महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव खत्म हो गए है और इसके साथ ही इस बात से भी पर्दा उठ चुका है की आखिरकार राज्य में किस पार्टी को कितनी सीट मिलेगी। विधानसभा चुनाव के लिए हुए मतों की गिनती के बाद राज्य में बीजेपी को 107 सीट , शिवसेना को 56 सीट , कांग्रेस को 44 सीट और एनसीपी को 54 सीटें मिली। इन चुनाव के बाद ये तो स्पष्ट हो गया की राज्य में किसकी सरकार बनेगी। हालांकी इन सब के बीच एक नाम जो फिर से उभर कर आया है वह एनसीपी प्रमुख शरद पवार का।
भले ही इस चुनाव में बीजेपी शिवसेना के गठबंधन को बहुमत मिला हो लेकिन शरद पवार ने साबित किया आखिर क्यों मोदीजी उनको अपना राजनीतिक गुरु मानते है। उदयनराजे भोसले की हार और एनसीपी की सीट बढ़ाना वो भी ऐसे समय में जब सारे नेता पार्टी छोड़ रहे हो। कांग्रेस एनसीपी के गठबंधन में महाराष्ट्र में उन्होंने ने ही प्रचार का जिम्मा संभाला और महाराष्ट्र की पूरी राजनीति को अपने आसपास ही रखा। ईडी के सामने खुद जाकर पेश होना हो या फिर बारिश में ही मंच पर भाषण देने हो, शरद पवार ने पार्टी कार्यकर्ताओं में एक नई जान फूंकी।
पवार ने अपने दम पर भाजपा-शिवसेना की जीत को बड़ा आकार नहीं लेने दिया। उनके नेतृत्व से तय हो गया है कि राज्य में अब कांग्रेस नहीं बल्कि एनसीपी गठबंधन में बिग ब्रदर की भूमिका में होगा । चुनाव के दौरान भी जहां कांग्रेस का प्रचार कुछ खास नहीं दिखा तो वही दूसरी ओर शरद पवार ने पूरी चुनावी कमान अपने उपर लेते हुए राज्य भर में चुनावी सभाओं को संबोधित किया। विश्लेषक मान रहे हैं कि कांग्रेस ने अपने अंदरूनी विवादों को भूल और पवार को सामने रखकर चुनाव लड़ा होता तो महाराष्ट्र विधानसभा की तस्वीर काफी अलग होती।
कांग्रेस की अंदरुनी गुटबाजी
जहा सरद पवार ने इन चुनावों में अपनी ताकत दिखाई तो वही कांग्रेस में भी गुटबाजी एक बार फिर से खुलकर सामने दिखने लगी। कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने पहले तो बीजेपी और शिवसेना का दामन थान लियो तो वही कई नेताओं की अंदरुनी कलह भी साफ देखने को मिली। विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने पार्टी के पदाधिकारियों के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी थी। निरुपम ने पार्टी पदाधिकारियों पर आरोप लगाया की वह उन्हे पार्टी से किनारे करने की कोशिश कर रहे है। इसके साथ ही निरुपम ने ये भी कहा की राहुल गांधी और सोनिया गांधी के नेतृत्व पर उन्हे कोई शक नहीं है लेकिन इन दोनों के चारो और लोगों ने उन्हे जो घेर रखा है वह पार्टी को खत्म करके ही रहेंगे।
कईयों ने छोड़ी एनसीपी
शरद पवार ने एक बार फिर से साबित किया की उन्हे महाराष्ट्र में तेल लगाया हुआ पहलवान क्यों कहते है। शरद पवार ने उस समय पार्टी को एक बार फिर से जिंदा कर दिया जब कई नेताओं ने एनसीपी को रामराम कह दिया था। सचिन अहिर से लेकर उद्यनराजे भोसले और गणेश नाइक ने एनसीपी का दामन छोड़कर शिवसेना और बीजेपी में प्रवेश कर लिया था। पार्टी कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर एक निराशा भरा माहौल गया था। पार्टी कार्यकर्ताओं में एक बार फिर से जान फूंकने की दावेदारी इस बार फिर से शरद पवार के कंधों पर आ गई थी। जिसे शरद पवार ने बखुबी निभाया।
उद्यनराजे को टिकट देना मानी गलती
उद्यनराजे भोसले के एनसीपी छोड़ने के बाद शरद पवार इस बात से काफी आहत हुए थे, उन्होने सातार जाकर पार्टी कार्यकर्ताओं को फिर से संभाला।एनसीपी के टिकट पर साल 2019 के लोकसभा चुनाव मे सातार से जीत दर्ज करनेवाले उद्यराजे भोसले ने विधानसभा चुनाव के पहले एनसीपी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। उद्यनराजे के पार्टी छोड़ने शरद पवार काफी नाराज हुए। उन्होने सातारा की एक सभा में इस बात को भी कबूल किया की उद्यनराजे को टिकट देना उनकी सबसे बड़ी गलती थी।
पश्चिम महाराष्ट्र को बनाए रखा अपना गढ़
शरद पवार ने अपना गढ कहेजानेवाले पश्चिमी महाराष्ट्र को बचाए रखा। यह राज्य का यह एकमात्र इलाका है जहां कांग्रेस-एनसीपी कि भाजपा-एनसीपी से ज्यादा सीटें आई हैं। इसी क्षेत्र से ही एनसीपी को लोकसभा में चार सीटें जीती थीं। पवार यहां परिवार की तीसरी पीढ़ी के रोहित पवार को भाजपा का गढ़ कहलाने वाली कर्जत-जामखेड़ से जिताने में सफल रहे हैं। पार्टी को रोहित से भविष्य में चमत्कार की उम्मीद है। कई लोग उन्हें शरद पवार के सच्चे वारिस के रूप में भी देखते हैं।