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मजदूरों का हक़ तिजोरी में बंद खा रहा धूल


मजदूरों का हक़ तिजोरी में बंद खा रहा धूल
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असंगठित क्षेत्रों में निर्माण कार्य करने वाले मजदुरों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण के लिए बिल्डरों द्वारा हर प्रोजेक्ट में एक फीसदी का उपकार (सेस टैक्स) कामगार कल्याण निधि में जमा करते हैं। इस तरह से 10 सालों में अब तक राज्य सरकार ने 5 हजार करोड़ रूपये जमा किया है। इस जमा निधि में 255.94 करोड़ रूपये का उपयोग निर्माण कार्य में लगे हुए मजदूरों के कल्याण के लिए है।

यह निधि उनके लिए हैं जो मजदुर कार्य के दौरान दुर्घटनाग्रस्त होने से मौत हो जाती है और उनके परिवार के देखरेख के लिए ही इस कोष को बनाया गया था। लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि पुरे देश में इस तरह एक भारी भरकम राशि जमा हो गयी है लेकिन सरकार उसका कोई उपयोग नहीं कर रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस कोष में लगभग 40 हजार करोड़ रूपये की राशि जमा धुल खा रही है।

बांधकाम कल्याणकारी मंडल के सचिव श्रीरंगम 2007 में निर्माण कार्य करने वाले मजदूरों के कल्याण के लिए केंद्र सरकार ने स्वतंत्र कोष स्थापित करने का निर्देश दिया था। इसके अनुसार प्रत्येक प्रोजेक्ट में कुल प्रोजेक्ट का एक फीसदी राशि सेस टैक्स के रूप में बिल्डरों को इस कोष जमा कराना होता है। पंजीकृत मजदूरों के लिए इस तरह की 19 योजनाए चल रही हैं। ऐसा इसीलिए ताकि इन मजदूरों को और इनके परिवार वालों को संकट के समय किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। एक आंकड़े के अनुसार राज्य भर में कुल 40 लाख मजदूर हैं जिसमें से 5 लाख पंजीकृत हैं। और इन 5 लाख पंजीकृत मजदूरों में से मात्र 2.98 लाख मजदूरों के पंजीयन का नवीनीकरण हुआ है, और योजना का लाभ भी मात्र इन्ही मजदूरों को मिल रहा है।

एक प्रोजेक्ट समाप्त होने पर मजदूर दुसरे प्रोजेक्ट में लग जाते हैं। अपना पंजीयन कराने के लिए इन मजदूरों के पास पर्याप्त कागजात भी नहीं होते। अब सरकार जमा राशि का उपयोग हो इसके लिए प्राइवेट कंपनियों के माध्यम से मजदूरों के पंजीयन का काम करवाएगी। इसके लिए निविदा प्रक्रिया शुरू है। हालांकि सरकार के इस उदासीन रवैये से बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (बीएआई) भी नाराज है।

बीएआई के पदाधिकारी आनंद गुप्ता ने कहा कि मजदूरों के पंजीकृत के लिए सरकार कुछ ठोस कदम नहीं उठा रही है। हमारी मांग है कि मजदूरों का जल्द से जल्द पंजीयन हो और राशी का उचित प्रयोग हो। उन्होंने आगे कहा कि हमारी यह भी मांग है कि अगर सरकार का यह प्रयास असफल रहता है तो बीएआई, एमसीएच और क्रेडाई जैसे संगठनों के माध्यम से निधी का प्रयोग किया जाए।

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