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किसान परिवार के आत्महत्या के 35 वर्ष पूर्ण


किसान परिवार के आत्महत्या के 35 वर्ष पूर्ण
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देश को सर्वाधिक राजस्व राशि देने वाले महाराष्ट्र राज्य के यवतमाल जिले के नाम आत्महत्या करने वाले किसानों की सूची में पहले स्थान पर है। 35 वर्ष 19 मार्च, 1986 को यवतमाल जिले की महागांव तहसील के किसान साहेबराव पाटिल करपे ने अपने परिवार के साथ वर्धा जिले के दत्तपुर में आत्महत्या की थी। इस घटना को इस वर्ष 35 वर्ष पूरे गए, फिर भी किसानों की आत्महत्याएं होने का जारी रहना किसी शोकांतिका से कम नहीं है।


19 मार्च, 2017 को पूरे महाराष्ट्र राज्य में पहली बार एक दिवसीय अन्न त्याग आंदोलन किया जाता है। इस आंदोलन को इस वर्ष कोरोना के कारण घर में ही करने की आपील की गई थी, इस वजह से किसानों तथा उनके परिजनों ने एक दिन का उपवास रखकर 19 मार्च को किसान स्मृति दिवस के रूप में मनाया। 19 मार्च, 2017 को किसान नेता अमर हबीब के नेतृत्व में महागांव के साथ-साथ पूरे महाराष्ट्र में अन्नत्याग आंदोलन का शुभारंभ हुआ था। 19 मार्च को किसान स्मृति दिन घोषित करने के साथ-साथ केंद्र सरकार की ओर से अमल में लाए गए किसान विरोधी तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग इस दौरान की गई।

कोरोना के बढ़ते प्रार्दुभाव को ध्यान में रखते हुए सरकार के नियमों का पालन करते हुए सभी किसान पुत्र, व्यापारियों तथा विभिन्न संगठनों ने अपने घर में ही एक दिन का अन्न त्याग आंदोलन किया। इस दिन हर किसान के घर अन्न त्याग किया गया। इस आंदोलन में सिर्फ किसानों ने ही नहीं बल्कि उनके परिजनों ने भी साथ दिया।

अन्नत्याग आंदोलन के जनक अमर हबीब ने पुणे में आंदोलन किया। जबकि अमरावती जिले के वरुड क्षेत्र में विभिन्न सामाजिक संगठनों की ओर से एक दिवसीय अन्न त्याग कार्यक्रम आयोजित किया गया। 19 मार्च को वरुड में महात्मा फुले के पुतले पर मार्ल्यापर्ण करने के बाद शुरु हुए एक दिवसीय अन्न त्याग आंदोलन को किसान पुत्रों ने अपने-अपने घर एक  दिन उपवास रखकर नैतिक समर्थन दिया।

साहेब राव करपे पाटिल यवतमाल जिले के चिलगव्हाण (महागांव तहसील) के रहने वाले थे। साहेब राव करपे पाटिल जो पेशे से किसान थे, 11 वर्ष तक चिलगव्हाण गांव के सरपंच भी रहे। इनके पास 125 एकड़ जमीन थी। इतना होते हुए भी इन्होंने 19 मार्च, 1986 को  वर्धा जिले के दत्तपुर आश्रम में अपनी पत्नी मालती, बेटी विश्रांती, मंगला, सरिता तथा पुत्र भगवान के साथ विष पीकर आत्महत्या की थी। सरकार की डायरी में यह घटना राज्य की पहली किसान परिवार की आत्महत्या के रूप में दर्ज है।

हालांकि 19 मार्च को अन्न त्याग आंदोलन 2017 से शुरु हुआ है, लेकिन इस आंदोलन में शामिल होने वाले किसान पूरे राज्य में यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि यह आंदोलन सिर्फ तीन वर्ष पहले से ही नहीं किया जा रहा, बल्कि यह उसी वर्ष शुरु हो गया था, जिस वक्त साहेराब करपे पाटिल ने अपने परिजनों के साथ आत्महत्या की थी। उस वक्त किसानों में इतना साहस नहीं था कि वे सरकार के खिलाफ आवाज उठा सकते थे, लेकिन 19 मार्च, 2017 को किसान नेता अमर हबीब के प्रयासों से इस दिन किसान के लिए दुखदायी करार देते हुए राज्य भर में अन्न त्याग आंदोलन आयोजित करके सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया जाता है कि राज्य में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला 35 वर्ष पहले ही शुरु हो गया था, जो अब भी जारी है और अगर किसानों की हालत पर सरकार की ओर से ध्यान नहीं गया तो किसानों की मौत सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। 

यह बेहद अफसोस का विषय है कि लंबे समनय से जारी किसान आत्महत्याओं का दौर अभी थामा नहीं है. दूसरे शब्दों में कहें तो किसानों के आर्तनाद की ओर किसी भी सरकार ने गंभीरता से ध्यान नहीं दिया है। आर्थिक तंगी तथा मौसम की मार लंबे समय से किसान सहन करते चले जा रहे हैं, सरकारे आती हैं और चली जाती है। सरकारी आश्वासनों तथा योजनाओं के झांसे में फंसकर किसानों को अंतत अपनी जान देनी पड़ती है।

अन्नदाता के प्रति इस तरह की बेरूखी ठीक नहीं है। किसानों के आर्तनाद पर सिर्फ एक दिन का अन्न त्याग करने मात्र से काम नहीं चलेगा, जब तक किसानों के हितों के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाया जाएगा, तब तक हालात नहीं बदलेंगे। किसानों को तकनीकी युग के साथ जोड़ने से पहले उसे आत्मनिर्भर तथा आर्थिर रूप से सफल बनाने की जरूरत है, जब तक इस तरफ गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जाएगा। तब तक किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)   

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