष रखा है यानी की महाराष्ट्र पार्टी अध्यक्ष मुंबई पार्टी अध्यक्ष के कामों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। लेकिन इन दिनों एक पार्टी के मुंबई विभाग में उथल पुथल मची हुई है। मुंबई कांग्रेस में इन दिनो जमकर  सिर-फुटौव्वल हो रही है। 


देश की आर्थिक राजधानी होने के कारण मुंबई में हर पार्टी अपना अस्तित्व बनाए रखा चाहती है। कांग्रेस ने भी मुंबई में अपनी पार्टी का दबदबा बनाए रखने के लिए अलग मुंबई विभागीय कांग्रेस की स्थापना की थी। मुंबई कांग्रेस हमेशा से ही कांग्रेस के लिए काफी महत्तवपूर्ण रहा है। मुंबई कांग्रेस की कुर्सी पाने के लिए नेताओं में होड़ सी लगी रहती है।  हालही में इस कुर्सी पर कांग्रेस के पूर्व सांसद संजय निरुपम बैठे थएलेकिन ठिक लोकसभा चुनाव के पहले संजय निरुपम को हटाकर पूर्व केंद्रिय मंत्री मुरली देवड़ा के बेटे मिलिंद देवड़ा को मुंबई कांग्रेस की कमान सौपी गई थी। हालांकी लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद मिलिंद देवड़ा ने इस पद से इस्तीफा दे दिया है।  



मुंबई में कांग्रेस में जारी घमासान रुकने का नाम नहीं ले रहा है। पिछलें एक दशक से मुंबई कांग्रेस में हलचल मची हुई है। साल 2014 में लोकसभा मं मिली हार के बाद संजय निरुपम को मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। निरुपम साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर मुंबई से बीजेपी सांसद गोपाल शेट्टी के हाथों हार गए थे , जिसके बाद उन्हे मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई। हालांकी उस समय भी कांग्रेस के एक तबके ने निरुपम को मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध किया था। लोकसभा में हार मिलने के बाद भी निरुपम को मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष पद मिलाये बात कई पूराने कांग्रेसी नेताओं को पच नहीं रही थी।  


पार्टी में गुटबाजी

संजय निरुपम शिवसेना से कांग्रेस में आए थे।  साल 2009 में वह कांग्रेस पार्टी से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। निरुपम ने इस दौरान उत्तर मुंबई में पार्टी कार्यकर्ताओं का काफी समर्थन हासिल कर लिया , हालांकी इसी के दौरान उन्हे उत्तर मुंबई के कई पूराने कांग्रेसी कार्यकर्ताओ को पार्टी के किनारे भी किया।  उत्तर मुंबई में उनके सांसद रहने के दौरान कई पूराने पार्टी कार्यकर्ताओं को परदे के पीछे रखा गया।  उनके सांसद रहने के दौरान उन्होने सिर्फ गिने चुने लोगों को ही अपने आसपास रखा। कई पार्टी कार्यकर्ताओ ने संजय निरुपम के कार्यपद्धति पर भी सवाल उठाया था। कई कार्यकर्ताओं का कहना है की उन्होने उत्तर मुंबई में पार्टी में गुटबाजी की शुरुआत की। जिसके बाद उत्तर मुंबई में पार्टी कार्यकर्ताओं में ही बंटवारा देखने को मिला। 


वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं से भी निरुपम की नहीं जमी

संजय निरुपम ने शिवसेना से कांग्रेस में प्रवेश किया था और फिर उन्हे लोकसभा की टीकट दे दिया गया था।  जिसके बाद से कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता निरुपम से नाराज भी रहने लगे। कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी में निरुपम को इतनी प्राथमिकता मिलने पर भी नाराजगी जाहीर की।  जिसके बाद से ही मुंबई कांग्रेस में निरुपम को लेकर पार्टी में गुटबाजी साफ दिखती रही।  वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं  ने निरुपम की नाराजगी समय के साथ साथ बढ़ती गई।  

पार्टी में अंदरुनी गुटबाजी रही शुरु

मुंबई कांग्रेस में कई ऐसे युवा चेहरे है जो जिनके पिता कांग्रेस में बड़े पद पर थे। मिलिंद देवड़ा से लेकिर प्रिया दत्त  तक मुंबई कांग्रेस में युवा चेहरे के साथ साथ एक कद्दावर कांग्रेसी के रुप में भी जाने जाते थे। एकनाथ गाड़कवाड़ , जनार्दन चांदुरकर , भाई जगताप ऐसे कई कांग्रेसी नेता थे जिन्होने पार्टी में शुरुआती दौर से रहकर ही पार्टी में बड़ा पद हासिल किया।  लेकिन संजय निरुपम को पार्टी में मिलती प्राथमिकता के कारण पार्टी में गुटबाजी दिखती रही

मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी

साल 2014 में लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद  संजय निरुपम को पार्टी ने मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान सौपी। मुंबई में मिलिंद देवड़ा , प्रिया दत्त जैसे कई चेहरो के होने के बावजूद संजय निरुपम को मुंबई कांग्रेस की कमान मिलने से सभी भौचंके रह गए थे।  खुद चुनाव हारने के बाद भी निरुपम को मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष का पद मिला , जो मुंबई कांग्रेस में आश्चर्य का विषय बना।


कांग्रेस को रखा जिंदा 

निरुपम ने भले ही पार्टी में गुटबाजी की हो, लेकि एक बात ये भी सच है की साल 2014 में मिली लोकसभा चुनाव में हार के बाद अगर मुंबई में पार्टी को किसी ने जिंदा रखा तो वो संजय निरुपम थे। सड़को पर उतरकर पार्टी कार्यकर्ताओं ने साथ निरुपम ने मोदी सरकार के कई मुद्दों का जमकर विरोध किया। अनिल अंबानी के खिलाफ भी उन्होने जनकर आंदोलन किया। राफेल के मुद्दे को लेकर उन्होने मुंबई में पार्टी के विचारों को जिंदा रखा। सत्ता में ना होने के बाद भी निरुपम ने मुंबई में कांग्रेस पार्टी को बतौर एक विपक्षी पार्टी जिंदा रखा और वो भी उस समय जब उन्हे वरिष्ठ कांग्रेसियों का बहूत कम समर्थन मिलता था।

लोकसभा चुनाव आते आते चरम पर गुटबाजी

साल 2017 में हुए बीएमसी चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया।  जिसके बाद से निरुपम के नेतृत्व पर सवाल खड़े होने लगे। लोकसभा चुनाव आते आते मुंबई कांग्रेस में गुटबाजी खुलकर देखने को मिली। कई कांग्रेसी नेताओं ने निरुपम को मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की। मिलिंद देवड़ा भी लोकसभा चुनाव के आते आते निरुपम के खिलाफ खुलकर बोलने लगे।  निरुपम को हटाने की मांग जोर पकड़ने लगी। मुंबई कांग्रेस की लड़ाई पार्टी के दिल्ली दरबार में जा पहुंची। दोनों ही गुटों ने अपनी बात तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पास रखी। जिसके बाद राहुल गांधी ने संजय निरुपम को मुंबई कांग्रेस पद से हटा दिया और मिलिंद देवड़ा को मुंबई कांग्रेस की कमान सौप दी।  


पूराने कांग्रेसियों में उत्साह 

मिलिंद देवड़ा पूर्व केंद्रिय मंत्री मुरली देवड़ा के बेेटे है। मिलिंद देवड़ा के अध्यक्ष बनने के बाद कई पूराने कांग्रेसी कार्यकर्ताओ ने उनका स्वागत किया।  मिलिंद देवड़ा के अध्यक्ष बनने के बाद पूराने पार्टी कार्यकर्ताओ में एक अलग सा ही जोश आ गया। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भी पार्टी के इस कदम का स्वागत किया।  हालांकी इसके बाद भी मुंबई कांग्रेस में गुटबाजी खत्म नहीं हुई।


मिलिंद देवड़ा ने भी दिया इस्तीफा

हालांकी पार्टी को 2019 में लोकसभा चुनाव में भी करारी हार मिली , जिसके हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।  कई कांग्रेसी पदाधिकारियों ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया।  मिलिंद देवड़ा ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 

उर्मिला ने भी पार्टी कार्यकर्ताओं पर लगाया आरोप 

कांग्रेस ने उत्तर मुंबई सीट से अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर को साल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया था। हालांकी वह भी गोपाल शेट्टी के सामने हार गई। उर्मिला ने भी तत्कालीन मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा को पत्र लिखा और कहा की उनके चुनाव अभियान में पार्टी कार्यकर्ताओ ने उनका साथ नहीं दिया जिसके कारण वह हार गई।

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