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इन आंदोलनों से देश को कितना नुकसान होता है, कभी सोचा है?

हिंसक आंदोलनों की भरपाई अक्सर उन लोगों से कराई जाती है, जिसमें उनका कुछ भी लेना देना नहीं होता।

इन आंदोलनों से देश को कितना नुकसान होता है, कभी सोचा है?
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मोदी सरकार (modi government) द्वारा पारित किए गए किसान बिल (farmer bill) के विरोध में किसान आंदोलन (farmer protest)ने देश ही नहीं पूरी दूनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। सैकड़ों की संख्या में जुटे ये किसान (farmer) दिल्ली के लगभग हर एंट्री पॉइंट पर पिछले 15 दिनों से डटे हुए हैं। अपनी मांग को लेकर इन किसानों का कहना है कि, जब तक सरकार हमारी मांग नहीं मानेगी, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा। मेरा मुख्य मुद्दा यह नहीं है कि, किसान बिल कितना सही है और कितना गलत, किसान कितने सही हैं और कितने गलत और सरकार कितनी सही है या कितनी गलत? मेरा मुख्य मुद्दा है आंदोलन, आंदोलन करना कितना सही होता है और कितना गलत, हम इस पर प्रकाश डालेंगे।

दूनिया भर के लगभग सभी देशों में सरकार की नीतियों या फिर अन्य मुद्दों को लेकर आम लोगों द्वारा जब सामूहिक रूप से विरोध किया जाता है उसे ही आंदोलन कहते हैं। इसमें लोगों की संख्या 2,4,8, 10 से लेकर 100, 200 या फिर हजारों, लाखों में होती है।

भारत (india) जैसे लोकतांत्रिक (democracy) देश में भी आये दिन किसी न किसी बात को लेकर राजनीतिक पार्टियां, सरकारी कर्मचारी या फिर आम लोगों द्वारा आंदोलन किया जाता है। संविधान में लोगों को आंदोलन करने का अधिकार दिया गया है। लेकिन यह आंदोलन जब शांतिपूर्वक हो तो अच्छी बात होती है, यह स्वस्थ्य लोकतंत्र की सबसे बड़ी पहचान होती है। लेकिन जब आंदोलन हिंसक हो जाता है, आगजनी, लूटपाट, हत्या, सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना, चक्का जाम करना जैसे कार्य अंजाम दिए जाते हैं तो, यह किसी भी देश पर सबसे बदनुमा दाग होता है। इतिहास की गर्त में झांके तो भारत पर ऐसे कई दाग लग चुके हैं।

पिछले साल हुए नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में कई जगह भारी विरोध देखने को मिल रहा है। कई जगह तो प्रशासन को हिंसात्मक विरोध का सामना भी करना पड़ा। दिल्ली में बसों को आग के हवाले कर दिया, सैकड़ो प्राइवेट वीइकल, को जलाकर राख कर दिया गया। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में भी वाहन जलाने के साथ तीन रेलवे स्टेशन, पोस्ट ऑफिस और बैंक में भी खूब तोड़फोड़ की गई।

अब यही सब किसान आंदोलन में भी देखने को मिल रहा है। दिल्ली के लगभग हर एंट्री पॉइंट पर किसान बैठे हैं। दिल्लीवासियों को उनके रोजमर्रा के जरूरत की हर वस्तु जैसे दूध, साग सब्जी, फल की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है, साथ ही कम आवक होने के कारण सामान महंगे दामों में बिक रहे हैं।

टोल अधिकारियों की मानें तो किसान आंदोलन के चलते तीन दिसंबर से 12 दिसंबर को किए टोल फ्री के दौरान फ्री निकले वाहनों से लगभग 50 लाख रुपये की टैक्स वसूली का टोलवे कंपनी को फटका लगा है। शनिवार को किसानों के टोल फ्री करने में टोलवे कंपनी को करीब 7 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। सैकड़ों वाहन किसान आंदोलन के नाम पर टोल प्लाजा से फ्री गुजर रहे हैं।

किसी भी देश में होने वाली हड़ताल (Protest) उस देश की आर्थिक स्थिति की कमर तोड़ देती है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। उद्योग संगठन कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (CII) का एक अनुमान है कि एक दिन से भारत बंद से अर्थव्यवस्था पर 25 से 30 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है। अगर केवल ट्रक हड़ताल होता है तो इकॉनमी को एक दिन में 7000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान होता है।

CII के मुताबिक, भारत बंद खत्म होने के बाद सेवाएं तो दोबारा शुरू हो जाती हैं, लेकिन बंद के दौरान जो नुकसान होता है, उसकी कभी भरपाई नहीं हो पाती है। 

विडंबना यह है कि इस पब्लिक प्रॉपर्टी (public property) का निर्माण पब्लिक के पैसे से ही होता है, पब्लिक ही इसे नुकसान पहुंचाती है और फिर इसकी जवाबदेही भी किसी की नहीं होती है। 

बुद्धजीवी कहते हैं कि, लगभग 99 फीसदी आंदोलन राजनीति द्वारा प्रायोजित होती है। राजनीतिक दल अपना हित साधने के लिए अक्सर ऐसे आंदोलनों को आयोजित करते हैं।

इस मामले में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (UP cm yogi adityanath) के उस कानून की सभी लोगों ने प्रशंसा की थी, जिसके तहत उपद्रवियों की पहचान करके उनसे नुकसान की भरपाई कराना था, या फिर जेल भेजना था। 

CAA और NRC के खिलाफ लखनऊ में कई दिनों तक हिंसक प्रदर्शन हुए थे, बाद में उपद्रवियों की पहचान की गई और उनसे जुर्माना वसूला गया। 

दरअसल ऐसे मामलों में दोष साबित करने की दर महज 29.8 प्रतिशत है। पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने से किसी को कुछ फर्क नही पड़ता। साल 2017 के आखिर तक ऐसे मामलों के 14,876 केस देश की कई अदालतों के सामने पेंडिंग थे। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु ऐसे केसों में सबसे आगे हैं। अकेले इन तीन राज्यों में करीब 6300 केस सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के केस पेंडिंग हैं।

सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान को रोकथाम अधिनियम 1984 को पहली बार हिंसक आंदोलन के बाद लाया गया था। इसमें अगजनी और हिंसक प्रदर्शन के दोषियों को 6 से 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान था। 2016 में हरियाणा में जाट अंदोलन के दौरान हुई हिंसा के बाद इस कानून में संशोधन किया गया। इसके तहत यदि कोई राजनीतिक पार्टी का नेता यह साबित कर देता है कि पब्लिक प्रॉपर्टी का नुकसान उसकी जानकारी के बगैर हुआ है तो उसे इसमें छूट मिल सकती है। चूंकि ऐसे आंदोलनों को राजनीतिक 'कृपा' (political protest) मिली होती है तो इन पर कार्रवाई करना संभव नहीं होता।

हिंसक आंदोलनों (violence protest) की भरपाई अक्सर उन लोगों से कराई जाती है, जिसमें उनका कुछ भी लेना देना नहीं होता। जाट आरक्षण के लिए जाटों ने करोड़ों रुपये के सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन बाद में उसे जब सरकार ने संपत्तियों को फिर से बनाया होगा तो, वह पैसा आम लोगों के टैक्स से ही तो गया होगा। ऐसा नहीं कि, सिर्फ जाटों से ही पैसा वसूला गया होगा। इसलिए अब समय आ गया है कि, सरकार को इस बाबत एक कानून बनाना चाहिए, और इस 'हिंसक' आजादी पर रोक लगानी चाहिए।

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