महाराष्ट्र (maharashtra) की 70,000 आशा कर्मचारी अपनी विभिन्न मांगों को लेकर मंगलवार, 15 जून से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया हैं। ये आशा कर्मी वेतन वृद्धि, लंबे समय से लंबित पड़ी मांगों के साथ-साथ कोरोना काल में सर्वेक्षण के लिए बेहतर सुरक्षा उपायों की मांग कर रही हैं।
कोरोना महामारी (corona pandemic) के दौरान अतिरिक्त जिम्मेदारी होने के बावजूद इन फ्रंट लाइन वारियर्स को दिए जाने वाले कम मानदेय का ये लोग विरोध कर रही हैं।
इन महिला फ्रंटलाइन वर्कर्स (frontline workers) का कहना है कि, जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जाती हैं, वे अपने कार्यों का बहिष्कार करती रहेंगी।
इनका कहना है कि, इन्हें प्रति माह 1,650 मानदेय का भुगतान किया जाता है। इनकी ड्यूटी अमूमन दिन में पांच घंटे की होती है, लेकिन कोरोना काल में इनसे 7 से 8 घंटे तक काम कराया जा रहा है।
आशा कर्मियों ने आगे कहा, पिछले साल उन्हें आश्वसन दिया गया था कि, उनका वेतन बढ़ाकर 4000 माह कर दिया जाएगा, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।
इन आशा कर्मियों का कहना है कि, जब तक कि उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती, तब तक वे न कोविड से संबंधित कार्य नहीं करेंगी साथ ही इन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के तहत 72 अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर काम करना भी बंद करने का फैसला किया है।
उनकी प्रमुख मांगों में से एक दिन में आठ घंटे काम करने के लिए प्रति दिन 500 रुपये और COVID से संबंधित काम के लिए अतिरिक्त पारिश्रमिक है।
पहली कोविड लहर के दौरान, इन आशा कार्यकर्ताओं को छह महीने के लिए अतिरिक्त वेतन के अतिरिक्त 300 प्रति दिन भुगतान प्राप्त हुआ। लेकिन दूसरी लहर में उन्हें वह बोनस भी नहीं मिल रहा है।
आशा ग्रामीण स्वास्थ्य प्रणाली की रीढ़ हैं और कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध में फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं का एक महत्वपूर्ण वर्ग हैं। एक साल से, रोगसूचक मामलों की तलाश, संपर्क ट्रेसिंग और रोगियों के इलाज की व्यवस्था के लिए घर-घर सर्वेक्षण में लगे हुए हैं।
जबकि राज्य सरकार ने कहा कि, वह महिला-आशा कर्मियों की मांगों पर बातचीत करने के लिए तैयार है।