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डेढ़ करोड़ खर्च करने के बाद दो दिन तक चला फ्लोरा फाउंटेन, अब फिर हुआ बंद

पोर्टलैंड पत्थरों से सुसज्जित यह फाउंटेन लगभग 150 साल पुराना है जो साल 2007 से ही खराबी के कारण बंद है। करीब 10 साल से अधिक समय तक बंद रहने के कारण इसमें लगे पत्थर और मूर्तियों को नुकसान हो रहा था। साल 2016 में बीएमसी ने इसकी मरम्मत का निर्णय लिया और इस कार्य के लिए ठेका दिया। बताया जाता है कि इसके मरम्मत कार्य में डेढ़ करोड़ रुपए लग गये।

डेढ़ करोड़ खर्च करने के बाद दो दिन तक चला फ्लोरा फाउंटेन, अब फिर हुआ बंद
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दक्षिण मुंबई में स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना प्रतिष्ठित फ्लोर फाउंटेन को एक बार फिर से सोमवार को जनता के लिए बंद कर दिया गया। बताया जाता है कि इस फ्लोरा फाउंटेन में से फव्वारे के रूप में जितना पानी निकलना चाहिए था उतना पानी नहीं निकल रहा था, साथ ही फव्वारे में पानी का स्तर भी कम था। कहीं लीकेज की आशंका के मद्देनजर इस फव्वारे को फिर से बंद कर दिया। अब इसकी मरम्मत के बाद फिर से इसे खोला जाएगा। आपको बता दें कि अभी 5 दिन पहले ही यानी 24 जनवरी 2018 को युवा सेना प्रमुख आदित्य ठाकरे ने इस फाउंटेन का उद्घाटन किया था।

चौकानें वाली बात यह है कि अभी पांच दिन पहले ही 24 जनवरी को ही आदित्य ठाकरे ने इस फाउंटेन का लोकार्पण किया। 27 जनवरी तक यह फाउंटेन सही चला लेकिन इसके बाद इसमें फिर से खराबी आ गयी। पानी चालू करने पर पानी का स्तर अपने आप कम हो जाता था, साथ ही पानी का फव्वारा भी पानी कम होने के कारण फ़ोर्स ने नहीं आ पाता था। बीएमसी अधिकारियों ने कहीं लीकेज की आशंका के मद्देनजर फिर से इस फाउंटेन को बंद कर दिया। अब लीकेज की जांच कर उसकी मरम्मत कर फिर से इसे खोला जाएगा। 

पोर्टलैंड पत्थरों से बना यह फाउंटेन लगभग 150 साल पुराना है जो साल 2007 से ही खराबी के कारण बंद है। करीब 10 साल से अधिक समय तक बंद रहने के कारण इसमें लगे पत्थर और मूर्तियों को नुकसान हो रहा था। साल 2016 में बीएमसी ने इसकी मरम्मत का निर्णय लिया और इस कार्य के लिए ठेका दिया। बताया जाता है कि इसके मरम्मत कार्य में डेढ़ करोड़ रुपए लग गये।

क्या है इसका इतिहास?
बताया जाता है कि इंजीनियरिंग और शिल्पकला का अद्भुत नमूने का संगम इस फ्लोरा फाउंटन का निर्माण साल 1864 में कराया था। इसका निर्माण सर हैंरी बेरटल और एडवर्ड फ्रेर के सम्मान में किया गया था। फ़ाउंटेन का नाम रोम में समृद्धि के भगवान के नाम पर पड़ा था।  

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