कई शिक्षा क्षेत्र के संगठनों ने प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य बनाने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि यह छात्रों के साथ अन्याय है। मराठी अध्ययन केंद्र, महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक प्राचार्य संघ, हम शिक्षक सामाजिक संगठन, महाराष्ट्र राज्य शैक्षणिक संस्थाएं महामंडल, महाराष्ट्र प्रगतिशील शिक्षक संघ और महाराष्ट्र राज्य कला शिक्षक संघ जैसे संगठनों ने स्कूली शिक्षा मंत्री को पत्र भेजकर इस निर्णय को वापस लेने का अनुरोध किया है।
वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं गुणवत्ता एवं प्रभावी क्रियान्वयन के लिए गठित राज्य स्तरीय संचालन समिति के सदस्य रमेश पानसे ने भी पत्र का समर्थन किया है।अपने पत्र में संगठनों ने कहा है कि महाराष्ट्र में हिंदी को तभी अनिवार्य बनाया जाना चाहिए जब उत्तरी राज्यों में मराठी या द्रविड़ भाषाएं पढ़ाना शुरू कर दिया जाए। पत्र में कहा गया है, "हमारा मानना है कि महाराष्ट्र को हिंदी सीखने की अपेक्षा उत्तर भारतीयों को मराठी सीखने की अधिक आवश्यकता है।"
मराठी एकीकरण समिति ने भी इस निर्णय का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है और इसकी अनिवार्यता भाषाई मजबूरी है। इसमें कहा गया है कि स्कूलों में तीसरी भाषा पढ़ाने पर जोर देना छात्रों के साथ अन्याय है।
यह भी पढ़ें- ठाणे नगर निगम ने शहर में 394 अवैध बैनर हटाए