शिवसेना (shiv sena) ने 'सत्ता के लिए यही सही वक्त है,' ऐसा दावा करते हुए शिवसेना ने राकांपा (ncp) तथा कांग्रेस (Congress) की मदद से राज्य में महाविकास आघाडी (mahavikas aghadi) के बैनर तले सरकार तो बना ली, लेकिन शिवसेना को जनादेश के खिलाफ सरकार बनाने का खामियाजा भुगतना पड़ा है। छत्रपति शिवाजी महाराज को आदर्श मानकर पहले शिवसेना ने अपने विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनायी और अब छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के प्रति अनुत्साह दिखाकर यह संकेत दे दिया है कि शिवसेना अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहती है। इस वर्ष शिवाजी महाराज की जयंति पर कोरोना (Covid19) की छाया पड़ने के कारण इसे सादगी के मनाए जाने का आदेश राज्य की ठाकरे ने दिए हैं। सरकार के इस आदेश के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (uddhav thackeray) तथा मनसे प्रमुख राज ठाकरे (raj thackeray) के बीच ठन गई है।
राज ठाकरे ने शिवसेना से सवाल पूछ रहे हैं कि जिस पुत्र ने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए अपने सिद्धांतों की बलि देकर राकांपा तथा कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनायी है, वही पुत्र अब शिवाजी महाराज की जंयति के प्रति अनुत्साह क्यों दिखा रहा है। सत्ता बचाने के लिए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, जो वर्तमान में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी हैं, शिवाजी की जयंती (shiv jayanti) में फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। सत्ता के लिए अपने सिद्धांतों की बलि देने तथा शिवाजी महाराज की जयंती के प्रति उत्साह कम होने को शिवसेना भले ही कोरोना संकट का जामा पहना रही हो, लेकिन सच तो यह है कि कांग्रेस के साथ शिवसेना पूरे उत्साह के साथ शिवाजी जयंती नहीं मना सकती। अगर हम महाविकास आघाड़ी सरकार के गठन से पहले की बात करें तो यह पता चलेगा कि जिस महाविकास आघाडी के बैनर तले सरकार को पहले महाशिव आघाड़ी नाम दिया जाने वाला था, लेकिन कांग्रेस की ओर से शिव का विरोध करने के कारण गठबंधन को महाविकास आघाडी नाम दिया गया, कुछ ऐसी ही स्थिति शिवाजी महाराज की जयंती मनाने को लेकर भी देखी जा रही है।
इस वर्ष छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती सादगी से मनाने का निर्णय सरकार की ओर से लिया गया है। कोरोना महामारी के मद्देनज़र इस बार पूरे राज्य में उस उत्साह के साथ जाणता राजा की जयंती नहीं मनायी जा रही है, जैसी पिछले वर्षों तक मनायी जाती रही है। राज्य सरकार ने छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मनाने के लिए कुछ मार्गदर्शक सूचनाएं जारी की हैं। राज्य सरकार की ओर से शिवाजी महाराज की जयंती के बारे में लिए लिए गए निर्णय पर राज्य के विपक्षी दलों ने सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा है कि जो शिवसेना शिवाजी महाराज के आर्दशों पर चलती रही है, वह शिवसेना शिवाजी महाराज की जयंती के प्रति इतनी ठंडी क्यों नज़र आ रही है।
सरकार के इस निर्णय का विरोध मनसे की ओर से भी किया गया है। 19 फरवरी को हर वर्ष शिवाजी महाराज की जयंती सरकारी स्तर के आलावा कई अनेक संस्थाओं, संगठनों की ओर से मनायी जाती है। राज्य सरकार ने करोना के फिर से तेजी पकड़ने की बात को रखते हुए शिवाजी महाराज के जयंती के संदर्भ में भी आवश्यक प्रतिबंध जारी किए हैं। इस बारे में सरकार ने जो मार्गदर्शक सूचनाएं दी हैं, उस पर मनसे नेता बाला नांदगांवकर (bala nandganvkar) ने राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार के मुखिया उद्धव ठाकरे से सीधा सवाल करते हुए पूछा है कि अपने महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज की जयंती नहीं मनायी जाएगी तो क्या टीपू सुलतान (tipu sultan) की जयंती मनायी जाएगी। बाला नांदगांवकर इस संदर्भ में कहा है कि शिवजयंती महाराष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ा पर्व है। यह वर्ष का सबसे बड़ा पर्व है।
नांदगांवकर का कहना है कि जिन छत्रपति शिवाजी महाराज के कारण हम सभी हैं, महाराष्ट्र का समूचे विश्व में सम्मान है, जिनसे आदर्श का पाठ न केवल महागाष्ट्र अपितु पूरे विश्व में पढ़ाया जाता है, उनकी जयंती मनाने के लिए तमाम प्रतिबंध लगाना उचित नहीं है। मनसे नेता ने सरकार के सवाल किया है कि जिस राज्य में अजान स्पर्धा आयोजित की जा सकती है, उस राज्य में शिवाजी महाराज की जयंती मनाने पर प्रतिबंधों की लंबी सूची क्यों जारी की जाती है। सरकार की यह दोहरी नीति समझ से परे ह। जो सरकार बार का समय तय में दिलचस्पी दिखाती है, अनेक चुनाव में कोरोना संबंधी नियमावली को खुले आम तोड़ती है, वह सरकार शिवाजी महाराज की जयंती को प्रतिबंध की जंजीर में क्यों बांध रही है। छत्रपती शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी गड में हुआ था, झाला होता, इसलिए शिवप्रेमी लोग शिवनेरी या गड (किलों) पर जाकर 18 फरवरी को रात 12 बजे जाकर छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मनाते हैं और शिवाजी के प्रति अपना आदर प्रदर्शित करते हैं। लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के मद्देनज़र शिवाजी महाराज की जयंती बड़ी ही सादगी के साथ मनाने का निर्णय लिया गया है।
हर वर्ष शिवाजी महाराज की जयंती मनाते समय पूरे महाराष्ट्र में अलग-अलग तरह के आयोजन होते हैं, लेकिन इस वर्ष 19 फरवरी को जाणता राजा की जयंती के मौके पर छत्रपति शिवाजी महाराज की तस्वीर, स्मारक, पुतलों पर सिर्फ मार्ल्यापर्ण करने की अनुमति की दी गई है। किसी भी तरह का सार्वजनिक कार्यक्रम, व्याख्यान, गानों पर आधारिक कार्यक्रम, नाटक का मंचन न करने के आदेश दिए गए हैं, इतना ही नहीं शिवाजी महाराज की जयंती के अवसर पर प्रभात फेरी, बाईक रैली, शोभा यात्रा न निकालने संबंधी निर्देश भी जारी किए गए हैं। सामाजिक दूरी का पालन करते हुए सिर्फ 100 लोगों की उपस्थिति में शिव महाराज की जयंती मनाने का संबंधी निर्देश दिए गए हैं।
शिवाजी महाराज की जयंती को आयोजन के स्वरूप को बदलकर पहले की तरह के आयोयन न करके उस दिन स्वास्थ्य जांच शिविर आयोजित करने को प्राधानता दी गई है। स्वास्थ्य शिविर के दौरान कोरोना, मलेरिया, डेंग्यू जैसी बीमारियों के लक्षण तथा उससे बचने के उपाय के बारे में जानकारी देने संबंधी निर्देश भी दिए गए हैं, स्वास्थ्य विषयक उपक्रमों के दौरान सोशल डिस्टेंस के साथ-साथ स्वच्छता संबंधी नियम (मास्क, सैनिटायजर इत्यादि) का पालन करने पर भी जोर देने के लिए कहा गया है। कोरोना विषाणु के प्रादुर्भाव को रोकने के लिए सरकार के मदद तथा पुनर्वास, स्वास्थ्य, पर्यावरण, चिकित्सा शिक्षा विभाग में संबंधित महानगरपालिका, पुलिस प्रशासन, स्थानीय प्रशासन की ओर से जारी किए गए नियमों का कडाई से पालन करने के निर्देश भी दिए गए हैं।
सरकार ने शिवाजी महाराज की जयंती को सादगी के साथ मनाने के निर्देश कोरोना के फैलाव को रोकने के संदर्भ में दिए हैं, लेकिन सरकार के इस निर्णय का मनसे की ओर से किया जा रहा विरोध यह बता रहा है कि शिवाजी महाराज की जयंती को लेकर दोनों दलों के बीच का टकराव अभी-भी बरकरार है। मनसे के सर्वेसर्वा राज ठाकरे तथा राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे शिवाजी महाराज के बारे में एक जैसी विचारधारा रखते थे, इस वर्ष उनसे विचार जाणता राज के बारे में काफी बदल गए है।
दरअसल पर्दे के पीछे की कहानी यह है कि शिवाजी महाराज का महिमामंडन करना सरकार में शामिल कांग्रेस को जरा भी नहीं भाता, इलसिए शिवसेना मजबूरी में ही सही शिवाजी महाराज की जयंती को सादगी से मनाने के लिए तैयार हो गई है और सादगी से शिवाजी महाराज की जयंती बनाने पर मनसे की ओर से सवाल भाजपा के उकसावे के कारण उठाया जा रहा है। कुल मिलाकर यही कहना उचित है कि छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती को किसी राजनीति में न लपेट कर उसे सादगी से मनाने का कारणों को तलशाना ज्यादा जरूरी है। तामझाम, हो हल्ला और शिवाजी महाराज की जय बोलना तो ठीक है, लेकिन शिवाजी महाराज के विचारों को आत्मसात करना उससे भी कहीं ज्यादा जरूरी है, अगर इस बात को समझ लिया जाए तभी शिवाजी महाराज की जयंती मनाना सार्थक होगा, अन्यथा शिवाजी महाराज की जयंती मनाना महज एक पर्व बनकर सीमित रह जाएगा। समाज को शिवाजी महाराज ने क्या दिया इसकी सही-सही जानकारी किसी को भी नहीं होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके विचार हैं।)