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पुरुषों को सिनेमा हॉल में खींचकर लाएंगे: आर बाल्की

'पैडमैन' डायरेक्यटर ने कहा, यह फिल्म पुरुषों को थिएटर के अंदर खींचकर लाएगी। जबसे फिल्म बनी हैं चारो तरफ पैड पैड चलने लगा है, अगर दुकान में जाकर बिना शर्माते हुए लोग पैड बोल सकते हैं तो यह काफी है, और एक बड़ी उपलब्धि है।

पुरुषों को सिनेमा हॉल में खींचकर लाएंगे: आर बाल्की
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लीक से हटकर ‘चीनी कम’, ‘पा’ और ‘शमिताभ’ जैसी फिल्में बनाने वाले डायरेक्टर 9 फरवरी को ‘पैडमैन’ लेकर आ रहे हैं। यह फिल्म महिलाओं के पीरीयड्स को लेकर है। भारत के हालात ऐसे हैं कि 82 फीसदी महिलाएं आज भी पीरियड्स के दौरान पैड का इस्तेमाल नहीं करती। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह अज्ञानता और शर्म है। बाल्की इस फिल्म के माध्यम इसे हटाने का प्रयास कर रहे हैं। इस फिल्म में अक्षय कुमार अरुणाचलम मुरुगनाथम का कैरेक्टर प्ले करते नजर आएंगे। फिल्म की रिलीज से पहले ‘मुंबई लाइव’ ने आर बाल्की से खास मुलाकात की, इस मुलाकात में उन्होंने फिल्म के अलावा तमाम सवालों के बेबाकी से जवाब दिए हैं।

 

फिल्म की रिसर्च के दौरान कौन से अचंभित करने वाले तथ्य सामने आए?

हरेक चीज अचंभित करने वाली थी। सबसे बड़ी चीज तो यही थी कि देश में 82 फीसदी महिलाएं पैड का इस्तोमाल ही नहीं करती हैं। चलो ठीक है कपड़े इस्तेमाल करती हैं, हम समझ सकते हैं। पर जिस तरह से वे उसको साफ करती हैं और सुखाती हैं वह चौकाने वाला है। एक गांव में देखा कि साड़ी के बीच में वे उन कपड़ो को सुखाती हैं। इससे भी डरावना एक कॉमन नहाने धोने की जगह है वहां पर वे सभी कपड़ों को तो सामान्य पानी से धुलती हैं, पर जिस कपड़े को पैड की तरह इस्तेमाल किया है। उसे एकत्र हुए गंदे पानी से धुलती हैं।

क्या महिलाओं के साथ साथ पुरुषों को भी आपकी फिल्म आकर्षित कर पाएगी?

लोग बात करने के लिए तैयार है, देखने के लिए तैयार हैं, लोग यह तय करके नहीं चलते कि यह टॉपिक देखना चाहिए, कि नहीं देखना चाहिए? जो भी विषय है अगर इंट्रेस्टिंग हैं तो लोग उसे जरूर देखना पसंद करेंगे। यह फिल्म पुरुषों को थिएटर के अंदर खींचकर लाएगी। जबसे फिल्म बनी हैं चारो तरफ पैड पैड चलने लगा है, यह फिल्म के नाम की वजह से है। अगर दुकान में जाकर बिना शर्माते हुए लोग पैड बोल सकते हैं तो यह काफी है, और एक बड़ी उपलब्धि है।

पैड और पीरियड्स को लेकर आपके घर में कैसा रवैया है?

वैसे तो मैं दुकान में जाकर पैड खरीदता हूं। पर जब मैं यंग था, मैं देखता था कि मेरी मां महीने में 5 दिन घर के बाहर बैठती थीं। मुझे उस वक्त समझ में नहीं आता था कि क्यों बाहर बैठती हैं? पर आज मुझे बहुत दुख हो रहा है कि मैंने उस समय उनसे बात नहीं की क्या हो रहा है? क्य महसूस कर रहे हो? पर एक बार ‘पैडमैन’ बनाने से काफी पहले जब मैंने कहा कि मुझे गौरी के लिए पैड लेते हुए जाना है। तो मेरी गीगल (हंसना) करने लगीं। मैंने उस वक्त सोचा कि इस बारे में बात करना कितना मुश्किल है। पर जब फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ तो उन्होंने देखा और सबको दिखा रही हैं। और सबसे कह रही हैं याद है? अब क्या याद है वह पता नहीं।

फिल्म की कहानी साउथ के अरुणाचलम मुरुगनाथम के जीवन पर बेस्ड है, फिर फिल्म में नॉर्थ का बैकड्रॉप क्यों?  

अगर मैं साउथ इंडिया में यह फिल्म बनाउं और सब लोग शुद्ध हिंदी में बात करेंगे (हंसते हुए) तो कैसा रहेगा? लोगों को भाषा और जगह को समझने की जरूरत नहीं है। बल्कि उन्हें फिल्म के मेसेज को समझना चाहिए।

आपने कभी बायोपिक ना बनाने का निर्णय लिया था, फिर ‘पैडमैन’ क्यों? यह भी तो अरुणाचलम मुरुगनाथम के जीवन पर बेस्ड है?

बायोपिक बनाना एक बड़ी जिम्मेदारी वाला काम है। मैं अपनी फिल्म को पूरा न्याय देना चाहता हूं। इसलिए मैं बायोपिक से बचता था। इस फिल्म में भी कहीं ना कहीं मेरे कंधों पर बड़ी जवाबदारी थी और एक सीमा भी थी। पर यह एक ऐसा विषय था जिसपर अभी तक दुनिया भर में किसी ने फिल्म नहीं बनाई थी। इसलिए मैंने इसे किया।

 यह फिल्म दुनिया भर के फिल्म फैस्टिवल में पहुंचेगी?

मैंने यह फिल्म, फिल्म फेस्टिवल के लिए नहीं बनाई है। मैं चाहता हूं कि मेरी यह फिल्म इस देश और अन्य देशों के ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच पहुंचे। जो फिल्म, फिल्म फेस्टिवल के लिए बनाई जाती हैं उसकी भाषा काफी अलग होती है। कई बार इमोशन ज्यादा डालने होते हैं या हटाने होते हैं। मैं मैनस्ट्रीम फिल्म बनाना चाहता था, जिसमें गाना वगैरह भी हों। ताकि सभी लोग मेसेज के साथ मनोरंजन भी कर पाएं।


  

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