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आंतरिक कलह से जूझते राजनीतिक दल

राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों शिवसेना, राकांपा, कांग्रेस, तथा भाजपा इन सभी दलों की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन करने पर इस बात का खुलासा होता है कि सभी दलों के अंदर खलबली मची हुई है।

आंतरिक कलह से जूझते राजनीतिक दल
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सामाजिक जीवन हो या राजनीतिक जीवन सभी में किसी न किसी तरह के मतभेद, टकराव, कलह तो होते ही रहते हैं, लेकिन जब कलह का साया सभी राजनीतिक दलों पर मड़रा रहा हो तो कुछ भी नहीं सुझता। महाराष्ट्र (maharashtra) के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यहां के सभी राजनीतिक दलों में किसी न किसी तरह का कलह जरूर है। राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों शिवसेना, राकांपा, कांग्रेस, तथा भाजपा (BJP) इन सभी दलों की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन करने पर इस बात का खुलासा होता है कि सभी दलों के अंदर खलबली मची हुई है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (uddhav thackeray) के हाथ में सरकार की स्टेरिंग है, ऐसा भले ही वे ताल ठोंककर कह रहे हों, लेकिन सरकार के कामकाज तथा संकट के मौकौं पर मुख्यमंत्री से ज्यादा सक्रीयता राकांपा (NCP) के नेता दिखाते हैं, तो सवाल उठाए जाते हैं कि सरकार में सबसे ज्यादा किसकी चलती है।

 शिवसेना, राकांपा तथा कांग्रेस (Congress) इन तीन दलों की साझा सरकार में शिवसेना की ओर से मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री तथा शिक्षा मंत्री के अलावा किसी अन्य मंत्री की सक्रियता नहीं दिखायी दे रही है। सरकार में शामिल राकांपा का दबादबा बहुत ज्यादा है। उप मुख्यमंत्री अजित पवार (ajit pawar) कभी-कभी सरकार में शामिल अन्य मंत्रियों की उपस्थिति के बारे में पूछताछ करते हैं तो कभी शरद पवार अपने पसंदीदा विधायक के दामन पर लगे दाग को धोने की कोशिश करते हैं। कभी वे धनंजय मुंडे (dhananjay munde) के प्रति सख्त रवैय्या अपनाते हैं तो कभी वे धनंजय मुंडे को अक्षय देते नजर आते हैं। कभी राकांपा प्रदेशाध्यक्ष जयंत पाटिल (jayant patil) चर्चाओं में आते हैं तो कभी नबाव मलिक (nawab malik) को लेकर चर्चाएं शुरु होती हैं। 

राज्य की महाविकास अघाडी (mva) सरकर ने विगत 29 नवंबर को अपने कार्यकाल के एक वर्ष पूरे किए। बीते एक साल में महाविकास आघाडी की सरकार ने जो कुछ भी किया, उससे इस बात की प्रचीती हुई कि कहीं मुख्यमंत्री अपनी मर्जी से काम कर रहे हैं, वे सरकार में शामिल अन्य दलों की मनमर्जी का ख्याल नहीं रख रहे। कभी राकांपा के नेता अपनी मर्जी चलाते हैं तो कभी शिवसेना (shiv sena) इस बात का आभास करती है कि राज्य में अकेले ही उसकी सत्ता है। येन-केन प्रकारेण राज्य में सत्ता पाने वाले तीन दलों की सरकार में कांग्रेस तो शामिल है, लेकिन कांग्रेस के नेताओं (विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले (nana patole) को छोड़कर) की जैसे कोई हैसियत ही नहीं बची है। औरंगाबाद नामांतरण के मुद्दे पर जिस तरह से कांग्रेस तथा शिवसेना के बीच नूराकुश्ती चली उससे इस बात का पता चला कि भले ही शिवसेना के साथ कांग्रेस राज्य सरकार में शामिल है, लेकिन शिवसेना- कांग्रेस के बीच वैचारिक दूरी अभी-भी पहले जैसी ही है। 

कांग्रेस औरंगाबाद (aurangabad) के नामांतरण को लेकर जिस तरह से शिवसेना तथा मुख्यमंत्री के खिलाफ मुखर हुई, उससे यह साफ है कि कांग्रेस अभी भी शिवसेना के साथ पूरी तन्मयता के साथ नहीं जुड़ी है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष बालासाहेब थोरात (balasaheb thorat)  की आवाज शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, राकांपा सुप्रियो शरद पवार (sharad pawar), उप मुख्यमंत्री अजित पवार के सामने दब जाती है, शायद इसीलिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने बाला साहेब थोरात की जगह विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले को महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की तैयारी कर ली है। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे (sushil kumar shinde) को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजित किया जा सकता है, लेकिन कमजोर, लाचार कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए किसी युवा नेता को ही प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी देना ज्यादा बेहतर होगा। 

राज्य के प्रमुख विरोधी पक्ष नेता देवेंद्र फडणवीस (devendra fadnavis) को लेकर भाजपा के अंदर तो गुट होने के कारण भाजपा में सब कुछ अच्छा चल रहा है, ऐसा कहना ठीक नहीं है, ऐसे में अगर यह कहा जाए कि राज्य के किसी भी राजनीतिक दल के हालात अच्छे नहीं है। ग्राम पंचायत चुनाव में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल के क्षेत्र में भाजपा को मिली असफलता को देखते हुए भाजपा के अंदर भी खलबली मची हुई है. राज्य में राजनीतिक दलों की स्थिति पर अगर गंभीरता से ध्यान दिया जाए तो इस पता चलेगा कि कांग्रेस तथा राकांपा के बीच छोटे भाई-बड़े भाई की जंग चल रही है तो शिवसेना-भाजपा के बीच हम तो हैं तुमसे बीस की जंग चल रही है, यानि शह और मात का खेल जारी है।

 कभी साथ-साथ मिलकर सत्ता चलाने वाले भाजपा-शिवसेना के बीच की स्थिति आज इतनी बिगड़ गई है कि उनके बीच की मित्रता अब शुत्रता में तब्दील हो गई, यानि इनके बीच मित्रता का 63 का आकड़ा अब 33 में तब्दील हो गया है। हालांकि अंदरुनी तौर पर दोनों के बीच फिर पहले जैसी मित्रता के प्रयास जारी हैं, लेकिन ये प्रयास हकीकत में कब तब्दील होंगे, कह पाना मुश्किल है। कांग्रेस-राकांपा ने भी राज्य में साथ मिलकर डेढ़ दशक सत्ता चलायी है। कांग्रेस-राकांपा की साझा सत्ता में अक्सर कांग्रेस ही बड़े भाई की भूमिका में रही है, लेकिन आज की स्थिति में देखें तो राकांपा शिवसेना को विश्वास में लेकर खुद को कांग्रेस के मुकाबले आगे ले जाना चाहती है। राकांपा को इस बात का मलाल है कि उसका राज्य में अत तक एक बार भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। अब तक राकांपा की ओर से विजय सिंह मोहिते पाटिल, आर.आर पाटिल, छगन भजुबल (chhagan bhujbal), अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली है, लेकिन अब तक राकांपा के नसीब में मुख्यमंत्री का पद नहीं आया है। 

राकांपा सुप्रिमो की दिली इच्छा है कि उनकी सुपुत्री सुप्रिया सुले राज्य के मुख्यमंत्री के पद की कुर्सी पर विराजित हो, लेकिन वर्तमान उप मुख्यमंत्री अजित पवार इसके विरोध में हैं, ऐसे में राकांपा को मुख्यमंत्री पद मिलना आसान नहीं है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो कांग्रेस ने राज्य तो सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री दिए हैं, जबकि शिवसेना की ओर से मनोहर जोशी, नारायण राणे और वर्तमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजित होने का मौका मिला है। भाजपा की ओर से अब तक केवल देवेंद्र फणडवीस ही ऐसे नेता हैं, जिन्हें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजित होने का अवसर मिला है, लेकिन राकांपा को अभी तक मुख्यमंत्री पद न मिलना इस पार्टी के शीर्ष नेताओं को परेशान कर रहा है। 

राज्य से सामाजिक न्याय मंत्री तथा राकांपा के वरिष्ठ नेता धनंजय मुंडे का नाम बलात्कार के मामले में सामने आने तथा राकांपा के एक अन्य नेता नवाब मलिक के कारण राकांपा की साथ पर असर पड़ा है। हालांकि फिलहाल राकांपा के राहत की बात यह है कि जिस लड़की ने धनंजय मुंडे के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज किया था, उसे लड़की ने वापस ले लिया, लेकिन नबाव मलिक के दामाद के कारण राकांपा के दामन पर जो दाग लगा है, वह भी राकांपा की आगे की राजनीति को प्रभावित कर सकता है। 

कुल मिलाकर अगर यह कहा जाए कि राज्य के किसी भी राजनीतिक दल में सब कुछ अच्छा चल रहा है, तो यह शायद गलत होगा। आने वाले दिनों में बहुत संभव है कि नाना पटोले कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष बने दिखायी दे जाए और यह भी संभव है कि भाजपा की ओर से भी नए प्रदेशाध्यक्ष की खोज शुरु हो जाए, लेकिन इन सबके बीच राकांपा की ओर से यही कोशिश होगी कि वह अपने लगे दाग को द्वेष की भावना से किया षडयंत्र करार देकर पार्टी पर लगा दाग पूरी तरह से धुल जाए, इसके लिए हरभसंभव कोशिश करती नड़र आएगी, जबकि शिवसेना की ओर लगातार सरकार द्वार किए गए कार्यो का गुणगान किया जाता रहेगा, इन सब परिस्थितियों में महाविकास आघाडी क्या अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी। यही सवाल वर्तमान में सर्वत्र उठाया जा रहा है।      

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