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वादे से मुकरती सरकार, जनता में बढ़ता आक्रोश

जनाक्रोश कुछ ऐसा है कि लोग अब मंत्रियों के आवास का घेराव करने में भी हिचक महसूस नहीं कर रहे हैं। इसी क्रम में 4 जनवरी को ऊर्जा मंत्री नितीन राऊत (nitin raut) के आवास का घेराव करके कोरोना (Corona19) काल का भारी भरकम बिजली बिल माफ करने की अधिकृत घोषणा करने

वादे से मुकरती सरकार, जनता में बढ़ता आक्रोश
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समाज, सरकार और मंत्री के तीनों के बीच समन्वय हो तो लोकतांत्रिक व्यवस्था (democracy system) बड़ी ही सुचारू तरीके से चलती है। लेकिन राज्य सरकार की कुछ नीतियां ऐसी हैं, जिससे जनता तथा सरकार के बीच बन नहीं रही है। जनाक्रोश कुछ ऐसा है कि लोग अब मंत्रियों के आवास का घेराव करने में भी हिचक महसूस नहीं कर रहे हैं। इसी क्रम में 4 जनवरी को ऊर्जा मंत्री नितीन राऊत (nitin raut) के आवास का घेराव करके कोरोना (Corona19) काल का भारी भरकम बिजली बिल माफ करने की अधिकृत घोषणा करने की मांग की गई। सरकार अगर अपने वायदे से मुकर रही हो तो उसे जागृत करने का काम जनता को करना ही पड़ता है। विदर्भ राज्य अंदोलन समिति का कहना है कि कोरोना काल में विदर्भ की जनता को भी राज्य के अन्य हिस्सों की तरह बिजली का बिल माफ किया जाए, लेकिन राज्य की महाविकास आघाड़ी की सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। 

कोरोना काल में विदर्भ क्षेत्र की जनता ने भी 200 यूनिट तक बिजली बिल माफ करने की गुजारिश की थी और उसके लिए ऊर्जा मंत्री ने हामी भी भरी थी लेकिन उस पर भी सरकार की ओर से ध्यान नहीं दिया गया। जब लॉकडाउन (lockdown) की अवधि लगातार बढ़ती चली गई तो आधा बिजली बिल (light bill) माफ करने की मांग जोर पकड़ने लगी, किसानों को कृषि पंप के विद्युत सप्लाई पूरी से निशुल्क करने की मांग भी लगातार होती रही है, लेकिन महाविकास आघाडी सरकार (mahavikas aghadi government) ने भारी भरकम बिल को माफ करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी। राज्य की उद्धव ठाकरे (uddhav thackeray) सरकार ने अतिवृष्टि की नुकसान भरपाई के लिए किसानों हेतु 10 हजार करोड़ रुपए का पैकेज घोषित किया, उनमें में 9993 करोड़ रूपए पश्चिम महाराष्ट्र तथा सिर्फ 7 करोड़ रूपए विदर्भ को दिए गए, वह भी ऐसी स्थिति में जब विदर्भ के बहुत से परिवारों ने बाढ़ का संकट सहन किया था। 

पश्चिम महाराष्ट्र को भारी भरकम पैकेज तथा विदर्भ के लिए खाना पूर्ति इस तरह की नीति अपनाने के कारण विदर्भ की जनता सरकार तथा मुख्यमंत्री दोनों से नाराज है। पश्चिम महाराष्ट्र तथा विदर्भ (vidarbha) को दिए गए राहत पैकेज में जमीन आसमान का फर्क है। सरकार ने राहत पैकेज में इतना बड़ा अंतर करके विदर्भद्रोह तथा विदर्भ विरोध का परिचय दिया है। विदर्भ के किसानों को 25 हजार रूपए प्रति हेक्टर नुकसान भरपाई देने की मांग स्वतंत्र विदर्भ राज्य समिति की ओर से की गई है। विदर्भ राज्य आंदोलन समिति की ओर से 4 जनवरी को दोपहर 12 बजे बिजली बिल माफी तथा स्वतंत्र विदर्भ राज्य के मुद्दे को लेकर आंदोलन किया गया। इस दौरान ऊर्जा नितीन राऊत का घेराव किया गया। इस आंदोलन में विदर्भ के 11 जिलों के किसान, बिजली उपभोक्ता, विदर्भ क्षेत्र के निवासी शामिल हुए। इससे पहले भी राज्य की शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड के कामकाज पर भी सवाल उठाया गया था। 

आंदोलन में सहभागी होने वालों में युवतियों, महिलाओं का भी समावेश था। महाराष्ट्र में आपूर्ति की जाने वाली बिजली का 75 प्रतिशत हिस्सा विदर्भ का है। बिजली उत्पादन करते समय लगने वाली जमीन, पानी, कोयला ये सभी विदर्भ के बावजूद संकट की घड़ी में सरकार ने विदर्भ की जनता के साथ किसी भी तरह से हमदर्दी नहीं दिखायी। राज्य की उपराजधानी नागपुर के भूमिपुत्रों को राज्य की महाविकास आघाडी सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर हैं। गृह मंत्री अनिल देशमुख (hone minister anil deshmukh) के नागपुर के ही हैं, जबकि ऊर्जा मंत्री नितीन राऊत भी नागपुर के ही हैं, इतना ही नहीं विधानसभा में विरोधी पक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस (devendra fadnavis) का वास्ता भी नागपुर से ही है। इतना ही नहीं विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले (nana patole) का भी नागपुर में निवास है। बड़े-बड़े नेताओं के रहते हुए विदर्भ की जनता को कोरोन काल में भारी- भरकम बिजली का बिल भरने के लिए मजबूर होना पड़ा। 

महाराष्ट्र राज्य बिजली महामंडल के अंतर्गत आने वाली तीन कंपनियां महानिर्मिति, महापारेषण तथा महावितरण हैं, इन्हीं कंपनियों पर राज्य में विद्युत आपूर्ति का दारोमदार है। नितीन राऊत को ऊर्जा मंत्री बने काफी वक्त व्यतीत हो चुका है। ऊर्जा मंत्री बनने के बाद नितीन राऊत ने जो पहला काम किया वह यह था कि उन्होंने ने पूर्ववर्ती देवेंद्र फडणवीस के शासनकाल में महामंडल पर नियुक्त सभी अशासकीय सदस्यों को पदमुक्त कर दिया। उसके बाद सात माह तक ऊर्जा मंत्री कुंभकर्णी नींद सो रहे हैं। नितीन राऊत ने जिन अशासकीय सदस्यों की नियुक्ति की थी, उन्होंने अपना कामकाज शुरु कर दिया होगा, इसमें कोई शक नहीं है। जनता को इस बात से कुछ लेना-देना नहीं कि महामंडल के सदस्य कौन हैं, लेकिन जनता यह जरूर चाहती है कि सरकार में शामिल मंत्री जनता की हर समस्या का समाधान करने के लिए तत्पर रहे।

 देवेंद्र फडणवीस जब मुख्यमंत्री थे, उस वक्त बिजली महामंडल का कामकाज बहुत अच्छी तरह से चलता था, लेकिन राज्य की तीन दलों की सरकार में शामिल शिवसेना (shiv sena), राकांपा (ncp) तथा कांग्रेस (congress) के नेता अपनी मर्जी से काम करते हैं। कोरोना काल में भारी भरकम बिजली बिल को माफ करने या कम करने के संदर्भ में सरकार की ओर से बरती गई उदासीनता के कारण बिजली ग्राहकों में नाराजगी व्याप्त है। राज्य सरकार का बिजली ग्राहकों के प्रति उदासीन रवैय्या जनक्रोश का विषय बन रहा है। ग्राहकों को कोरोना काल में जिस तरह की परेशानी का सामना करना पड़ा, उसके बाद को सर्वत्र यही कहा जाने लगा था कि यह सरकार तो जनहितों की ओर ध्यान ही नहीं देती। कुछ लोगों का तर्क है यह सरकार अपने मंत्रियों के ऐशोआरार पर ज्यादा ध्यान दे रही है, तभी तो मंत्रियों के बंगलों पर 90 करोड़ रूपए खर्च होते हैं और गरीब जनता को कोरोना काल में बरपे कहर के राहत देने के बारे में सरकार विचार ही नहीं रही है।

ऊर्जा मंत्री के बंगले के घेराव के बाद को यह उम्मीद की जा रही है कि ऊर्जा मंत्री तथा राज्य सरकार मिलकर कोरोना काल में आए भारी बिजली बिल माफ कर देंगे। जिन्होंने बिजली बिल जमा किया है, उस राशि को अगले बिल में समायोजित करने का फरमान सरकार की ओर से जारी किया जाएगा। सरकारी बंगलों में बिजली-पानी का बिल बकाया होने के बावजूद किसी भी मंत्री पर उस बिल का भुगतान करने पर जोर नहीं डाला जाता और कोरोना काल में आर्थिक संकट के जूझ रहे लोगों को राहत देने के तौर पर सरकार भारी मरकम बिजली को आधा करने की भी जिंदादिली नहीं दिखाती। कुल मिलाकर ऊर्जा मंत्री के आवास पर क गई घेराबंदी या सरकार के किसी भी मंत्री के खिलाफ सामने आ रहे जनाक्रोश से सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है, अगर ऐसा कहा जाए तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा।  

Note : यह लेखक के अपने विचार हैं।

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