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संसद में कब कब हुआ सांसदों ने अपनी हरकतों से देश को किया है शर्मिंदा

संसदीय इतिहास में लोकसभा में सबसे बड़ा निलंबन 1989 में हुआ था। सांसद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को संसद में रखे जाने पर हंगामा कर रहे थे।

संसद में कब कब हुआ सांसदों ने अपनी हरकतों से देश को किया है शर्मिंदा
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पीएम मोदी की सरकार द्वारा कृषि सुधार के लिए पेश किए गए दो बिलों को पास तो करा लिया लेकिन इन दोनों बिलों को लेकर विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया, लेकिन राज्यसभा में इन विधेयकों पर चर्चा के दौरान सदन एक बार फिर शर्मसार करने वाले दृश्य का गवाह बना।

राज्यसभा में धक्कामुक्की, माइक की तोड़फोड़, रूल बुक के पन्ने फाड़कर फेंकना, हल्ला व शोरगुल तो हुआ ही साथ ही राज्यसभा के लाइव प्रसारण पर भी 15 मिनट के लिए रोक लगा दी गई।

आइए समझते हैं, उस दिन क्या-क्या हुआ।

राज्यसभा में कृषि विधेयक पर चर्चा हो रही थी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के जवाब के दौरान उपसभापति हरिवंश ने कार्यवाही तय समय से आगे बढ़ाने का फैसला किया। लेकिन नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि समय सबकी सहमति से बढ़ना चाहिए। विपक्ष ने विधेयकों को पास कराने की प्रक्रिया सोमवार को पूरी कराने की मांग की। इसके बाद विपक्षी दलों के तर्क की अनदेखी कर उपसभापति ने बिल पारित कराना शुरू कर दिया।

इतने में विपक्षी सदस्यों ने विधेयकों को प्रवर समिति में भेजने के अपने प्रस्ताव पर वोटिंग की मांग शुरू कर दी। आसन की ओर से अनदेखी होने पर तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने रूल बुक हाथ में लेकर इसका विरोध करने लगे। लेकिन उपसभापति की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, जिसके बाद डेरेक नाराज हो गये और रूल बुक लेकर वेल में पहुंच गए और इसके पन्ने फाड़ आसन की ओर उछाल दिए। यही नहीं उन्होंने आसन के माइक भी तोड़-मरोड़ दिए।

इतने में कांग्रेस, द्रमुक, वामदल, आम आदमी पार्टी समेत विपक्ष के कई सदस्य वेल में पहुंचकर हंगामा करने लगे। आप के संजय सिंह उग्र होते हुए आसन के चेहरे के सामने जाकर नारेबाजी करने लगे। चारों तरफ मार्शलों की तैनाती के बीच हरिवंश ने दोनों विधेयकों को भारी हंगामे और अफरा-तफरी के बीच ध्वनिमत से पारित करा दिया।

राज्यसभा के चेयरमैन एम वेंकैया नायडू ने सोमवार को सदन के आठ सदस्यों को उनकी अनुशासनहीनता के लिए निलंबित कर दिया है।

राज्यसभा के ये सदस्य हैं- डेरेक ओ ब्रायन (टीएमसी), संजय सिंह (आप), राजू सातव (कांग्रेस), केके रागेश (सीपीएम), रिपुन बोरा(कांग्रेस), डोला सेन (टीएमसी), सैय्यद नासिर हुसैन(कांग्रेस) और इलामारन करीम (सीपीएम)

एम वेंकैया नायडू के फ़ैसले के मुताबिक़ राज्यसभा सांसदों के निलंबन का ये फ़ैसला हफ़्ते भर के लिए लागू रहेगा। तब से लेकर अभी तक सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध जारी है।

यह कोई पहली बार नहीं है जब संसद को इस तरह से माननीयों की हरकत के कारण शर्मसार होना पड़ा हो। इसके पहले भी अनेकों मौके ऐसे आए जब जनता के नुमाइंदों ने संसद में हंगामा किया जिससे देश ही नहीं जनता को भी शर्मिंदा होना पड़ा। 15वीं यानी पिछली लोकसभा में ऐसे मौक़े रहे हैं जब सांसदों को निलंबित किया गया।

साल फ़रवरी 2014 में लोकसभा के शीतकाल सत्र में 17 सांसदों को 374 (ए) के तहत ही नलंबित कर दिया गया था।

और साल 2013 में मानसून सत्र के दौरान 23 अगस्त को लोकसभा अध्यक्ष ने संसद की कार्यवाही में रुकावट पैदा करने के लिए 12 सांसदों को निलंबित कर दिया था। इन 12 लोगों में से नौ को 2 सितंबर को फिर से निलंबित कर दिया गया था।हर बार सांसदों को पांच बैठकों के लिए निलंबित किया गया था।

महिला आरक्षण बिल में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था। बिल के विरोध में भारी हंगामे के कारण 7 सांसदों को निलंबित किया गया था। उस दौरान राज्‍यसभा के चेयरमैन हामिद अंसारी थे।

इस दौरान सदन में बिल को फाड़ा गया था और वेल में जाकर कार्यवाही को बाधित करने का प्रयास किया गया था। इन सांसदों को सत्र के आखिर तक के लिए निलंबित किया। इन सांसदों को 108 वें संविधान संशोधन विधेयक पर बहस शुरू होने से पहले मार्शलों द्वारा सदन से बेदखल किया गया था। निलंबित किए सांसदों में राजद के सुभाष यादव, समाजवादी पार्टी के कमाल अख्‍तर, वीरपाल सिंह यादव, नंद किशोर यादव और अमीर आलम खान, लोकजनशक्‍ति पार्टी के साबिर अली और जदयू के एजाज अली शामिल थे। 

हालांकि, 09 मार्च 2010 को कांग्रेस ने बीजेपी, जेडीयू और वामपंथी दलों के सहारे राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक भारी बहुमत से पारित कराया। महिला आरक्षण बिल 2010 में राज्यसभा से पास होने के बाद भी लोकसभा में पेश नहीं हो सका। इसी वजह से अभी तक ये बिल अधर में लटका हुआ है।   

वैसे संसदीय इतिहास में लोकसभा में सबसे बड़ा निलंबन 1989 में हुआ था। सांसद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को संसद में रखे जाने पर हंगामा कर रहे थे। अध्यक्ष ने 63 सांसदों को निलंबित कर दिया था। चार अन्य सांसद उनके साथ सदन से बाहर चले गए।

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